Tuesday, August 13, 2019

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं ? - what is below the earth in space


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


Youtube  जैसे प्लेटफॉर्म पर कुछ राहुल गांधी भी मिलते हैं। इनके विचार मर्यादा तोड़ने पर विवश कर देते हैं। ये बात उनके प्रोफाइल का दो मिनट अध्ययन करके पता चल जाता है। कुछ लोगों यहाँ वाल्मीकि और वेदव्यास भी मोजूद है । ऐसे ही कुछ कारणों से ये उत्तर बस आपको ही समर्पित करता हूं जिससे कोई और प्रश्न ना करे।


तो आये जानते है आखिर कार प्रथ्वी किस पर खड़ी है ओर इसके निचे किया है |


आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space





वैज्ञानिकता प्रमाणिकता पर टिकी होती है। आधुनिक वैज्ञानिकता उन मशीनों पर आश्रित होती है जिसे इंसान ने खुद बनाया। साधारण इंसान की दिमाग तीन से चार प्रतिशत ही चलता है ये भी आज का ही विज्ञान बोलता है, और इंसान की भी एक्सपाइरी डेट होती है। आज का विज्ञान कहता है कि तारों को देखना है तो इस मशीन से देखो नजदीक दिखेगा। सौ साल बाद का विज्ञान कोई और मशीन लेकर आयेगा। सनातन धर्म में पहले ही दिव्य दृष्टि का उल्लेख है, संजय एवं कई ऋषि मुनि गण इसके उदाहरण हैं।

रामायण को तो सभी मानते हैं। राम को जो काल्पनिक कहते थे वो भी मानते हैं, राम को जो आदर्श पति नही मानते वो भी उनके अस्तित्व को मानते हैं। रामायण की बस कुछ ही बातों को जानते हैं बस यही दोष है।

परशुराम जी पर क्रोधित होकर लक्ष्मण जी ने कहा था कि मैं अपने भैया की शक्ति का अंश मात्र भी नही हूं लेकिन चाहूं तो पृथ्वी को गेंद की भांति उछाल सकता हूं। उस जमाने में दिया गया हिंट कुछ लोग अब तक नही समझे। आज का विज्ञान अभी इतना तेज नही हुआ कि धरती पर एकमात्र उपस्थित भगवान हनुमान जी को कैमरे पर दिखा सके लेकिन अध्यात्म के विज्ञान पर चलने वाला आज भी उनके दर्शन प्राप्त कर लेता है, कई सिद्ध स्थान हैं जहां वो साक्षात हैं।

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


लेकिन आज का विझान

धरती तथा अन्य ग्रहों, आपस में बनी हुई गुरुत्वाकर्षण शक्ति के बल पर टिके हुएं है।


पौराणिक कथाओं में ये वर्णन है कि शेषनाग भगवान विष्णु की शय्या है और उनके माथे पर पृथ्वी टिकी हुई है। आधुनिक विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि पृथ्वी शेषनाग पर नही टिकी हुई है।

हमारे ग्रंथों में बहुत सारी बातें सांकेतिक रूप में भी कही गयी हैं। शेष (नाग) का वर्णन भी शायद ऐसा ही सांकेतिक वर्णन हो सकता है।

शेष का अर्थ है जो बचा रह जाये। अभी तक कि वैज्ञानिक शोध में यही पता चलता है कि पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां मानव जीवन बचा हुआ है। तो शेष का ये भी एक अर्थ है।

कई पौराणिक शोधकर्ता ये मानते हैं कि पृथ्वी की प्लेटें वो शेषनाग का सांकेतिक रूप हैं। पुराणों में शेषनाग के कई सर बताये गए हैं और ऐसा कहा गया है कि जब शेषनाग पृथ्वी को अपने एक सर से दूसरे सर पर ले जाते हैं तो भूकंप आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम देखें तो जब भी पृथ्वी की प्लेट्स में हलचल होती है तो भूकंप आते हैं। मेरी मान्यता ये हैं पृथ्वी की प्लेटें (एक ऐसी थ्योरी है जिससे हम आधुनिक विज्ञान और पौराणिक कथाओं की सांकेतिक भाषा के बीच मे थोड़ा संबंध देख सकते हैं।

अंत मे मैं यही कहना चाहता हूँ कि सिर्फ आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से देखने पर पृथ्वी के शेषनाग पर टिके होने की बात कोरी कल्पना लगेगी, लेकिन पौराणिक कथाओं के पीछे की सांकेतिक भाषा को ध्यान से देखें तो हमें अपने ब्रह्मांड के कई रहस्य उसमे वर्णित मिलेंगे (जिनको आधुनिक विज्ञान भी मानता है)

