Friday, February 1, 2019

panipat-ka-3rd-battle | पानीपत का युद्ध भयानक नरंसहार

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पानीपत का तृतीय युद्ध कारण  तथा उसके परिणाम –




 प्रस्तावना -  मुगल कालीन भारत का अध्ययन करते समय आप ने औरंगजेब के उत्तराधिकारी के समय हमें मुगल दरबार की गुड बंदी तथा बादशाहों की दयनीय स्थिति को भली-भांति समझ लिया होगा जिसमें शहद बंदूक जैसे महत्वाकांक्षी सरदारों ने कई राजकुमारों की हत्या कर अपने पसंद के बादशाह दिल्ली के सिंहासन पर बैठाऐ  और अपदस्त किए !  नादिर शाह और उसका उत्तराधिकारी अहमद शाह अब्दाली की गतिविधियों का भी अध्ययन किया होगा इस इकाई में पानीपत के तृतीय युद्ध से पूर्व के भारतीय इतिहास तथा युद्ध की सभी घटनाओं का उल्लेख किया जाएगा जिसमें पाठकों को तकनीकी इतिहास का ज्ञान ज्ञान अच्छी प्रकार से हो सकेगा इस इकाई में यह बताया जाएगा कि पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात भारत के मानचित्र में किस प्रकार परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए !

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panipat-ka-3rd-battle  पानीपत के तृतीय युद्ध के कारण -



1.नादिरशाह के आक्रमण से अब्दालियो को प्रोत्साहन !
2. मुगल दरबार की पारस्परिक गुट-बंदी और ईर्ष्या !
3. मुगल साम्राज्य में विघटन का प्रारंभ !
4. सन 1752 मुगल संधि के दुष्परिणाम !
5. नजीब खान और मराठों की शत्रुता !
6.  मराठा विस्तार वादी नीति !
7.  अब्दालिओं को धन की लिप्सा !
8.  मराठों की स्थिति अनिश्चित राजनीति !
9.  अब्दालियो को आक्रमण करने का निमंत्रण !
10. तात्कालिक कारण !



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1. नादिरशाह के आक्रमण से अब्दालियो को प्रोत्साहन -  सन 1739 इसी में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था ! इस समय अब्दाली सैना नायक के रूप में उसके साथ था जिसने मुगल सम्राट की शक्ति का खोखगलापन अपनी आंखों से देखा था और उसी समय उसने अनुमान लगा लिया था कि मुगल सम्राट और उसकी सेना ने आक्रमण का सामना नहीं कर सकती ! वह पूरी तरह मराठा शक्ति पर निर्भर है मराठा इस मदद के लिए उसने उसे भारी धन लेते हैं जिसमें खजाना खाली हो जाता है ! दूसरे मराठा सारे भारत में फैले हुए हैं संगठनों पर आक्रमण का सामना नहीं कर सकते थे ! दिल्ली महाराष्ट्र से दूर ही पड़ता था ! अतः उनके प्रभाव सहायता तत्काल ही नहीं मिल पाती थी फल स्वरुप अब्दालियो ने मराठा शक्ति से लोहा लेने हेतु एक आक्रमण किया !

2. मुगल दरबार की पारस्परिक गुट-बंदी और ईर्ष्या - मुगल दरबार में तूरानी , ईरानी तथा हिंदुस्तानी अमीरों के संकीर्ण विचारों के दल बने हुए थे ! जिनमें परंपरागत ईर्ष्या और द्वेष था प्र्तिद्न्दिता थी ! उनमें सत्ता अधिकार और धन प्राप्ति के लिए  तीव्र स्पर्द्धा और वैमनस्य रहता था जिसके रहते वह मुगल साम्राज्य की विदेशी आक्रमण से संगठित होकर एकता के साथ रक्षा नहीं कर सकते थे ! यहां तक की कई बार उन स्वार्थी तत्वों और अब्दालिओं को दिल्ली पर आक्रमण हेतु निमंत्रण पत्र भी भेजा !  आंतरिक दरभंगिया और प्रबल प्रतिनिधियों ने विदेशियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहन दिया ! इन विदेशियों को इस प्रकार के लोगों ने प्रोत्साहित कर अपने देश को शासन व्यवस्था को हाथों से गंवाया !



3.  मुगल साम्राज्य में विघटन का प्रारंभ -  अनेक आंतरिक दुर्बलता  और अयोग्य मुगल सम्राटों के कठपुतली मात्र बनाने से प्रभावशाली अमीरों और सामंतों में प्रांतीय सुविधाओं और शासकों में केंद्रीय सत्ता से स्वतंत्र होने की विधि घर कर गई और दिन प्रतिदिन बढ़ती गई फल स्वरुप अवध बंगाल बिहार उड़ीसा मालवा राजस्थान बुंदेलखंड और दक्षिणी प्रांत मुगल साम्राज्य से प्रथक ओं को स्वतंत्र हो गये थे ! इस विघटन से मुगल साम्राज्य जर्जर होकर पतन के गर्त की ओर बढ़ रहा था अतः विदेशियों को आक्रमण का अवसर मिल चुका था मराठा भी मुगल साम्राज्य की गन्ने की तरह चूसने में लगे हुए थे !

