Friday, September 6, 2019

भारत का एक ऐसा किला जहाँ से पाकिस्तान दिखता है - Mehrangarh Fort-Jodhpur

भारत का एक ऐसा किला जहाँ से पाकिस्तान दिखता है - MehrangarhFort-Jodhpur




नमस्कार दोस्तों हमारे देश भारत में एक ऐसा किला भी मौजूद है जहां से पाकिस्तान दिखाई देता है
जी हां दोस्तों तो अपन जानते हैं कि वह कौन सा किला है और कहां स्थित है ? 
 दोस्तों इस पोस्ट में उस किले के बारे में बताया गया है लेकिन अगर आप इसके बारे में video देखना चाहते हैं | तो नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें - क्लिक - YouTube / ALL Rounder GuruJi

भारत का एक ऐसा किला जहाँ से पाकिस्तान दिखता है - Mehrangarh Fort-Jodhpur


नमस्कार दोस्तों - मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर में स्थित है और भारत के विशालतम किलो में इसका समावेश है। भारत के समृद्धशाली अतीत का प्रतीक है। 

यह किला शहर से 410 फीट की ऊँचाई पर स्थित है | और पहाड़ की ऊँचाई पर 5 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसकी दीवारे 36 मीटर ऊँची और 21 मीटर चौड़ी है, जो राजस्थान के ऐतिहासिक पैलेस और सुंदर किले की रक्षा करती  है।

शहर के निचले भाग से ही किले में आने के लिये एक घुमावदार रास्ता भी है। जयपुर के सैनिको द्वारा तोप के गोलों द्वारा किये गये आक्रमण की झलकियाँ आज भी हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।


मेहरानगढ़ किले का म्यूजियम राजस्थान के बेहतरीन और सबसे प्रसिद्ध म्यूजियम में से एक है। किले के म्यूजियम के एक विभाग में पुराने शाही पालकियो को रखा गया है, जिनमे विस्तृत गुंबददार महाडोल पालकी का भी समावेश है, जिन्हें 1730 में गुजरात के गवर्नर से युद्ध में जीता गया था। यह म्यूजियम हमें राठौर की सेना, पोशाक, चित्र और डेकोरेटेड कमरों की विरासत को भी दर्शाता है।

राव नारा की सहायता से 1 मई 1459 को किले के आधार की नीव राव जोधा द्वारा मंडोर के दक्षिण से 9 किलोमीटर दूर चट्टानी पहाड़ी पर रखी गयी। इस पहाड़ी को पक्षियों के पहाड़ के नाम से जाना जाता था।

लीजेंड के अनुसार, किले ले निर्माण के लिये उन्होंने पहाडियों में मानव निवासियों की जगह को विस्थापित कर दिया था। चीरिया नाथजी नाम के सन्यासी को पक्षियों का भगवान भी कहा जाता था। बाद में चीरिया नाथजी को जब पहाड़ो से चले जाने के लिये जबरदस्ती की गयी तब उन्होंने राव जोधा को शाप देते हुए कहा, “जोधा! हो सकता है कभी तुम्हारे गढ़ में पानी की कमी महसूस होंगी।” राव जोधा सन्यासी के लिए घर बनाकर उन की तुष्टि करने की कोशिश कर रहे थे।
साथ ही सन्यासी के समाधान के लिए उन्होंने किले में गुफा के पास मंदिर भी बनवाए, जिसका उपयोग सन्यासी ध्यान लगाने के लिये करते थे। लेकिन फिर भी उनके शाप का असर आज भी हमें उस क्षेत्र में दिखाई देता है, हर 3 से 4 साल में कभी ना कभी वहाँ पानी की जरुर होती है।
इस किले में कुल सात दरवाजे है। 
जय पोल किले का मुख्य द्वार है और लोह पोल, यह किले का अंतिम द्वार है जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। इसके बायीं तरफ ही रानियो के हाँथो के निशान है, जिन्होंने 1843 में अपनी पति, महाराजा मान सिंह के अंतिम संस्कार में खुद को कुर्बान कर दिया था।
किले पर पाए जाने वाले हथेली के निशान आज भी हमें आकर्षित करते है।

