Tuesday, September 4, 2018

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             स्वामी विवेकानन्द 


स्वामी विवेकानन्द का परिचय

➾ युवा शक्ति के  प्रणेता स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 ई को कलकत्ता कं प्रतिष्ठित विश्वनाथ दत्त के परिवार में हुआ । उनकं पिता पेशे से वकील थे। उनकी माता का ना  म भुवनेश्वरी देवी था । ये बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की ,तथा ईश्वर में विश्वास  रखने बाली महिला थी । उनकं बचपन का नाम नरेन्द नाथ दत्त था तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय से इन्होने स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी । 
स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय दर्शन के  साथ साथ परिचमी दार्शनिकों जॉन स्टुअर्ट मिल, ड्रयूमा, हर्बर्ट स्पेंन्सर आदि का अध्ययन किया। 1881 इं. में स्वामी विवेकानन्द की भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई और उनकं व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वे उनर्क शिष्य बन गए तथा रामकट्टण के  मानवतावाद को उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में प्रचारित किया। रामकङ्कण की मृत्यु कं उपरान्त उन्होंने एक मठ कं निर्माण का विचार किया तथा तीन चार साथियों कं साथ मिलकर बारानगर में इसकी शुरूआत की । उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया इस दौरान उनकी मुलाकात अलवर महाराजा और खेतडी नरेश अजीत सिंह से हुईं । अजीत सिंह उनसे बहुत प्रभावित हुए और उनका नाम ’विवेकानन्द' रख दिया 1 खेतडी नरेश अजीत सिंह कं' आर्थिक सहयोग से विवेकानन्द ने 1893 इं. में शिकागो में आयोजित "हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया तथा भारत के  गौरव को बढाया। प्रारम्भ में तो उन्हें बोलने का अवसर नहीँ प्रदान किया गया लेकिन जब उम्हें ‘बोलने का अवसर मिला और जैसे ही उन्होंने अपना सम्बोधन में |
                     ”मेरे अमरीका के भाइयों और बहनों'से प्रौरम्भ किया तो विश्व धर्मं सम्मेलन का कोलम्बस हॉल तालियों की आवाज से गूँज उठा । इसकं बाद स्वामी विवेकानन्द क्री रध्याति इतनी फैली की उन्होंने देश विदेश में आयोजित कई धर्मं सम्मेलनों में सम्बोधित किया तथा भारतीय ज्ञान और दर्शन का प्रचार किया ||   

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स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाएे        

    1. स्वामी विवेकानन्द के  अनुसार ईश्वर सभी परिकल्पचाओं से परे है तथा सर्वव्यापी            है, वेदों में निहित ज्ञान, भक्ति, और कर्म  योग वो माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है  तथा विश्व के  सभी धर्म इनमें से किसी एक मार्ग  पर आधारित है। 


2. सभी धर्मं अच्छे है तथा व्यक्ति को अपने धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए और दूसरों कं धर्म का सम्मान करना चाहिए। 

    3. हिन्दू धर्म प्राचीनतम एवं श्रेष्ठ धर्म है । इसमें आध्यात्मिकता है और कोई दोष नहीं है ।

  4. स्वामी विवेकानन्द ने वेदान्त दर्शन के माध्यम से हिन्दुओँ में आत्म गौरव जाग्रत करने    का प्रयास किया। 

रचामी विवेकानन्द कब्र दर्शन वेदान्त पर आधारित था । इसकं अनुसार उन्होंने भेदभा और छुआछूत का घोर विरोध किया 
उन्होंने लोगों से जग्रतिगत बन्धनों से ऊपर उठने का आहवान किया जिससे समाज मेँ किसी प्रकार का कोई भेदभाव न हो। वे युवा शक्ति कं प्रणेता थे, उन्होंने युवाओं में राष्टीयता की भावना को पोषित किया । वे भारत की स्वतन्त्रता कं पक्षधर थे उन्होंने इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु युवाओं से निडर होकर प्रयास करने का संदेश दिया । इसकं लिये उन्होंने युवल्मों को शारीरिक व 
मानसिक रूप से शक्तिशाली होने कं लिये कहा । इस प्रकार उनर्क विचार राड्रोयता कं पोषक बनें । 
रचामी विवेकानन्द का भारतीय समाज व संस्कृति कं उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान है । उन्होंने वर्मभेद, अदिखा, गरीबी, आदि को मिटाकर एक सशक्त भारत कं निर्माण में अपना अपूर्व योगदान दिया ।

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