आखिर धरती किस पर खड़ी है और पृथ्वी के नीचे क्या हैं  ? - what is below the earth in space


लेकिन साथ ही साथ यह भी मानता है की 

धरती कहीं पर भी नहीं टिकी हुई बल्कि अंतरिक्ष में एक निश्चित दायरे में घूम रही है।

अपनी धुरी के अलावा ये सूर्य की विशाल परिक्रमा करती रहती है। ये स्कूल में बहुत छोटी कक्षाओं में ही पढ़ाया जाता है।



ना केवल धरती बल्कि सूरज चाँद तारे सब अंतरिक्ष में निस्श्चित दायरों में परिक्रमाएँ करते हैं।

करोड़ों तारे एक बड़े समूह में, जिसे गैलिक्सी कहते हैं , विचरण करते हैं। लाखों गैलिक्सी अंतरिक्ष में एक केंद्र बिंदु से परे बड़ी तेज़ी से भाग रही हैं।

कहीं कुछ टिका हुआ नहीं है।

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


Chandrayaan 2 Mission - ISRO


चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान 22 जुलाई से लेकर 6 अगस्त तक पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. इसके बाद 14 अगस्त से 20 अगस्त तक चांद की तरफ जाने वाली लंबी कक्षा में यात्रा करेगा. 20 अगस्त को ही यह चांद की कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद 11 दिन यानी 31 अगस्त तक वह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. फिर 1 सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ यात्रा शुरू करेगा. 5 दिन की यात्रा के बाद 6 सितंबर को विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा. लैंडिंग के करीब 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से निकलकर चांद की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए उतरेगा.

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO



वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि चांद के जिस हिस्से की पड़ताल का जिम्मा चंद्रयान-2 को मिला है, वह सौर व्यवस्था को समझने और पृथ्वी के विकास क्रम को जानने में भी मददगार हो सकता है.

चंद्रयान-2 चांद पर पानी की मौजूदगी तलाशने के अलावा भविष्य में यहां मनुष्य के रहने की संभावना भी तलाशेगा.

चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं. वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है. रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा.
चंद्रयान-2' के लॉन्च के साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा है.

चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO


मिशन के दौरान जल के संकेत तलाशने के अलावा 'शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड' तलाश किए जाएंगे, जिसके ज़रिये यह जानने में भी मदद मिल सकेगी कि हमारे सौरमंडल, उसके ग्रहों और उनके उपग्रहों का गठन किस प्रकार हुआ था.


चंद्रयान-2 के कुल तीन मुख्य हिस्से हैं, पहला हिस्सा ऑर्बिटर है. चांद की सतह के नजदीक पहुंचने के बाद चंद्रयान चांद के साउथ पोल की सतह पर उतरेगा. इस प्रक्रिया में 4 दिन लगेंगे. चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्रम) अपनी कक्षा बदलेगा. फिर वह सतह की उस जगह को स्कैन करेगा जहां उसे उतरना है. लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर उतर जाएगा.

लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा. रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा. फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा, इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी. 


चंद्रयान-2 के 48 दिन की यात्रा के विभिन्न पड़ाव – Chandrayaan 2 Mission - ISRO



इस मिशन के बाद भारत कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग की डील हासिल कर पाएगा, यानी भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित कर सकेगा, जिसकी मदद से हमें अन्य देशों के उपग्रहों के अंतरिक्ष में भेजने के करार हासिल हो पाएंगे. चंद्रयान-2 जैसा जटिल मिशन सारी दुनिया को संदेश देगा कि भारत जटिल तकनीकी मिशनों को कामयाब करने में भी पूरी तरह सक्षम है. रोवर प्रज्ञान चांद पर 500 मीटर तक घूम सकता है। यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है. रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है. इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे की है |


इससे पहले रूस ने किया था मदद का वादा


नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा. वह इसरो को लैंडर देगा. साल 2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली. साल 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया. जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई.


इसके बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने खुद लैंडर बनाने की पहल की. इस मिशन की सफलता से यह साफ हो जाएगा कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज  nhi hai .. वे कोई भी मिशन पूरा कर सकते हैं.