इस किले के भीतर बहुत से बेहतरीन चित्रित और सजे हुए महल है। जिनमे मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खाना और दौलत खाने का समावेश है। साथ ही किले के म्यूजियम में पालकियो, पोशाको, संगीत वाद्य, शाही पालनो और फर्नीचर को जमा किया हुआ है। किले की दीवारों पर तोपे भी रखी गयी है, जिससे इसकी सुन्दरता को चार चाँद भी लग जाते है।

  भारत का एक ऐसा किला जहाँ से पाकिस्तान दिखता है - Mehrangarh Fort-Jodhpur

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Tuesday, September 3, 2019

मंगल ग्रह की रोचक जानकारी - latest news about mars planet in hindi


हेलो नमस्कार दोस्तों मंगल ग्रह की एक ऐसी तस्वीर जिसने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को हैरानी में डाल दिया है - हियु तू तो ऐसे देखने से बड़ी ही दिलचस्प तस्वीर नजर आ रही है  लेकिन हम जब साधारण तह सोचे तो यह किसी धार्मिक पूजा प्रतिष्ठान  की तरह दिखता है लेकिन वैज्ञानिकों का इस पर अलग-अलग मतं दर्शाता है - 


तो दोस्तों आइए जानते हैं -  इसके बारे में पूरी पड़ताल करते हैं इस रिपोर्ट में -


लेकिन वीडियो शुरू करने से पहले आप से गुजारिश है कि अभी तक चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया तो सब्सक्राइब करके बैल आइकन दबा दीजिए -



मंगल ग्रह की रोचक जानकारी  - latest news about mars planet in hindi


दोस्तों दूर से देखने से यह तस्वीर बड़ी मनोहरम और दिल चस्प  पर लगती है,लेकिन वाकई में यह कोई प्राकृतिक रूप से या मानव द्वारा निर्मित कोई न कोई अद्भुत दृश्य है - इसको लेकर वैज्ञानिकों के मध्य मत भेद है . कहीं वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यह मानव द्वारा निर्मित है लेकिन कई इसे प्राकृतिक रूप से निर्मित पिंड मानते हैं |

  मानव द्वारा निर्मित माननीय वाले वैज्ञानिकों को साथ में यह भी तर्क देना होगा कि मंगल ग्रह पर जीवन का अस्तित्व प्राचीन जमानो  रहा होगा | क्योंकि अगर मानव द्वारा निर्मित है तो मानव का अस्तित्व भी तो होगा मानव का अस्तित्व मंगल ग्रह पर हो सकता है क्योंकि मंगल ग्रह की संरचना पृथ्वी की मिलती-जुलती है 

तो वहां की स्थानीय लोगों द्वारा किसी अपने धार्मिक प्रतिष्ठान या पूजा पूजा प्रतिष्ठान के लिए किसी मंदिर मस्जिद और गिरजाघर के रूप में बनाया गया हो लेकिन इसकी कलाकारी और उसका दृश्य वाकई में बेहद दिलचस्प और अद्भुत है हो सकता है कि यह प्राकृतिक रूप से भी निर्मित हो इस आकृति को प्राकृतिक रूप से निर्मित मानने वाले वैज्ञानिक इस बात पर दावा करते हैं,

  कि मंगल ग्रह पर अधिक भीषण गर्मी और सूर्यताप के कारण मंगल ग्रह की धरती से भयंकर विशाल लागे का उद्गार हुआ लेकिन किसी चट्टान की टकराव के कारण यह लावा एक छोटे से छेद से जब गुजरा तो इसकी आकृति ऐसे ही प्राकृतिक रूप से बन गई और स्थानीय लोगों ने यहां पर अपनी धाक जमा ली -लेकिन दोनों ही मतों में मानव का अस्तित्व होने की संभावनाओं को पूरी पूरी प्रकट की गई है हो सकता है यह तस्वीर वैज्ञानिकों के अनुसार प्राकृतिक रूप से निर्मित कोई पिंडदान ज्वालामुखी है-


मंगल ग्रह के बारे में जानकारी, तथ्य, जीवन-संभावना - information about mars in hindi


मंगल ग्रह (mars planet) सौर मंडल का चौथा ग्रह है और दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। इसका अंग्रेजी नाम Mars, एक रोमन देवता के नाम के आधार पर रखा गया था।

