Thursday, February 21, 2019

पुलवामा हमला: मसूद अजहर को 'आतंकवादी' क्यों नहीं मानता है चीना ?

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इस साल 1 4 फरवरी को पुलवामा में सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के काफिले पर जैश ए मौहम्मद के आत्मघाती हमले के बाद मसूद अज़हर का नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया है !
जैश ए मोहम्मद पाकिस्तान का एक चरमपंथी समूह है और मसूद अजहर इसके मुखिया हैँ. भारत चाहता है कि मसूद अज़ह्रर को अंतरराट्रीय चरमपंथी घोषित किया जाए !
इसके लिए भारत सुरक्षा परिषद में गुहार लगाता रहा है, लेकिन हर बार चीन नै भारत के प्रस्ताव पर वीटो कर दिया. चीन ऐसा क्यों करता है ?
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इस सवाल पर भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहते हैँ, चीन पाकिस्तानी फौज को मसूद अजहर के मामले में शह देता है. मसूद अजहर पाकिस्तानी फौज का एक वर्चुअल हिस्सा है !
मसूद अजहर, जैश ए मौहम्मद, लाकर ए तैयबा और हाफिज सईद पाकिस्तान क्ती विदेश नीति और सामरिक नीति को आगे बढाने में मदद करते हैं !

विवेक काटजू कहते हैं, "मुझे लगता है कि पाकिस्तानी सैना ने चीन सै विनती क्री है कि आप मसूद अजहर को यूएन के तहत चरमपंथी घोषित ना होने दें. जबकि जैश ए मोहम्मद चरमपंथी संगठन घोषित हो चुका है !
लेकिन मसूद अजहर क्री तरफ़ पाकिस्तानी सैना का विशेष लगाव है और इसी लगाव की वजह सै उन्होंनै चीन को फुसला रखा है कि तो मसूद अजहर को शह देता रहे !

चीन और पाकिस्तान का याराना पुराना है !

इस्लामाबाद में बीबीसी संवाददाता आसिफ़ फ्रारूक्री कहते हैँ, "चीन से पाकिस्तान क्ती दोस्ती हिमालय से ऊंची, समंदर सै गहरी और शहद सै मीठी है. बीचे चार पांच दशक सै हम ये सुनते आ रहे हैँ. पाकिस्तान में बहुत अनिश्चितता रही है, लेकिन ये दोस्ती बदस्तूर जारी है !
पिछले दो तीन साल में इसमें नई जान आई है. पाकिस्तान नै चीन में जमकर निवेश किया है. पाकिस्तान में राजनीति, सैना और आम लोगों में बहुत मुश्किल सै कोई ऐसा मिलेगा जी चीन के खिलाफ़ कुछ कहे !
हालांकि पाकिस्तान में एक ऐसा बुद्धिजीवी वर्ग भी है जो पाकिस्तान में चीन के हद से ज्यादा दखल को ठीक नहीँ मानते और कहते हैँ कि दोस्ती रखनी चाहिए लेकिन लिमिट में रखना चाहिए !

बीजिंग में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सेबल दासगुप्ता मानते हैँ कि चीन पाकिस्तान का साथ क्यों देता है ? इसे समझने के लिए हमें उन बातों से परे जाना होगा जिम्हें सुनने समझने की हमारी आदत पड़ गई है ! सैबल दासगुप्ता कहते है, ' जैसै भारत में ये कहा जाता है कि चीन, पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत के खिलाफ़ कर रहा है ! ये बात कुछ हद तक सही हे. ऐसा करके भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने से रोका जा सकता है. लेकिन चीन और पाकिस्तान के रिश्ते आज के नहीं है !
1 9 5 0 के दशक में काराकोरम दरें को बिना किसी तकनीकी मदद के चौडा किया गया था ताकि चीन के ट्रक पाकिस्तान में जा सकें. आज भी वही एकमात्र ज़रिया है जिससे आप चीन से पाकिस्तान जा सकते हैं आज का चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर वही सडक है जिसे विस्तार दिया गया हे !
सेबल इस दोस्ती का एक और पहलूबताते हैं, इसी तरह अक्साईं चीन का जो हिस्सा है, पाकिस्तान को पता था कि उस हिस्से को संभालना उसके बस की बात नहीँ है. इसलिए पाकिस्तान ने वो हिस्सा चीन को दे दिया. पाकिस्तान और चीन का ये रिश्ता पुराना है !
"बीच में ये हुआ कि अमरीका आया और पाकिस्तान को डालर देने लगा. चीन के पास देने के लिए इतने पैसै तो थे नहीँ. डॉलर सै पाकिस्तान और अमरीका का प्यार परवान चढा. आज भी करीब 60 अरब डॉलर हैँ जी पाकिस्तान को अमरीका को चुकाना है !
"लेकिन अब चीन पाकिस्तान को आर्थिक मदद दे रहा है. वो उसका पडोसी है और भारत के खिलाफ़ भी है. चीन से विमान और टैंक भी मिल रहे हैँ सैना के लिए. पाकिस्तान को और क्या चाहिए."