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Sunday, August 11, 2019

जानिए हवा में कैसे हुई कल्पना चावला की मौत,- #Kalpana_chawla death video

जानिए हवा में कैसे हुई कल्पना चावला की मौत,- #Kalpana_chawla death video

  1.   कोन थी कल्पना चावला और किया था उनका सपना , और केसे हुआ सच.
  2.   Keise हुई थी कल्पना चावला मौत
  3.    अन्तरिक्ष में जाने से पहले ही तय हो गई थी कल्पना चावला की मौत
जानिए हवा में कैसे हुई कल्पना चावला की मौत,- #Kalpana_chawla death video


अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की मौत 1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष से वापस लौटते वक्त हुई थी. अक्सर कल्पना कहा करती थीं मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं, हर पल अंतरिक्ष के लिए बिताया और इसी के लिए मरूंगी. यह बात उनके लिए सच भी साबित हुई. उन्होंने 41 साल की उम्र में अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा की, जिससे लौटते समय वह एक हादसे का शिकार हो गईं. आइए जानते हैं उनकी लाइफ से जुड़ी ऐसी बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं...


कैसे सपना हुआ सच

कल्पना हरियाणा के करनाल में बनारसी लाल चावला के घर 17 मार्च 1962 को जन्मी थीं. अपने चार भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं. प्यार से घर में उन्हें मोंटू पुकारा जाता था. कल्पना में 8वीं क्लास के दौरान ही अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर कर दी थी, लेकिन उनके पिता की इच्छा थी कि वह डॉक्टर या टीचर बनें. उनकी शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई. स्कूली पढ़ाई के बाद कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज 1982 में ग्रेजुएशन पूरा किया.


इसके बाद वह अमेरिका चली गईं और 1984 टेक्सस यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की. 1995 में कल्पना नासा में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर शामिल हुईं और 1998 में उन्हें अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया. कल्पना के बारे में कहा जाता है कि वह आलसी और असफलता से घबराने वाली नहीं थीं !

जानिए हवा में कैसे हुई कल्पना चावला की मौत,- #Kalpana_chawla death video



ऐसे हुई मौत


जब उनका विमान कामयाबी के आगाज के साथ धरती पर लौट रहा था. तभी अचानक सफलता का यह जश्न पलभर में ही मातम में बदल गया और हर मुस्कुराते चेहरे पर उदासी छा गई. सभी बेसब्री से कल्पना चावला के लौटने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन खबर कुछ और ही आई. वैज्ञानिकों के मुताबिक- जैसे ही कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हुआ.
पहले ही तय हो गई थी कल्पना चावला की मौत


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कोलंबिया स्पेस शटल के उड़ान भरते ही पता चल गया था कि ये सुरक्षित जमीन पर नहीं उतरेगा, तय हो गया था कि सातों अंतरिक्ष यात्री मौत के मुंह में ही समाएंगे. फिर भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. बात हैरान करने वाली है, लेकिन यही सच है. इसका खुलासा मिशन कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर ने किया था.


अंतरिक्ष यात्रा के हर पल मौते के साये में स्पेस वॉक करती रहीं कल्पना चावला और उनके 6 साथी. उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगने दी गई कि वो सुरक्षित धरती पर नहीं आ सकते. वो जी जान से अपने मिशन में लगे रहे, वो पल-पल की जानकारी नासा को भेजते रहे लेकिन बदले में नासा ने उन्हें पता तक नहीं लगने दिया कि वो धरती को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा चुके हैं, उनके शरीर के टुकड़ों को ही लौटना बाकी है.


उस वक्त सवाल ये था कि आखिर नासा ने ऐसा क्यों किया? क्यों उसने छुपा ली जानकारी अंतरिक्ष यात्रियों से और उनके परिवार वालों से. लेकिन नासा के वैज्ञानिक दल नहीं चाहते थे कि मिशन पर गये अंतरिक्ष यात्री घुटघुट अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हों को जिएं. उन्होंने बेहतर यही समझा कि हादसे का शिकार होने से पहले तक वो मस्त रहे. मौत तो वैसे भी आनी ही थी.

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इस विडियो में भी पूरी जानकारी के साथ बताया गया है .. तो आप विडियो जरुर देखें ?



विडियो देखने के बाद चेंनल को subscribe करना मत भुलना - धन्यवाद ||

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Thursday, March 28, 2019

Satellite kiya hota hai : दुनिया के पहले उपग्रह की रोचक जानकारी –

Satellite kiya hota hai : दुनिया के पहले उपग्रह की रोचक जानकारी –

World's first world satellite...

दुनिया का पहला संसार उपग्रह कौनसा था ?

