गुहिल वंश
मेवाड के गुहिल और सिसोदिया वंश का नाम इतिहास में प्रमुखता से दर्ज है | गुहिल वंश का नाम प्रतापी शासक गुहिल कें नाम से संबंद्ध है 1 बापा भी मेवाड का प्रमुख शासक था||
तेरहवीं सदी के आरम्भ में मेवाड के इतिहास में एक नया मोड आता है| इस समय तक अजमेर के चौहानों की शक्ति का पतन हो चुका था | संयोग से मेवाड के गुहिल शासकों को मुहम्मद गोरी के आक्रमणों का सामना नहीं करना पडा | 1213 ई. में जैत्रसिंह मेवाड के सिंहासन पर बैठा | वह एक प्रतापी शासक था | माना जाता है कि मालवा, गुजरात, मारवाड तथा दिल्ली कें शासक उसे पराजित नहीं कर सके थे| जैत्रसिंह ने केवल सेनिक बिजयों से मेवाड को सुदृढ बनाया बल्कि उसकी सीमाओँ का विस्तार भी किया । उसने शासन की बागडोर सम्भालते ही गुहिलों की पराजय का बदला लेने व मेवाड का प्रभाव बढाने का निरचय किया | दिल्ली के सुल्तान इस्तुत्तमिश ने जैत्रसिंह के समय मेवाड क गाँवों व कस्यों को खूब लूटा 1 जैत्रसिंह ने उसका डटकर मुकाबला किया| अन्त में तुर्की को मेवाड से लौटना पडा| जैत्रसिंह का दिल्ली के सुल्तान नासिरूलेन महमूद के साथ भी 1248 ई. में युद्व' हुआ, जिसमें नासिरूददीन की हार हुई । जैत्रसिंह का उदुत्तराधिकारी तेजसिंह भी एक योग्य _शासक था ||
रावल रतन सिंह
रावल रतन सिंह कें शासन के दौरान 1303 ईं. में अलाउददीन खिलजी ने चिन्तोड पर आक्रमण किया 1 अलाउददीन खिलजी क्री सेना कें साथ लडते हुए सेनापति गौरा-वादल सहित रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुआ 1 उसकी बहादुर रानी पदिमनी ने 16०० अन्य महिलाओँ कं साथ जौहर कर लिया , जो चित्वोंड का प्रथम ‘जौहर‘ कहलाता है 1 रतनसिंह मेवाड में गुहिल वंश की रावल शाखा का अंतिम शासक था 1
राणा हम्मीर
मेवाड का राणा हम्मीर अपने समय का पराक्रमी, साहसी एवं चतुर शासक था । वह सिसोदिया ठिकाने का जागीरदार था । उसने 1326 ई. में चिन्तोड जीता ओंर सिसोदिया वंश की नींव रखी । उसकं बाद क्षेत्रसिंह ने मेवाड पर शासन किया |महाराणा लाखा
1382 ई. में महाराणा लाखा मेवाड का शासक बना । लाखा के समय मेवाड को दिल्ली सशलानत के किसी बड़े आक्रमण को नहीं झेलना पडा | लाखा का विवाह मारवाड के रणमल की बहन हंसाबाई से हुआ 1 मोकल, लाखा व हंसाबाई का पुत्र था 1 लाखा कं पश्चात् मोकल मेवाड का शासक बना । 1428 ई. मेँ मोकल ने नागोर के फिरोज खाँ को रामपुरा के युद्ध में हराया ||महाराणा कुम्भा
महाराणा कुम्भा 1433 ई. में मेवाड का शासक बना । उसने अपनी योग्यता एवं सूझबूझ से मेवाड की आंतरिक स्थिति को मजवूत् बनाया 1 उसने कूम्भलगढ़ सहित 32 दुर्गों का निर्माण करवाया। उसने सारंगपुर के युद्ध में मालवा के शासक महम्मूद खिलजी को परास्त कर उसे बन्दी बनाया और इस विजय कं उपलक्ष्य में चित्तोड़गढ़ में 'कीर्ति , स्तम्भ’ का निर्माण कावाया । कुम्भा क पश्चात् क्रमशट्वे ऊबा एवं रायमल मेवाड के शासक बने ।
महाराणा सॉगा
महाराणा सॉगा 15०9 ई. में मेवाड का शासक बना । वह इतिहास में ’हिन्दूपत‘ कं नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। महाराणा सांगा न कंवल उच्च कोटि का सेनानायक था अपितु एक राजनीतिज्ञ भी था । उसने दिल्ली सल्लनत कं कुछ राज्यों को जीतकर मेवाड में मिला लिया । इससे क्रुद्ध होकर इब्राहीम लोदी ने मेवाड पर आक्रमण कर दिया । खातोली नामक रथान पर दोनों पक्षों में युद्ध हुआ । लोदी को हार का सामना करना पड़ा । इससे राणा की प्रतिष्ठा बहुतबढ़गई।