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मुद्दा मसूद अजहर का

भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहते हैँ कि जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर को भारत के साथ विश्व के अन्य देश भी चरमपंथी मानते हैँ, लेकिन सिर्फ चीन के वीटो क्री वजह से मसूद अजहर हर बार बच निकलता है !
रिहाई के बाद मसूद अज़हर पाकिस्तान गया. पाकिस्तान में उसका जोरदार स्वागत हुआ. रिहाई के कुछ महीनों के बाद उसने बहावलपुर में अपना संगठन बनाया. पाकिस्तान क्री सरकार नै उसकी भरपूर मदद क्री और फिर कश्मीर में उसका इस्तेमाल किया गया !
उनका दावा है, " भारत नै ही नहीं, बल्कि अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और भी कई देश भारत की बात सै सहमत है. उम्हें भी संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1267 के तहत मसूद अज़हर को अंतरराड्रीय चरमपंथी घोषित करने में कोई दिक्वात नहीं है. लेकिन चीन अडंगा लगाए हुए है  इसकी एक ही वजह है ! पाकिस्तान ओर खास तौर पर पाकिस्तान क्री सेना वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता मसूद अजहर के खिलाफ़ भारत के प्रस्ताव पर चीन के वीटो की तीन बजह बताते हैँ वो कहते हैँ, "चीन पहली वजह ये बताता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कुछ नियम कानून हैं जिनका पालन करना होता है. उस हिसाब से जब लिस्टिंग होती है तो हम उस हिसाब सै सोचते हैं !
'दूसरी वजह वो ये बताता है कि मसूर अजहर के खिलाफ़ भारत कोई खास सबूत नहीं दे पाता जिसे हम मान लें ! जब सबूत देंगे तब देखेंगेतीसरी वजह, चीन ये कहता है कि सुरक्षा परिषद के सधी सदस्यों का इस मामले में भारत को समर्थन हासिल नहीं है. ये अलग बात है कि भारत कहता हे कि उसे चीन के अलावा सभी का समर्थन हासिल है !
इस्लामाबाद में बीबीसी संवाददाता आसिफ़ फारूक्री कहते हैं कि पाकिस्तान में भारत क्री तरह इस बात की बहुत चर्चा नहीं होती कि चीन ने भारत के प्रस्ताव पर वीटो कर दिया है वो कहते है, 'चीन के वीटो की वजह पाकिस्तान सै दोस्ती नहीं, बल्कि उसकी भारत से दुश्मनी है. चरमपंथी गुटों को इसी का फायदा मिलता है. दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली बात है. संयुक्त राष्ट्र में चीन का रवैया यही दिखाता है !