हैलो दोस्तों - हम आपका बहुत-बहुत स्वागत करते है। आज हम आपको बताने जा रहे है दुनिया के पहले उपग्रह के बारे में ! यदि आप Fast Satellite Ki Jankari प्राप्त करना चाहते है तो आप बिल्कुल सही पोस्ट पढ़ रहे हैं। इस पोस्ट में हम आपको दुनिया का पहला संसार उपग्रह के बारे में जानकारी देंगे। तथा साथ ही उपग्रह के बारे में भी बताएंगे !


दुनिया का पहला उपग्रह - सन 1960 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नाम नासा ने गुब्बारे के आकार का एक उपग्रह इको-1 छोड़ा था ! जो दुनिया का पहला संसार उपग्रह था ! यह उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में करीब 1600  किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित हुआ था ! स्थापना के बाद फुलाकर इसका आकार करीब 30 मीटर/100 फुट कर दिया गया !
Satellite kiya hota hai

यह बैलून मल्हार नाम की सामग्री से बना था ! मल्हार पर एलुमिनियम की कोटिंग की गई थी, जिससे वह किरणों और तरंगों के प्रवर्तित करती थी ! धरती से भेजे गए रेडियो सिग्नल उपग्रह की सतह से प्रभावित होकर धरती पर वापस आते, पर वह ट्रांसमिशन केंद्र से काफी दूर तक पहुंच जाते ! इससे संचार उपग्रह की अवधारणा का विकास हुआ ! इको-1  ने अमेरिका और यूरोप के बीच काफी अरसे तक ध्वनि संगीत और चित्रों का प्रसारण किया !  सन 1968 में यह आकाश में कहीं गायब हो गया !



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Satellite क्या होता है -  दोस्तों आपने भी कभी ना कभी Satellite के बारे में जानने की कोशिश तो की होगी ! की यह होता क्या है। क्योंकि यह हमसे इतनी दूर होती है की हम इसे देख नहीं पाते है। लेकिन हमारे दैनिक जीवन के अधिकतर काम Satellite पर ही निर्भर होते है। जिसके बारे में आप लोग शायद ही जानते होंगे। हम आपको यह बिल्कुल सरल भाषा में समझाएँगे। आशा करते है की आपको हमारी सभी पोस्ट पसंद आ रही होगी। और इसी तरह आप आगे भी हमारे website पर आने वाली सारी पोस्ट पसंद करते रहे।

Satellite kiya hota hai -

सैटेलाइट पृथ्वी के वातावरण की और पृथ्वी की हर छोटी से बड़ी चीजों की मॉनीटरिंग करता है। यह पृथ्वी के चक्कर लगाती है, Satellite को हिंदी में उपग्रह भी कहते है। चंद्रमा भी एक सैटेलाइट होता है। लेकिन चंद्रमा एक प्राकृतिक उपग्रह होता है। यह मनुष्य के अनुसार नहीं चलता है।
Satellite kiya hota hai

चंद्रमा से ही प्रेरणा लेकर मनुष्य ने अपने खुद के Satellite बनाये है। और उन्हें अंतरिक्ष में छोड़ दिया है। सैटेलाइट एक छोटे से डिब्बे के बराबर भी हो सकते है। और एक बड़े ट्रक के बराबर भी हो सकते है।
सैटेलाइट का आकार उनके काम पर निर्भर करता है की उस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में किस काम के लिए छोड़ा गया है। लेकिन सभी Satellite की बनावट एक जैसी ही होती है।



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Satellite ऊपर कैसे टिके रहते हैं ?

Satellite- ये तो आप जान गए होंगे कि Satellite क्या है या Satellite क्या होता है, लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल यहीं आता है ! कि सैटेलाइट ऊपर हवा में कैसे टिके रहते हैं यह धरती पर गिरते क्यों नहीं है ? तो इसके लेकर बहुत सिंपल नियम है जैसे अगर किसी चीज को अन्तरिक्ष में रहना है, तो उसे अपनी एक गति से किसी बड़े ऑब्जेक्ट का चक्कर लगाते रहना होगा ! इनकी स्पीड प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को अपने ऊपर हावी नहीं होने देती है ! तो इस नियम के चलते ही सारे उपग्रह हवा में ऊपर टिके रहते हैं !