4 .सन 1752 को मराठा मुगल संधि के दुष्परिणाम - वजीर बदलने अब्दाली के आक्रमण से भयभीत होकर सन 1752 में मराठा के साथ संधि की थी जिसके अनुसार मराठा ने मुगल साम्राज्य की बाहे आक्रमण तथा आंतरिक विद्रोह सुरक्षा का आश्वासन दिया था उसके बदले उसे ₹50 लाख रुपय सालाना सरकारी खजाने से राशि चाहिए थी !  मराठों के ऊपर साम्राज्य की रक्षा का नैतिक दायित्व आ पड़ा इसके विनाशकारी एवं गंभीर परिणाम यह हुए इस प्रकार की संस्थाओं के चौथे से रक्षा का वादा दोहराया और शायद उसी की हत्या कर एक शहजादे की शहर के नाम से 1738 में दिल्ली पर बैठा दिया गया जिसमें मराठा पूरी तौर पर अधिकार कर चुके थे ! इससे चिंतित होकर बाजारों में उनकी उन्होंने के विरुद्ध निर्णय के लिए प्रेरित किया जाए !

5.नजीम खान और मारा टाउन की शत्रुता - नजीम खान रुहेला सरदार दोआब में सरदारपुरा का अफगान शासक था वह दिल्ली में मराठा समर्थक वजीर इमाद का पहनकर शत्रुता अनेक बाहर मराठा सेना ने तो वह दोहा पर आक्रमण कर रोहिलखंड की लूटपाट की धन इकट्ठा किया वहीं मुगल दरबार में हमेशा मराठों का विरोध करता रहा परंतु मराठों की प्रचंड सैन्य शक्ति के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकता था अब्दाली चौथे आक्रमण के पश्चात दिल्ली से जब आप सब का स्थान गया तो वह दिल्ली का शासन नजीर खान को अपने प्रतिनिधि के रूप में सौंपा गया था और बादशाह तथा केवल नाम मात्र शक्तियों के लूटते हुए रघुनाथ राव के नेतृत्व में पुणे और दिल्ली से खदेड़ दिया और दिल्ली से लेकर पंजाब तक अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया !इस बीच लगभग 2 वर्ष तक मराठा पूरी तरह से दिल्ली में गाजीपुर और उनके द्वारा निरस्त नजीब खाकी मराठा के प्रति घृणा और भी बलवती गई उसने इस बार मराठों के विरोधियों को आमंत्रित किया आश्वस्त किया कि उत्तर भारत के सभी अफगान और मुस्लिम सरदार पूरी तरह से अब्दाली के साथ हैं तथा मराठा शक्ति को हमेशा के लिए कुचल दिया जाएगा और अब अब्दाली पांच बार कटोरा कृपा से प्रभावित होकर भारत आए तो नजीब कहां है उसका पूरा पूरा साथ दिया !

6. मराठा विस्तार वादी नीति -  पेशवा बालाजी बाजीराव और उसके सहयोगी मराठा सरदार उत्तरी भारत में दिल्ली पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर मुगल साम्राज्य के संरक्षण के रूप में पंजाब में उत्तरी पश्चिमी सीमा क्षेत्र तक महाराष्ट्र प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे उनका उद्देश्य उन प्रदेशों पर अपने हिंदू राज्य में स्थापित करने का था और उसी समय उनका प्रभाव हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक  तथा अटक से लेकर कटक स्थापित हो चुका था ! रघुनाथ राव के नेतृत्व में मातृशक्ति झेलम नदी के उस पार तक स्थापित हो गई थी इस स्थिति में उनका प्रभाव क्षेत्र आप कौन सा काम तालियों की सीमाओं से मिल गया था आता है उसका मराठा विरोधी होना स्वाभाविक था ! परिस्थितियां भी इस समय उसके पक्ष में थी क्योंकि उत्तर भारत के सभी मुस्लिम शासक उसका समर्थन करने को तैयार थे नजीब का और बेगम मुलानी ने उसे आक्रमण के लिए बार-बार निमंत्रण पत्र भी भेजे थे !



