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सवाई जयसिंह
1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रो मुअज्जम व आजम के मध्य युद्ध हुआ । सवाई जयसिंह (जयसिंह द्वितीय) ने इस युद्ध में आजम का साथ दिया जबकि जयसिंह के भाई विजयसिंह ने मुअज्जम का साथ दिया । इस युद्ध में मुअज्जम (बहादुरशाह प्रथम) विजयी हुआ । उसने विजयसिंह को आमेर -र्का शासक बना दिया ।
इस प्रकार एक बार तो आमेर का राज्य जयसिंह के हाथ से निकल गया किन्तु जयसिंह ने मेवाड़ के महाराणा अमरसिंह द्वितीय की पुत्री चद्रकुंवऱी के साथ विवाह कर अपनी स्थिति मजबूत कर ली और विजयसिंह क्रो पराजित कूर पुन: आमेर प्राप्त कर लिया||
सवाई जयसिंह न केवल वीर व कूटनीतिज्ञ था \ वरन विद्वान तथा विद्वानों का आश्रय दाता भी था । सवाई जयस्ति ने नक्षत्रों को गति की 'गणना के लिए एक सारणी बनवाई \ उसने ज्योतिष विधा पर 'जयसिंह कारिका’ नामक ग्रन्थ लिखा । ज्योतिष के अध्ययन के लिए पाँच वेधशालाऐं जयपुर, दिल्ली, मथुरा, बनारस और उज्जैन ने बनवाई ।
1727 में जयनगर (जयपुर) की स्थापना करवाई । वह अन्तिम हिंदू राजा था जिसने भारतीय परम्परा 'के अनुकूल अश्वमेघ यज्ञ करवाया। 1743 र्द. में सवाई जयसिंह को मृत्यु हो 'गई ।
जयपुर की वेधशाला : दिल्ली की वेधशाला के निर्माण के 10 वर्ष बाद राजा जयसिंह ने राजस्थान के जयपुर में वेधशाला बनाने का कार्य सन् 1718 से लेकर 1738 तक संपन्न कराया। इसे देश की सबसे बड़ी वेधशाला कहा जा सकता है। इसमें यंत्र अपेक्षाकृत अधिक लगे हैं और गणक सुविधा के लिए कुछ बड़े आकार के भी बनाए गए हैं। यूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को इस जंतर-मंतर विश्व धरोहर सूची में शामिल किया।
विद्याधर भट्टाचार्य नामक ज्योतिष और शिल्पकार की मदद से ही दिल्ली और जयपुर की वेधशालाओं का शिल्प तय किया गया था।
275 साल से भी अधिक समय से प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनियाभर में मशहूर इस अप्रतिम वेधशाला को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं।
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