खानवा के मैदपृन में 1527 इं. को राणा सॉगा एवं भारत में मुगल शासन कं संस्थस्नापक बाबर कं मध्य युद्ध हुआ । बाबर कं मास तोपखाना था । उसने "तुलुगमा' पद्धति काम में ली । राणा साँगा इस युद्ध में गम्भीर रूप से दृप्नयल हो गया । तीर सॉगा ने इस युद्ध में अपनी एक आँख. एक हाथ और एक पाँव गँवा दिये। उसकं शरीर पर तलवार और हथियारों क 8० घाव थे
उदयसिंह
बनवीर नामक एक व्यक्ति महाराणा सांगा कं पुत्र एवं उत्तराधिकारी उदयसिंह को मारना चाहता था 1उदयसिंह पन्मा धाय कं संरक्षण में था । बनवीर . उदयसिंह को' मारने कं लिए पग्ना धाय कं निवास पर गया । पन्ता धाय ने अपने पुत्र की बलि देकर उदयसिंह को बचा लिया । 154० ई. में उदबुसिंह ने बनवीर को हराकर वह मेवाड का एकमात्रं शासक वन गया ५1553 ई. में उदयसिंह ने उदयपुर नगर 'बसाया 1 उदयसिंह का उत्तराधिकारी महाराणा प्रताप बना ||
महाराणा प्रताप
उनका महाराणा प्रताप का जन्म 9 महँ 1540 ने हुआ । 32 वर्ष की आयु मे वे मेवाड़ वो शासक राज्यद्रमिषेक 1572 ई. में गोगुन्दा में किया गया । उस समय मुगल शासक अकबर था 1 वह किसी भी त्तरीकं से मेवाड; को अपने अधीन करना चाहता था । अकबर ने सैन्थ शक्ति का प्रयोग करने से पहले प्रताप को समझा-बुझाकर अपनी अधीनता स्वीकार कराने का अथक प्रयास किया । इसी क्रम में उसने चार शिष्ट मण्डल क्रमश दृ जलाल खां, मानसिंह भगवन्तदास एवं टोडरमल कं नेतृत्व मेँ राणा प्रताप कं पास भेजे, किन्तु ये सभी दृढ प्रतिज्ञ प्रताप को विवश न कर सके ।
अत्त: अकबर ने मानसिंह कं नेतृत्व में प्रताप कं विरूद्ध एक शक्तिशाली सेना भेजी 18 जून 1576 को खानवा के 'पास मुगल सेना का प्रताप से युद्ध हुआ, जो इतिहास में 'हल्दीघाटी र्क युद्ध’ नाम से प्रसिद्ध हुआ 1 'इस युद्ध में मुगल सेना को करारी पराजय का सामना करना पडा और स्वयं पहाडों में चले गए किन्तु हताश एवं मनोबल हीन मुगल सेना उसका पीछा करने का साहस न कर सकी 1 बाद में 1576 इं. से 1585 इं. तक अकबर ने मेवाड कं विरूद्ध कईं डार सेना भेजी, किंन्तु उसे सफलता नहीं मिली 1 प्रताप ने कइं क्षेत्रों पर मुन: अधिकार कर लिया 1 उन्होंने चावम्नड को अपनी नई राजधानी बनाया 1 अकबर का महाराणा को हराकर पकडने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया 1 19 'जनवरी 1597 ई. को महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई 1 प्रताप का नाम पूरे भारत में सम्मान क साथ याद'किया जाता है, क्योकि उन्होंने अवबूबर जैसे साम्राज्यवादी शासक कं विरूद्ध अपनी स्वतन्त्रता त्तेथा आनट्ठे बान और शान की रक्षा करने में सफलता प्राप्त की थी 1
अमरसिंह शासक
महाराणा प्रताप कं बाद अमरसिंह शासक बना 1 प्रताप कं समय उसने मुगलों को दिवेर युद्ध में हराया था 1 शासक बनते ही उसे मुगलों कं अनेक आक्रमणों का ,सामना करना पडा, किन्तु मुगलों को सफलता नहीं मिली 1 अन्त में 1613 इं. में जहाँगीर स्वयं अजमेर पहुँचा और शहजादे खुर्रम को मेवाड अभियान पर भेजा 1 बाद में मेवाड कं एक महाराणा राजसिंह र्क सेनापति रतनसिंह चूण्डठवत्त की पत्सी सलंह कँवर ने युद्ध में जाते हुए अपने पति को अपना सिर निशानी कं रूप में भेज दिया 1 इतिहास में वह 'हारहुँ रानी‘ कं चाम से विरइयात
हुई 1 .
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