Satellite Kaise Kaam Karta Hai

सैटेलाइट के दोनों तरफ सोलर पैनल लगे होते है। जिनसे इनको उर्जा मिलती है। और इनके बीच में ट्रांसमीटर या रिसीवर होते है जो सिग्नल को रिसीव और भेजने का काम करते है।

इनमें कंट्रोल मोटर भी होती है जिनके द्वारा हम Satellite को रिमोटली कंट्रोल भी कर सकते है।  
अगर इनकी जगह को बदलना हो या एंगल बदलना हो तो यह कंट्रोल मोटर के द्वारा कर सकते है। सैटेलाइट की मेन बॉडी में सैटेलाइट का सारा सर्किट डिज़ाइन किया हुआ रहता है। Satellite को किस काम के लिए बनाया गया है वह सारे ऑब्जेक्ट आपको सैटेलाइट में देखने को मिलते है। अगर उपग्रह को पृथ्वी की इमेज लेने के लिए बनाया गया है तो Satellite में बड़े कैमरा लगाये जाते है।

Satellite kiya hota hai


अगर स्कैनिंग के लिए बनाया गया है तो उसमें स्कैनर लगाये जाते है। Satellite को प्रमुख रूप से कम्युनिकेशन के लिए काम में लिया जाता है। रेडियो और ग्राउंड वेब धरती के पूरी कम्युनिकेशन को कवर नहीं कर सकते इसलिए ज्यादातर Satellite को कम्युनिकेशन के काम में लिया जाता है।

Satellite Ke Prayog
1.      सैटेलाइट का उपयोग बहुत से कामों में किया जाता है, आइये जानते है इनके प्रयोगों के बारे में:
2.      कुछ सैटेलाइट का काम होता है की वह पृथ्वी पर सक्रिय आग का मैप तैयार करे। यह कलर सिस्टम के द्वारा आग के ताप को दिखाता है। जिसके माध्यम से आग को पहचाना जा सकता है।
3.      पर्यावरण को समझने के लिए भी सैटेलाइट तैयार किये गए है। यह समुद्री जीवन को समझते है। पर्यावरण में जो बदलाव होते है उनमें समुद्र का बहुत योगदान होता है।
4.      नासा की एक ब्रांड न्यू सैटेलाइट को 2015 में लाँच किया गया है। इस सैटेलाइट का काम यह है की पृथ्वी के एक इंच पर कितना मॉइस्‍चर है उसका मैप तैयार करे। इस सैटेलाइट का काम यह भी देखना होता है की कहीं धरती बर्फ से तो नहीं जमी है।
5.      सैटेलाइट के द्वारा ही फोन और पेजर को चलाया जा सकता है। 1998 में जब एक सैटेलाइट ने काम करना बंद कर दिया था तो इस वजह से अमेरिका में 80% पेजर ने काम करना बंद कर दिया था।
6.   ग्लोबल फ़ॉरेस्ट सिस्टम सैटेलाइट का डाटा इस्तेमाल करके बताते है की कितनी ज़मीन पर जंगल है। और कितनी ज़मीन कृषि योग्य है। इस डाटा के द्वारा ही सड़क निर्माण और घर का निर्माण किया जाता है।


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आज आपने जाना की दुनिया का पहला संसार उपग्रह कौनसा है और उपग्रह क्या है और साथ ही आपने यह भी जाना की Satellite  काम कैसे करता है ! हम आशा करते है की हमारे द्वारा बतायी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।

हर-बार की तरह प्रेमपूर्वक – धन्यवाद !!

Thursday, November 15, 2018

boya microphones।#boya microphone how to use #boya microphones review।

Boya by m1 - Introduction 

Thanks for choosing BOYS! 

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 BOYA BY-M1 is universal Lavalier Microphone, Whi 

. Ch Can be used With camears, smartphones, and other recordi 


It is designed for reliable and trouble-free performance.
In order to ensure you have a good experience, please read this manual thoroughly and retain it for future reference. 


Package contents -


➨Lapelmicrophone '

 ➨ Foam wind screen

 ➨Clothing clip

➨ Battery(LR44)

Mounting the microphone to your clothing -


. Attach the microphone to the front of your clothing with the clothing clip, about six inches (15-20 cm) 


from your face. 


Notes . Tape a loose loop of the microphone cord to the inside of your clothing. This provides additional strain relief for the microphone cord and isolation from unwanted noise. Before recording an important event, record and play back a short test clip with the microphone attached to ensure audio recording is 


functioning properly. 

Using the microphone with a camera 

1 Plug the 3.5 mm connector into tl're audio inputjack of your DSLR, Point and Shoot camera, or camcorder. 

2 Attach the microphone to your .:|othing (see previous instructions). 

3 Move the switch on the power pack to the Camera (on) setting and begin hlming. 


Note 

Not all cameras have a microphone input. Verify this with your camera manufacturer. Many cameras have headphone, remote control, and other ports that look similar to a microphone input. Make sure that you are using the correct one.

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