इसके सतह पर आयरन ऑक्साइड काफी अधिक मात्रा में है जिसके कारण इसका रंग गहरा लाल है, अतः इसे red प्लेनेट के नाम से भी जाना जाता है। यह खुली आँखों से देखा जा सकता है।

इस ग्रह का अपना मैग्नेटिक क्षेत्र नहीं है। यह एक terrestrial ग्रह जिसका वायुमंडल बहुत पतला है। इस ग्रह के दो चन्द्रमा हैं – फोबोस एवं डीमोस।

पृथ्वी के दिन के हिसाब से सूर्य कि परिक्रमा करने में मंगल 687 दिन लगाता है। गैलीलियो ने अपने टेलिस्कोप के द्वारा इस ग्रह कि खोज कि थी।

मंगल ग्रह की भौतिक विशेषताएं (Physical Characteristics of Mars in Hindi)

मंगल के सतह में बहुत ज्यादा अवस्था में आयरन सहित खनिज पाए जाते हैं। सतह पर पाए जाने वाले धूल और पत्थरों में भी आयरन काफी मात्रा में विद्यमान रहता है। आयरन के खनिजों का ऑक्सीकरण (oxidize) हो जाता है जिससे वहां की मिट्टी लाल है।

यहाँ पर ठन्डे एवं पतले वायुमंडल होने के कारण तरल जल यहाँ ज्यादा देर तक स्थिर रह ही नहीं पाता। व्यास में मंगल पृथ्वी का आधा है, लेकिन वहां का भूभाग लगभग पृथ्वी का आधा है। इस ग्रह पर सौर मंडल के कुछ बहुत ऊँचे पहाड़ एवं गहरी घाटियां मौजूद हैं। Olympus Mono नामक पहाड़ 27 किमी लम्बा है। दूसरी तरफ Valles Maarineries नामक एक घाटी है जो 10 किमी तक गहरा है और 4000 किमी तक चौरा है।

इस ग्रह पर सौर मंडल के सबसे विशालतम सक्रिय ज्वालामुखी स्थित हैं जिसका नाम Olympus Mons है। इसका व्यास 600 किमी है। यह एक ढाल के रूप में विराजमान है जो बहते हुए लावा के सुख जाने पर बने होंगे। यहाँ कई अन्य सक्रिय ज्वालामुखी भी हैं। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि Valles Marineris का निर्माण क्रस्ट भाग के खिंचाव और फैलाव से हुआ होगा। इस घाटी के अंदर भी कई घाटी मौजूद हैं जोकि 100 किमी तक फैले हुए हैं। इन घाटियों के सतह पर मौजूद गहरे निशानों को देख कर लगता हैं जैसे यहाँ कभी पानी मौजूद रहा होगा।

सूर्य से ज्यादा दूरी होने के कारण मंगल का तापमान पृथ्वी से बहुत कम है। यहाँ का औसतन तापमान माइनस 60॰ सेल्सियस है। वहां के शीतकालीन मौसम के दौरान तापमान माइनस 125॰ सेल्सियस रहता है। यहाँ के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस प्रधान है एवं पृथ्वी के हिसाब से 100 गुना कम घना है। शीतकालीन मौसम के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड गैस जम जाता है।

मंगल ग्रह पर किये गए शोध (Researches About Mars in Hindi)

वहां के मिट्टी के एवं अन्य नमूनों के अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह कहा है कि मंगल का वायुमंडल पहले बहुत घना एवं गाढ़ा था जहाँ जिसके कारण इसके सतह पर पानी के स्रोत थे।
यहाँ शीतकाल में कार्बन डाइऑक्साइड सहित बर्फीले बादलों का निर्माण होता है।

मंगल ग्रह पर बहुत भयानक धूल भरी आंधियां चलती हैं जो कई महीनो तक विराजमान रहती हैं। तेज हवा के कारण बहुत अधिक मात्रा में धूल उड़ता हैं जिसके कारण पूरा वातावरण गर्म हो जाता है।

इस ग्रह के बारे में जानने के लिए नासा ने साल 1960 के दशक से यहां मिशन भेजना शुरू कर दिया था। इससे पता चला कि मंगल एक बंजर ग्रह है। जैसे कि माना जाता था वहां जीवन होने के कोई संकेत नहीं मिले। साल 1971 Mariner 9 मिशन ने मंगल के चक्कर लगाए एवं उसके 80 प्रतिशत भाग का मापीकरण किया। इसने ज्वालामुखियों एवं घाटियों कि भी खोज की।

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Monday, August 19, 2019

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?


एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?

  1. क्या परग्रही/एलीयन पृथ्वी पर आते है?
  2. क्या वे पृथ्वी पर फ़िल्मों मे दिखाये अनुसार आक्रमण कर सकते है?
  3. क्या एलीयन/परग्रही जीवो का अस्तित्व है ?

तो आएये जानते है ..

नमस्कार दोस्तों – आप देख रहे है .. रहस्य hindi टीवी

क्या एलीयन/परग्रही जीवो का अस्तित्व है ?


वर्तमान विज्ञान के अनुसार पृथ्वी के बाहर जीवन ना पनपने का कोई कारण नही है। पृथ्वी या सौर मंडल मे ऐसी कोई विशेषता नही है कि केवल पृथ्वी पर ही जीवन की संभावना हो।

इस विशाल ब्रह्मांड में क्या पृथ्वी के अलावा सर्वत्र निर्जीव है ?  जिन तत्वों से धरती की चीजों का निर्माण हुआ है वे कमोबेश समूचे ब्रह्मांड में पाए जाते हैं। भौतिक विज्ञान के जो नियम पृथ्वी की वस्तुओं पर लागू होते हैं वहीं नियम अति दूरस्थ पिंडों के पदार्थ पर भी लागू होते हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि केवल धरती पर ही जीवन की उत्पत्ति और विकास संभव है। ब्रह्मांड के अन्य पिंडों पर जीवन का हमसे भी अधिक उन्नत सभ्यताओं का अस्तित्व संभव है। परग्रही/एलीयन जीवों का भी अस्तित्व है |

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?


 दोस्तों - विडियो देखने के बाद चेंनल को subscribe करना मत भुलना जी ||



क्या वे पृथ्वी पर फ़िल्मों मे दिखाये अनुसार आक्रमण कर सकते है?



शायद नही। तारों के मध्य दूरी अत्याधिक होती है। सूर्य के सबसे निकट का तारा प्राक्सीमा सेंटारी 4 प्रकाश वर्ष दूर है, उससे प्रकाश को भी हम तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगते है। प्रकाश की गति अत्याधिक है, वह एक सेकंड मे लगभग तीन लाख किमी की यात्रा करता है। तुलना के लिये सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुँचने केवल आठ मिनट लगते है। कई प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने के लिये इतनी दूरी तक यात्रा करने मे वर्तमान के हमारे सबसे तेज राकेट को भी सैकड़ों वर्ष लगेंगे।

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?


ऐसी लंबी यात्रा मे ढेर सारी अड़चने है, जिसमे कई वर्षो की इतनी लंबी यात्रा मानव या किसी भी अन्य बुद्धिमान जीव के लिये आसान नही होगी। यात्रा मे लगने वाले यान के निर्माण मे ढेर सारी प्रायोगिक मुश्किले आयेंगी, जैसे इस यान मे इस लंबी यात्रा के लिये राशन, पानी, कपड़े , ऊर्जा का इंतज़ाम करना होगा। यान मे कई वर्षो की भोजन सामग्री ले जाना संभव नही होगा, ऐसी स्थिति मे यान मे ही कृषि, पेड़, पौधे उगाने की व्यवस्था करनी होगी। विशाल यान के संचालन तथा यात्रीयों के प्रयोग के ऊर्जा के निर्माण के लिये बिजली संयत्र का निर्माण करना होगा। यान मे वायु से विषैली गैस जैसे कार्बन डाय आक्साईड को छान कर आक्सीजन के उत्पादन मे संयत्र चाहीये होंगे। प्रयोग किये गये जल के पुनप्रयोग के लिये संयत्र, उत्पन्न कचरे के पुनप्रयोग के लिये संयत्र चाहिये होंगे। इन सभी संयंत्रो के यान मे लगाने पर वह किसी छोटे शहर के आकार का हो जायेगा। इतना बड़ा यान पृथ्वी या ग्रह पर निर्माण कर अंतरिक्ष मे भेजना भी आसान नही है, इस आकार के यान का निर्माण भी अंतरिक्ष मे ही करना होगा।


