Saturday, September 15, 2018

jambheshwar-History-गुरु जमभेशवर भगवान !@#history of bishnoi in hindi

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गुरु जमभेशवर भगवान 



 जाम्भोजी का जन्म  1451ई. में जोधपुर राज्य के अन्तर्गत नागौर के पीपासर गाँव में पंवार वंशीय परिवार मैं हुआ था। हनके पिता का नाम लोहटजी व माता का नाम हांसादेबी आ । ये बचपन में बहुत मननशील थे कमी आश्चर्यचकित करने वाली बातें व क्रियाकलाप करते थे इससे उन्हें जाम्भो कहा जाने लगा || बचपन में ये गाय चराने का कार्यं किया करते थे । गायें चराते समय ही इन्हे ईश्वर का साक्षात्कार हुआ। जाम्पोजी उस कालखण्ड की समाज मेँ व्याप्त साम्प्रदायिक संकीर्णता, कुप्रथाओ एवं कुरीतियों से चिन्तित थे तथा समाज को इनसे मुक्त कराना चाहते ये। जाम्पोजी आजीवन ब्रह्मचारी रहे तथा माता पिता की मृत्यु वो बाद सम्पूर्ण सम्पति का त्याग का समराथल धोरे रहने लगे तथा यहीँ पर उन्होने बिश्लोइं पथ की स्थापना की । इस पंथ कं 29 नियम है पीस ओदृ नी इस कारण हन्हें विश्लोई कहा जाता है ।

 जाम्भोजी ने अपने नियमों ने हरे पेड नहीं काटना जीव हत्या नहीं काना, मांस का सेवन नहीं करना आदि को सश्मितित का यह सिद्ध किया हि मानय मात्र का कल्याण प्रकृति के संरक्षण ने निहित है । की प्रेरणा से ही बीकानेर नरेश ३ ने अपने ध्वज ने खेजड़े के वृक्ष को थिएन दो रूप पे सम्मिलित किया। उनकं प्रति शासक ए। प्रजा दोनों ने अगाध श्रद्धा थी ।

 जाम्भोजी को उनच्छे अनुयायी ईश्वर के रूप ने मानते है

 जाम्भोजी ने विष्णु नाम स्मरण पर जोर दिया तथा  बताया क्रि सर्वश्रेष्ठ धर्म मानय धर्म है । समराथत जो बिश्नोई  सम्प्रदाय का प्रमुख स्तान है ,इसे धोक धोरे के नाम से भी जाना जाता है । जाम्योजी की शिक्षाएं उनकी बाणी ५ सकलित है शब्दबानी समय कहा जाता है । विश्नोई पथ के लोग इसे जम्भ गीता कहते है । यह राजस्थानी भाषा का अनुपम ग्रंथ है । 1536 में जाम्भोजी ने अपने नश्वर शरीर को त्यागा । उनकी समाधि यहीं पर मनी हुई है जिस पर दूर दूर से श्रद्धालु आकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते है ||

जमभेशवर भगवान की शिक्षा 

 जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं। गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित पंथ में 29 नियम प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।

विश्नोई समाज के 29 नियम 



इस सम्बन्ध में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है- उन्नतीस धर्म की आखडी हिरदे धरियो जोय, जम्भोजी कृपा करी नाम विश्नोई होय। १- प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना २- ३० दिन जनन – सूतक मानना, ३- ५ दिन रजस्वता स्री को गृह कार्यों से मुक्त रखना, ४- शील का पालन करना, ५- संतोष का धारण करना, ६- बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना, ७- तीन समय संध्या उपासना करना, ८- संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना, ९- निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना, १०- पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना, ११- वाणी का संयम करना, दया एवं क्षमा को धारण करना, १२- चोरी, निंदा, झूठ तथा वाद–विवाद का त्याग करना, १३- अमावश्या के दिन व्रत करना, १४-विष्णु का भजन करना, १५- जीवों के प्रति दया का भाव रखना, १६- हरा वृक्ष नहीं कटवाना, १७- काम, क्रोध, मोह एवं लोभ का नाश करना, १८- रसोई अपने हाध से बनाना, १९- परोपकारी पशुओं की रक्षा करना, २०- अमल, तम्बाकू, भांग, मद्य तथा नील का त्याग करना, २१- बैल को बधिया नहीं करवाना
 जाम्भोजी ने अपने जीवनकाल में अनेक वचन कहे किन्तु अब 120 शब्द ही प्रचलन में हैं जो वर्तमान में शब्दवाणी के नाम से जाने जाते हैं। गुरु जम्भेश्वरजी द्वारा स्थापित पंथ में 29 नियम प्रचलित हैं जो धर्म, नैतिकता, पर्यावरण और मानवीय मूल्यों से संबंधित हैं।
: इस सम्बन्ध में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है- उन्नतीस धर्म की आखडी हिरदे धरियो जोय, जम्भोजी कृपा करी नाम विश्नोई होय। १- प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना २- ३० दिन जनन – सूतक मानना, ३- ५ दिन रजस्वता स्री को गृह कार्यों से मुक्त रखना, ४- शील का पालन करना, ५- संतोष का धारण करना, ६- बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना, ७- तीन समय संध्या उपासना करना, ८- संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना, ९- निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना, १०- पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना, ११- वाणी का संयम करना, दया एवं क्षमा को धारण करना, १२- चोरी, निंदा, झूठ तथा वाद–विवाद का त्याग करना, १३- अमावश्या के दिन व्रत करना, १४-विष्णु का भजन करना, १५- जीवों के प्रति दया का भाव रखना, १६- हरा वृक्ष नहीं कटवाना, १७- काम, क्रोध, मोह एवं लोभ का नाश करना, १८- रसोई अपने हाध से बनाना, १९- परोपकारी पशुओं की रक्षा करना, २०- अमल, तम्बाकू, भांग, मद्य तथा नील का त्याग करना, २१- बैल को बधिया नहीं करवाना

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