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महात्मा बुद्ध
1 महात्मा बुध्द का प्रारंभिक जीवन … महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी वन (आधूनिक रुमिन्देई) में हुआ था 1 उनके पिता शुद्धोंधन कपिलवस्तु के शाक्यगण के प्रधान थे \ माता का नाम महामाया था ।
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम 'सिद्धार्थ' थाअपने कूल का गोतम गौत्र होने के 'कारण उन्हें 'गौतम' कहा जाता है । बुद्ध के जन्म के कूछ ही दिनों बाद उनकी माता 'महामाया' का निधन हो गया तथा उनका पालन-पोषण विमाता प्रजापति गोतमो ने किया ||
2.महात्मा बुद्ध का लालन-पालन=
राजसी ऐश्वर्य एवं वैभव के वातावरण में हुआ \ किंतु सिद्धार्थ को लोग बिलास की वस्तुओं मेँ तनिक भी आनंद नहीं आया । 16 की उग्र में सिद्धार्थ का विहवा राजकुमारी यशोधरा से का दिया गया । यशोधराएवं सिद्धार्थ कें एक पुत्र उत्पन दुआ जिसका नाम राहुल रखा गया । 12 वर्ष के गृहस्थ जीवन में रहने के बाद भी सिद्धार्थ का मन सांसारिक प्रवृत्तियों में नहीं मगा । विहार से लिए जाते हुए उन्होंने प्रथम बार एक वृध्द., द्वितीयह्मा व्याधिग्रत्ता (रोगी) मनुष्य. तीसरी शा एक मृतक क्या धतुयं यार एक प्रत्तन्नक्ति सन्यासो को देखा । ें सभ को देखक्र सिद्धार्थ का मन व्याकुल हो गया । एक दिन अपनी पुत्र ,पत्नी एवं राजसी वैभव को त्याग का निर्माण ज्ञान दो धय पर निक्ल पढे । जीवन की इस घटना को दीड साहित्य मैं ‘महामिनिक्तमण क्या जाता है ।साथ ही उनकी आयु 29 वर्ष हो गई थी ।
वे सर्वपर्थम वैशाली के समीप सांख्य दर्शन के आचार्य अलरकलाम के पास घयानार्जन हेतु गए ंघन पिपासा शांत नहीं होइ सकी \यह से वे राजगृह के समीप ब्राहमण धतमाचार्य उदक रामपुत्र के पास गए \ यह से सिद्धार्त उरुवेला बोधगया नामक स्थान पर पहुंचे \ वह पर कठोर तपस्या के बाद एक पीपल के वृक्ष के निचे ज्ञान प्राप्त हुआ \तभी से बुध्द कहलाए \
बुद्ध की शिक्षाओं का सार ⇒
बुद्ध की शिक्षाओं का सार है- शील, समाधि और प्रज्ञा। सर्व पाप से विरति ही 'शील' है। शिव में निरंतर निरति 'समाधि' है। इष्ट-अनिष्ट से परे समभाव में रति 'प्रज्ञा' है। भगवान बुद्ध प्रज्ञा व करुणा की साक्षात मूर्ति थे। ये दोनों ही गुण उनमें उत्कर्ष की पराकाष्ठा प्राप्त कर समरस होकर समाहित हो गये थे। महात्मा बुद्ध के अनुसार धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में सभी स्त्री एवं पुरुषों में समान योग्यता एवं अधिकार हैं। इतना ही नहीं, शिक्षा, चिकित्सा और आजीविका के क्षेत्र में भी वे समानता के पक्षधर थे। उनके अनुसार एक मानव का दूसरे मानव के साथ व्यवहार मानवता के आधार पर होना चाहिए, न कि जाति, वर्ण और लिंग आदि के आधार पर।
बुद्ध के गुण⇰
बुद्ध के गुण-भगवान बुद्ध में अनन्तानन्त गुण विद्यमान थे। उनके इन गुणों को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, यथा-
काय गुण
वाग-गुण
चित्त गुण
कर्म गुण
काय-गुण
32 महापुरुषलक्षण एवं 80 अनुव्यजंन बुद्ध के कायगुण हैं। उनमें से प्रत्येक यहाँ तक कि प्रत्येक रोम भी सभी ज्ञेयों का साक्षात दर्शन कर सकता है। बुद्ध विश्व के अनेक ब्रह्याण्डों में एक-साथ कायिक लीलाओं का प्रदर्शन कर सकते हैं। इन लीलाओं द्वारा वे विनेयजनों को सन्मार्ग में प्रतिष्ठित करते हैं।
वाग-गुण
बुद्ध की वाणी स्निग्ध वाक्, मृदुवाक, मनोज्ञवाक्, मनोरम वाक्, आदि कहलाती है। इस प्रकार बुद्ध की वाणी के 64 अंग होते हैं, जिन्हें 'ब्रह्मस्वर' भी कहते हैं। ये सब बुद्ध के वाग्-गुण हैं।
चित्त-गुण
बुद्ध के चित्त-गुण ज्ञानगत भी होते हैं और करुणागत भी। कुछ गुण साधारण भी होते हैं, जो श्रावक और प्रत्येकबुद्ध में भी होते हैं। कुछ गुण असाधारण होते हैं, जो केवल बुद्ध में ही होते हैं।
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