इतने विशाल यान का निर्माण हो भी जाये तो इस यान के अंतरिक्ष यात्रीयों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करना होगा। यान के अंतरिक्षयात्रीयों के दल मे हर क्षेत्र से विशेषज्ञ चूनने होगे जिसमे इंजीनियर, खगोलशास्त्री, चिकित्सक इत्यादि प्रमुख होंगे। यदि यात्रा समय 30-40 वर्ष से अधिक हो तो इन यात्रीयों मे स्त्री-पुरुष जोड़ो को भेजना होगा जिससे इतनी लंबी यात्रा मे नयी यात्रीयों की नयी पिढी तैयार हो और वह इस यात्रा को आगे बढ़ाये। इस अवस्था मे यान मे पाठशाला और शिक्षक भी चाहीये होंगे।


एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - Do they come to Earth on the alien side?


लंबी यात्रा की इन सब परेशानीयो को देखते हुये यह स्पष्ट है कि पारंपरिक तरिके के यानो से अन्य तारामंडलो की यात्रा अत्याधिक कठीन और चुनौति भरी है। इस कठीनायी का हल है प्रकाशगति या उससे तेज गति के यानो का निर्माण। ध्यान रहे कि प्रकाशगति से तेज चलने वाले यान भी सबसे निकट के तारे से आवागमन मे कम से कम 8 वर्ष लेंगे, जबकि अंतरिक्ष मे दूरीयाँ सैकड़ो, हजारो या लाखो प्रकाशवर्ष मे होती है।

प्रकाश गति से तेज यान

प्रकाशगति से तेज यात्रा मे सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वैज्ञानिक नियमो के अनुसार प्रकाश गति से या उससे तेज यात्रा संभव नही है। यह आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत का उल्लंघन है जिसके अनुसार प्रकाशगति किसी भी कण की अधिकतम सीमा है। कोई भी वस्तु जो अपना द्रव्यमान रखती है वह प्रकाशगति प्राप्त नही कर सकती है; उसे प्रकाशगति प्राप्त करने अनंत ऊर्जा चाहिये जोकि संभव नही है।

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - Do they come to Earth on the alien side?

मान लेते है कि किसी तरह से सापेक्षतावाद के इस नियम का तोड़ निकाल लिया गया और प्रकाश गति से यात्रा करने वाला यान बना भी लिया गया। इस अवस्था मे समय विस्तार (Time Dilation) वाली समस्या आयेगी। हम जानते है कि समय कि गति सर्वत्र समान नही होती है। प्रकाश गति से चलने वाले यान मे समय की गति धीमी हो जायेगी, जबकि पृथ्वी/एलीयन ग्रह पर समय की गति सामान्य ही रहेगी। प्रकाश गति से चलने वाला यान को पृथ्वी से प्राक्सीमा सेंटारी तक पहुँचने मे 4 वर्ष लगेंगे लेकिन पृथ्वी पर सदियाँ बीत जायेंगी।

इन सभी प्रायोगिक कारणों से एलीयन का पृथ्वी पर आना संभव नही लगता है।

एलीयन क्या है ? क्या वे पृथ्वी पर आते है ? - kya-alien-hote-hai ?

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Friday, August 16, 2019

महाप्रलय - ऐसे होगा प्रथ्वी का अन्त - (when will be end of the world)

महाप्रलय - ऐसे होगा प्रथ्वी का अन्त - (when will be end of the world)

 महाप्रलय - ऐसे होगा प्रथ्वी का अन्त - (when will be end of the world)

प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल कारण प्रकृति में सर्वथा लीन हो जाना। प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।

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हिन्दू शास्त्रों में मूल रूप से प्रलय के चार प्रकार बताए गए। पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना, दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाना, तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे, पुन: शून्यावस्था में हो जाना। इस विनाश लीला को नित्य, आत्यन्तिक, नैमित्तिक और प्राकृत प्रलय में बांटा गया है।

जिसका जन्म है उसकी मृत्यु भी तय है। जिसका उदय होता है, उसका अस्त होना भी तय है, ताकि फिर उदय हो सके। यही सृष्टि चक्र है। इस संसार की रचना कैसे हुई और कैसे इसका संचालन हो रहा है और कैसे इसके विलय हो जाएगा। इस संबंध में पुराणों में विस्तार से उल्लेख मिलता है।