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फौज और सरकार क्री भूमिका

बीबीसी संवाददाता आसिफ़ फारूक्री बताते हैँ कि पाकिस्तान में प्रतिबंध के बावजूद जैश ए मोहम्मद कीं हरकतें नज़र आईं, जिसके बारे में कहा जाता है कि उन्हें पाकिस्तानी खुफिया तंत्र की मदद मिलती रही. लेकिन इसका कोई प्रमाण या सबूत नहीं है वो बताते हैँ, साल 1 999 में कंधार कांड के बाद मसूद अज़हर ने अफ़गानिस्तान में तालिबान की मदद से जैश ए मोहम्मद बनाया. दो तीन साल बाद वो पाकिस्तान आए, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनके संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. मेंने आज तक कोई नेता नहीं देखा जिसने खुलेआम या दबे छिपे तौर पर मसूद अजहर के हक़ में कभी कोई बात कही हो ! फिर भी पाकिस्तान में एक तबका ऐसा है जी उनका समर्थन करता हे. आसिफ फारूकी बताते हैं, पाकिस्तान में मसूद अज़ह्रर के बारे में कोई अच्छी राय नहीं है. सब जानते हैं कि वो एक चरमपंथी समूह के मुखिया है, चरमपंथ का प्रचार करते हैं !
कई चरमपंथी घटनाओं में उनका हाथ रहा है आज का नौजवान उनके बारे में अच्छी राय नहीं रखता लेकिन समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जो उनका समर्थन करता है. ये बौ लोग हैं जो भारत को अपना दुश्मन मानते हैं और चाहते हैं कि भारत को तबाह कर दिया जाए !
बौ कहते हें,  कराची के एक जलसे में करीब 17 साल पहले सार्वजनिक रूप सै नज़र आए मसूद अज़हर इसके बाद भूमिगत हो गए और हाफिज़ सईद की तरह मीडिया में उनकी कोई खास मौजूदगी नहीं रही ! तीन साल पहले पाकिस्तानी कश्मीर के मुजफ्फराबाद के पास जिहादी तंजीमों की कानफ्रेंस में उन्हें आखिरी बार देखा गया था !
बीजिंग में वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता बताते हैं, ' पाकिस्तान क्री सैना मसूद अजहर के साथ है ! आईएसआई का समर्थन उसे हासिल है. चीन नहीं चाहता कि पाकिस्तान की फीज और आईएसआई नाराज़ हो. इसकी वजह ये है कि चीन को पाकिस्तान क्ती सैना क्री ज़रूरत है. क्योंकि सीमा पर शिनजिंयांग प्रांत है जहां मुसलमान आबादी है जी सरकार के विरोध में है. चीन नहीं चाहता कि तालिबान उनकी मदद के लिए उस तरफ से इस तरफ आ जाए !
 पाकिस्तान के पास भी आर्मी है, वो भी ऐसी कमजोर नहीँ ० कश्मीरी छात्रों के दाखिले पर रोक का सच क्यस्ना फिर होगा भारत पाकिस्तान युद्ध ?

मसूद अजहर के मामले में क्या चीन कभी अपना रुख़ बदलेगा ?

इस सवाल पर भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहते हैं, "अगर चींन अपना रुख़ बदलना चाहता तो ये मौका था रुख़ बदलने के लिए ! लेकिन चीन अपना रुख़ नहीँ बदलेगा क्योंकि चरमपंथ और चरमपंथ का इस्तेमाल पाकिस्तान क्री सिक्योरिटी डाक्टिन का एक खास हिस्सा है ! '
पाकिस्तान की सैना के लिए आतंकी गुटों का इस्तेमाल करना ज़रूरी है ! इसीलिए वो उम्हें शरण और प्रोत्साहन देते हैँ. लेकिन हम उम्मीद कर सकते हैँ कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब चीन इस वारे में संजीदगी से सोचेगा और महसूस करेगा कि इस वजह सै भारत में उसके खिलाफ़ आक्रोश है !

·         भारत सै रिश्ते पूर्ण रूप से अच्छे रहैं, उसके लिए ये आक्रोश ठीक नहीं है."

·         क्या भारत के हाथ कभी मसूद अज़हर तक पहुंचेंगे ?

क्या कभी भारत उस तरह भी कार्रवाई कर सकता है, जेसी कार्रवाई अमरीका ने पाकिस्तान जाकर ओसामा बिन लादेन के खिलाफ़ की थी !
इस सवाल पर विवेक काटजू कहते हैं, अमरीकियों ने जिस प्रकार ओसामा बिन लादेन के खिलाफ़ एक्शन लिया, उन्हें मीका मिल गया था. वो भी उन्हें आसानी से नहीं मिला था. उस रास्ते को अमरीका के अलावा मुझे नहीं लगता है कि कोई और देश अपना सकता है. दुनिया में अमरीका क्री हैसियत को नकारा नहीं जा सकता !
अमरीका क्री तरह कार्रवाई ना कर पाना क्या भारत की कमजोरी कढी जाए या उसकी पसंद, इस सवाल पर काटजू कहते हैँ, 'मैँ समझता हूं ये भारत क्री कमजोरी या पसंद नहीं बल्कि सोच है. सोच ही बाद में कार्रवाई में बदलती है ! मुझे नहीँ लगता कि भारत ने कभी इस प्रकार की कार्रवाई के बारे में सोचा भी है !
इसके अंतरराट्रीय परिणाम बहुत होते हैँ ! इसलिए इस रास्ते के वारे में कभी सोचा भी नहीं गया. ये सवाल अलग है कि ये रास्ता अपनाना चाहिए या नहीं ?
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