Sunday, September 9, 2018

parthviraj-chohan-history-पृथ्वीराज चौहान तृतीय

पृथ्वीराज चौहान तृतीय 

चौहान राजवंश का राजस्थान की राजनीति में प्रतिष्ठित स्थान था \ बारहदी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इनकी शक्ति और साम्राज्य का विस्तार सर्वाधिक था \ ये कम्बोज से लेकर जहाजपुर मेवाड की सीमा तक के भूभाग के स्वामी  थे तथा आस पास के कई शासक इनक सामन्त थे\  सोमेश्वर की मृत्यु क बाद उसके पुत्र पृथ्वीराज का राज्याभिषेक किया गया उस समय उसकी आयु मात्र ग्यारह वर्ष थी । उसकी अल्पायु को देखते हुए माता कपूँऱी देबी ने शासन स्वयं चलाया वह एक योग्य और कुशल राजनीतिज्ञ थी । शासन के सफल संचालन कें लिये कपूंऱी देवी ने अपने विश्वस्त अधिकारियों की उच्व पदो पर नियुक्ति की ||

पृथ्वीराज चौहान तृतीय बहुत ही महत्वाकांक्षी था अत एक वर्ष के संरक्षणत्व के बाद ही उसने प्रशासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली । अपने विश्वस्त अधिकारियों को उच्व पदों पर नियुक्त करने के बाद उसने अपने दिग्विजय अभियान शुभारम्भ किया ।

पृथ्वीराज की दिग्विजय नीति क तीन चरण ये प्रथम उसने अपने स्वजनों वं पडोसियों के विरोध को समाप्त करने का प्रयास किया, जिसक अन्तर्गत उसने अपने चचेरे भाई नागार्जुन तथा सोमान्त भण्डानकों को पराजित किया |  दूसरे चरण के अन्तर्गत उसने  अपने पडोसी शासकों को पराजित किया, इसक अन्तर्गत महोबा के चन्देल तत्परचात दुनू चालुक्यों तथा कन्तोज क गहड़वार्लो से सघर्ष किया | तीसरे चरण के अन्तर्गत उसका कां तुर्कों से सघर्ष था ९ 1173 ई. में गियासुत्दीन गोरो ने अपने छोटे भाई शाहवुत्दीन गोरी को गजनी का गवर्नर नियुक्त किया ९ शाहबुत्दीन महत्वाकांक्षी तथा साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा से उसने 1178 ई. मे गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय पर आक्रमण कर दिया ||

 गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय ने गोरी का डटकर मुकाबला किया तथा गौरी तथा` को बुरी तरह परास्त किया |  पराजित गोरी ने सीमान्त प्रदेशों सियालकोट और लाहौर पर अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ किया |  तुर्कों की इस विजय से उनक सम्राज्य की सीमाएँ पृथ्वीराज के विस्तृत साम्राज्य से टकराने लगी फलस्वरूप चौहानों ओंर तुकों में संघर्ष अवश्यम्भावी हो गया |  1186 ई. से 1191 ई. क मध्य चौहानों एवं तुर्कों कें बीच कई बार संघर्ष हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी पराजित ||  हम्मीर सहाकाव्य के अनुसार सात वार, पृथ्वीराज रासो में इक्सीस बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध भे आठ बार, प्रबंध चिन्तामप के अनुसार तेईस बार. सुजेनचरित्र क अनुसार इक्सीस बार सघर्ष में पृथ्वीराज को विजयी बताया गया है ।
लेकिन दो बार के चौहान तुक संघर्ष मुख्य है जो कि निर्णायक हुए 1 प्रथम अभियान 1191 ई. में तराईन का प्रथम युद्ध था इसमे मोहम्मद गोरो की सेना की बहूत क्षति हूई. गोविन्दराय ने मोहम्मद गोरी पर भयंकर आक्रमण किया जिससे गोरो घायल हो गया, उसके साथी उसे युद्ध के मेदान से बचाकर ले गऐ �

⇰ त्तराइन के प्रथम युद्ध की पराजय से मोहम्मद गौरी बहुत व्यथित हुआ । उसने पृथ्वीराज से अपनी पराजय का बदला लेने ' के लिए शीघ्र की तैयारी प्रारम्भ कर दी । उसने अपनी सेना में तुर्क, ताजिक, और अफगान सैनिकों को भर्ती किया । 1192 ई. में अपनी विशाल सेना के साथ गोरी पुन: त्तराइन के मेदान में आ डटा। इस बार उसने छल से काम लिया, उसने पृथ्वीराज के पास सन्धिवार्ता के लिये अपना दूत भेजा ।

पृथ्वीराज सन्धिवार्ता के भ्रम में अपनी सेना के साथ तराईन कें मेदान मे पहुंचा । वहां गौरी की सेना ने धोखे से जब पृथ्वीराज की सेना प्रातटकालीन नित्य कार्य में व्यस्त थी तब आक्रमण कर दिया, पृथ्वीराज की सेना भे भगदड पीछा किया और पृथ्वीराज के  अनेक वीर योद्धा ब गोविन्दराय शहीद हो गए । गौरी की सेना ने मृथ्वीस्नाज़ की सेना कटुहैद कर गजनी ले उम्हें बिखेर दिया 1 दिल्ली और अजमेर पर तुकों का अघिकार हो गया । पृथ्वीराज रासो कं अनुसादृ पृथ्वीराज को कैद कर गजनी ले जाया गया तथा नेत्रहीन का दिया गया ||  चन्दवतृडाई भी उसक साथ था । वहाँ पृथ्वीराज की शब्दभेदी बाण चलाने की परीक्षा के दौरान पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को अपने शब्दभेदी से बाण मार गिराया । इतकें बाद पृथ्वीराज चौहान और चन्दवादाई ने भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली । इस ग टना पर समी इतिहश्र्वकार एकमत नहीं है||

पृथ्वीराज चौहान ने अपने जीवन के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कहं युद्ध लडे और तराइन के द्वितीय युद्ध को छोड़ कर उसने सभी युद्धों में बिजय प्राप्त की इससे प्रमाणित होता है कि यह वीए औदृ एक ख्याल योद्धा था ; एक योद्धा होने के साथ साथ वह विद्या व साहित्यानुरागी भी था||  विद्यापति, वागीश्यर, जयानक,जनार्दन उसके  दरबारी कवि थे ||

पृथ्वीराज चौहान एक कुशल सेनानायक था, लेकिन उसमें दूरदर्शिता का अभाव था । पृथ्वीराज ने अपनी दिग्विजय नीति के अन्तर्गत अपने पडोसी राज्यों को मित्र बनाने के विपरीत अपना शत्रु बना लिया । यद्यपि वह वीए आ ज्जने तुर्क आक्रान्ताओं को कईं बार खदेड़ा लेकिन जीवित छोड़ दिया और यही उसकी पराजय व अन्त का कारण बना । यदि तराइन के  प्रथम युद्ध में ही गौरी को मार दिया गया होता तो इतिहास कुछ और ही होता' फिर भी पृथ्वीराज चौहान विलक्षण प्रतिमा का घनी और महान् शासक था ||

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