पुराणों में सृष्टि उत्पत्ति, जीव उद्भव, उत्थान और प्रलय की बातों को सर्गों में विभाजित किया गया है। हालांकि पुराणों की इस धारणा को विस्तार से समझा पाना कठिन है। इसीलिए हम ब्रह्मांड की बात न करते हुए सिर्फ धरती पर सृष्टि विकास, उत्थान और प्रलय के बारे में बताएंगे।

महाप्रलय - ऐसे होगा प्रथ्वी का अन्त - (when will be end of the world)


जब-जब पृथ्वी पर प्रलय आता है भगवान विष्णु अवतरित होते हैं पहली बार जब जल प्रलय आया तो प्रभु मत्स्य अवतार में अवतरित हुए और कलयुग के अंत में जब महाप्रलय होगा तब कल्कि अवतार में अवतरित होंगे।

कलियुग के अंत में होगी प्रलय तब कैसा होगा माहौल : श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कंध में कलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवती परीक्षितजी से कहते हैं, ज्यों ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा, त्यों त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।... अर्थात लोगों की आयु भी कम होती जाएगी जब कलिकाल बढ़ता चला जाएगा।...
कलयुग के अंत में...जिस समय कल्कि अवतार अव‍तरित होंगे उस समय मनुष्य की परम आयु केवल 20 या 30 वर्ष होगी। जिस समय कल्कि अवतार आएंगे। चारों वर्णों के लोग क्षुद्रों (बोने) के समान हो जाएंगे। गौएं भी बकरियों की तरह छोटी छोटी और कम दूध देने वाली हो जाएगी।...वर्षा नहीं हुआ करेगी...भयंकर तूफान चला करेंगे। कलियुग के अंत में भयंकर तूफान और भूकंप ही चला करेंगे। लोग मकानों में नहीं रहेंगे। लोग गड्डे खोदकर रहेंगे। धरती का तीन हाथ अंश अर्थात लगभग साढ़े चार फुट नीचे तक धरती का उपजाऊ अंश नष्ट हो जाएगा। भूकंप आया करेंगे।... कलियुग का अंत होते होते मनुष्यों का स्वभाव गधों जैसा हो जाएगा। लोग प्राय: गृहस्थी का भार ढोनेवाले और विषयी हो जाएंगे। ऐसी ‍स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिए सतगुण स्वीकार करके स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।

महाप्रलय - ऐसे होगा प्रथ्वी का अन्त - (when will be end of the world)


सूक्ष्मवेद अनुसार राजा हरिशचंद्रजी जो वर्तमान में स्वर्ग के अंदर हैं वो ही श्री विष्णुजी की आज्ञा से कल्कि नामक अवतार धारणकर आवेंगे। वे विष्णु लोक में विराजमान है जहां वे अपने पुण्यों का फल भोग रहे हैं।

महाभारत : महाभारत में कलियुग के अंत में प्रलय होने का जिक्र है, लेकिन यह किसी जल प्रलय से नहीं बल्कि धरती पर लगातार बढ़ रही गर्मी से होगा। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख मिलता है कि कलियुग के अंत में सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। संवर्तक नाम की अग्रि धरती को पाताल तक भस्म कर देगी। वर्षा पूरी तरह बंद हो जाएगी। सब कुछ जल जाएगा, इसके बाद फिर बारह वर्षों तक लगातार बारिश होगी। जिससे सारी धरती जलमग्र हो जाएगी।...जल में फिर से जीव उत्पत्ति की शुरुआत होगी।

महाविनाश कब होगा जानिए : श्रीमदभागवत के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दो कल्पों के बाद सृष्टि का अंत होता है। हर कल्प में एक अर्ध प्रलय होती है। दो कल्पों का अर्थ है कि दो हजार चर्तुयुग। इसी प्रकार दूसरा कल्प पूरा होने पर प्रलय आता है यानि सृष्टि का विनाश हो जाता है। इसके बाद पुन: सृष्टि की उत्पत्ति होती है और यही क्रम अनवरत जारी रहता है।

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Tuesday, August 13, 2019

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं ? - what is below the earth in space


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


Youtube  जैसे प्लेटफॉर्म पर कुछ राहुल गांधी भी मिलते हैं। इनके विचार मर्यादा तोड़ने पर विवश कर देते हैं। ये बात उनके प्रोफाइल का दो मिनट अध्ययन करके पता चल जाता है। कुछ लोगों यहाँ वाल्मीकि और वेदव्यास भी मोजूद है । ऐसे ही कुछ कारणों से ये उत्तर बस आपको ही समर्पित करता हूं जिससे कोई और प्रश्न ना करे।


तो आये जानते है आखिर कार प्रथ्वी किस पर खड़ी है ओर इसके निचे किया है |


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space





वैज्ञानिकता प्रमाणिकता पर टिकी होती है। आधुनिक वैज्ञानिकता उन मशीनों पर आश्रित होती है जिसे इंसान ने खुद बनाया। साधारण इंसान की दिमाग तीन से चार प्रतिशत ही चलता है ये भी आज का ही विज्ञान बोलता है, और इंसान की भी एक्सपाइरी डेट होती है। आज का विज्ञान कहता है कि तारों को देखना है तो इस मशीन से देखो नजदीक दिखेगा। सौ साल बाद का विज्ञान कोई और मशीन लेकर आयेगा। सनातन धर्म में पहले ही दिव्य दृष्टि का उल्लेख है, संजय एवं कई ऋषि मुनि गण इसके उदाहरण हैं।

रामायण को तो सभी मानते हैं। राम को जो काल्पनिक कहते थे वो भी मानते हैं, राम को जो आदर्श पति नही मानते वो भी उनके अस्तित्व को मानते हैं। रामायण की बस कुछ ही बातों को जानते हैं बस यही दोष है।

परशुराम जी पर क्रोधित होकर लक्ष्मण जी ने कहा था कि मैं अपने भैया की शक्ति का अंश मात्र भी नही हूं लेकिन चाहूं तो पृथ्वी को गेंद की भांति उछाल सकता हूं। उस जमाने में दिया गया हिंट कुछ लोग अब तक नही समझे। आज का विज्ञान अभी इतना तेज नही हुआ कि धरती पर एकमात्र उपस्थित भगवान हनुमान जी को कैमरे पर दिखा सके लेकिन अध्यात्म के विज्ञान पर चलने वाला आज भी उनके दर्शन प्राप्त कर लेता है, कई सिद्ध स्थान हैं जहां वो साक्षात हैं।

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


लेकिन आज का विझान

धरती तथा अन्य ग्रहों, आपस में बनी हुई गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बल पर टिके हुएं है।


पौराणिक कथाओं में ये वर्णन है कि शेषनाग भगवान विष्णु की शय्या है और उनके माथे पर पृथ्वी टिकी हुई है। आधुनिक विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि पृथ्वी शेषनाग पर नही टिकी हुई है।

हमारे ग्रंथों में बहुत सारी बातें सांकेतिक रूप में भी कही गयी हैं। शेष (नाग) का वर्णन भी शायद ऐसा ही सांकेतिक वर्णन हो सकता है।

शेष का अर्थ है जो बचा रह जाये। अभी तक कि वैज्ञानिक शोध में यही पता चलता है कि पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां मानव जीवन बचा हुआ है। तो शेष का ये भी एक अर्थ है।

कई पौराणिक शोधकर्ता ये मानते हैं कि पृथ्वी की प्लेटें वो शेषनाग का सांकेतिक रूप हैं। पुराणों में शेषनाग के कई सर बताये गए हैं और ऐसा कहा गया है कि जब शेषनाग पृथ्वी को अपने एक सर से दूसरे सर पर ले जाते हैं तो भूकंप आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम देखें तो जब भी पृथ्वी की प्लेट्स में हलचल होती है तो भूकंप आते हैं। मेरी मान्यता ये हैं पृथ्वी की प्लेटें (एक ऐसी थ्योरी है जिससे हम आधुनिक विज्ञान और पौराणिक कथाओं की सांकेतिक भाषा के बीच मे थोड़ा संबंध देख सकते हैं।

अंत मे मैं यही कहना चाहता हूँ कि सिर्फ आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से देखने पर पृथ्वी के शेषनाग पर टिके होने की बात कोरी कल्पना लगेगी, लेकिन पौराणिक कथाओं के पीछे की सांकेतिक भाषा को ध्यान से देखें तो हमें अपने ब्रह्मांड के कई रहस्य उसमे वर्णित मिलेंगे (जिनको आधुनिक विज्ञान भी मानता है)

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


लेकिन साथ ही साथ यह भी मानता है की 

धरती कहीं पर भी नहीं टिकी हुई बल्कि अंतरिक्ष में एक निश्चित दायरे में घूम रही है।

अपनी धुरी के अलावा ये सूर्य की विशाल परिक्रमा करती रहती है। ये स्कूल में बहुत छोटी कक्षाओं में ही पढ़ाया जाता है।



ना केवल धरती बल्कि सूरज चाँद तारे सब अंतरिक्ष में निस्श्चित दायरों में परिक्रमाएँ करते हैं।

करोड़ों तारे एक बड़े समूह में, जिसे गैलिक्सी कहते हैं , विचरण करते हैं। लाखों गैलिक्सी अंतरिक्ष में एक केंद्र बिंदु से परे बड़ी तेज़ी से भाग रही हैं।

कहीं कुछ टिका हुआ नहीं है।

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


Chandrayaan 2 Mission - ISRO


चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान 22 जुलाई से लेकर 6 अगस्त तक पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इसके बाद 14 अगस्त से 20 अगस्त तक चांद की तरफ जाने वाली लंबी कक्षा में यात्रा करेगा. 20 अगस्त को ही यह चांद की कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद 11 दिन यानी 31 अगस्त तक वह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. फिर 1 सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ यात्रा शुरू करेगा. 5 दिन की यात्रा के बाद 6 सितंबर को विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा. लैंडिंग के करीब 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से निकलकर चांद की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए उतरेगा.

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO



वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांद के जिस हिस्से की पड़ताल का जिम्मा चंद्रयान-2 को मिला है, वह सौर व्यवस्था को समझने और पृथ्वी के विकास क्रम को जानने में भी मददगार हो सकता है.

चंद्रयान-2 चांद पर पानी की मौजूदगी तलाशने के अलावा भविष्य में यहां मनुष्य के रहने की संभावना भी तलाशेगा.

चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं. वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है. रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा.
चंद्रयान-2' के लॉन्च के साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा है.

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


मिशन के दौरान जल के संकेत तलाशने के अलावा 'शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड' तलाश किए जाएंगे, जिसके ज़रिये यह जानने में भी मदद मिल सकेगी कि हमारे सौरमंडल, उसके ग्रहों और उनके उपग्रहों का गठन किस प्रकार हुआ था.


चंद्रयान-2 के कुल तीन मुख्य हिस्से हैं, पहला हिस्सा ऑर्बिटर है. चांद की सतह के नजदीक पहुंचने के बाद चंद्रयान चांद के साउथ पोल की सतह पर उतरेगा. इस प्रक्रिया में 4 दिन लगेंगे. चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्रम) अपनी कक्षा बदलेगा. फिर वह सतह की उस जगह को स्कैन करेगा जहां उसे उतरना है. लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर उतर जाएगा.

लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा. रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा. फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा, इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी. 


चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO



इस मिशन के बाद भारत कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग की डील हासिल कर पाएगा, यानी भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित कर सकेगा, जिसकी मदद से हमें अन्य देशों के उपग्रहों के अंतरिक्ष में भेजने के करार हासिल हो पाएंगे. चंद्रयान-2 जैसा जटिल मिशन सारी दुनिया को संदेश देगा कि भारत जटिल तकनीकी मिशनों को कामयाब करने में भी पूरी तरह सक्षम है. रोवर प्रज्ञान चांद पर 500 मीटर तक घूम सकता है। यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है. रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है. इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे की है |


इससे पहले रूस ने किया था मदद का वादा


नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा. वह इसरो को लैंडर देगा. साल 2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली. साल 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया. जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई.


इसके बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने खुद लैंडर बनाने की पहल की. इस मिशन की सफलता से यह साफ हो जाएगा कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज  nhi hai .. वे कोई भी मिशन पूरा कर सकते हैं.

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO

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