7. अब्दालिओं की धन की लिप्सा - अहमद शाह अब्दाली कौन सी आक्रांता था जिसने मध्य एशिया में भूत प्रत्येक जीते लिए थे जिन्होंने प्रदेश पर स्थाई प्रभाव स्थापित करने के लिए उसे 1 साल से ना की आवश्यकता थी जिसे तू सर जी तथा चुस्त और तंदुरुस्त रखने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता भी थी जो मध्य एशिया में संभव था उसने उसे जीतने और उस पर आक्रमण करने की और उसे राज्य पर राज्य स्थापित करने और धन प्राप्ति करने के लिए सोचा धन प्राप्ति करने के लिए उसने उत्तर भारत के लूट ने उचित समझा जबसे से विदेशों को अपने सामने जी का भाजी बनाना चाहता था कि अपने को नादिर शाह का उत्तराधिकारी मानते हुए उत्तर पश्चिमी सीमांत और पंजाबराव अधिकार समझता था वह पंजाब में से मात्र कौन से राज्य में मिलाना चाहता था दिल्ली पर एक कठपुतली सम्राट  बिठाना जाता था ! उधर मराठा भी अपना प्रभुत्व गनशत्रु पर स्थापित करना चाहते थे अतः दोनों एक दूसरे को समाप्त करने पर तुले हुए थे !

8.  मराठों की स्थिति अनिश्चित राजनीति -  उत्तरी भारत में मराठा शक्ति और उसके राजनीतिक द्वेष और भी अधिक था ! उन्होंने सम्राट वजीर रोयले अवध के सूबेदार पंजाब के मुगल अधिकारी एवं राजपूत और जाटों के प्रति स्पष्ट स्थाई नीति नहीं अपनाई थी उन्होंने हर क्षेत्र में लूटपाट कर लोगों को अपना विरोधी बना लिया यद्यपि लूटेरा तो अभी भी था परंतु उसके मित्र यह समझते थे कि मैं लूट कर चले जाएंगे परंतु मराठा दमन चक्र भारत में स्थाई रहेंगे और लूटते रहेंगे मराठा शक्ति को कुचलना बहुत जरूरी है !

9.  अब दालों को आक्रमण करने का नियंत्रण - माताओं की बढ़ती धन लिप्स सक्रिय राजनीति करते हुए प्रभाव को कम करने के लिए नादिरशाह अवध के नवाब सिराज दुल्ला विरोधी मुगल बेगम ने तथा बल का एक जवान ने उनको भारत पर आक्रमण का नियंत्रण दिया कि वे सक्रिय सहयोग भी देंगे अपने चौथे आक्रमण के समय उन सब का सहयोग दे चुके मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय विरोधियों के साथ था इस प्रकार की हत्या कर दी थी सजा देगी घटा दिया था इससे भी अदालत ने भारत पर आक्रमण का मांस बनाया जाता है !

10.  तात्कालिक कारण - अहमद शाह अब्दाली ने अफगान शासक सिराजुद्दोला को मुगल सम्राट के वृक्ष के पद पर नियुक्त किया एवं को प्रतिनिधित्व किया दिल्ली का पूरा शासन उसके अधीन था ! उसके जाने के बाद मराठा ने दिल्ली पर आक्रमण करने को समझौता करने को बाध्य कर दिया अंत में उसे मारा सैनिक दबाया आकार के कारण दिल्ली छोड़ दिया उस पर लूटपाट कर दी इसके अतिरिक्त अपने पद से हटा दिया लाहौर और क्षेत्राधिकार में ले लिया और वहां पर उसे राजस्व इक्काटा करने लगे ! महाराणा ने विद्यालयों के द्वारा सीमांत प्रदेश तथा दिल्ली की जो अवस्था चुकी थी उसे पुत्र ध्वस्त कर दिया वजीर ने मारा की मदद से मुगल साम्राज्य आलम की देवी जी की हत्या कर दी तथा सहायक घोषाल जाति के नाम से गद्दी पर बैठा दिया बजे को यह आभास हो गया था कि सम्राट उसके विरुद्ध से मिलकर षड्यंत्र कर रहा है इस घटना से मुगल दरबार की वोट बंदी को कर दिया गया भारत पर आक्रमण किया और  परिणाम स्वरुप भारत में पानीपत तृतीय युद्ध हुआ !

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पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम -

पानीपत का तीसरा युद्ध भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, इसमें भारतीय इतिहास के स्वरूप को ही बदल दिया ! इस युद्ध के परिणाम को लेकर इतिहासकार ने प्रथक प्रथक मत व्यक्त किए हैं ! युद्ध के परिणाम का विवेचन निम्नलिखित शिक्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है !

1. महाराष्ट्र जन धन और सैन्य शक्ति को गहरी  शक्ति - पानीपत के युद्ध में वरिष्ठ अनुभवी सेनापति सदाशिव राव भाऊ तुकोजी सिंधिया जयंत राव पवार, अमिता जी  मनकेश्वर, विश राव आदि मारे गए ! इनके साथ साथ हजारों मराठा सैनिक और ऐश्वर्या की वीरगति को प्राप्त हुए 50800 हाथी, ऊंट और आसन के पार वह पशु भी नष्ट हुए प्रचुर  मात्रा में युद्ध सामग्री और माल अब्दाली एवं के सैनिकों ने लूट लिया इससे मराठा जाति वर्ग और निराश एवं शोक छा गया ! मराठाओं की ऐसी जन जन की हानि पहले कभी नहीं हुई थी !

2.  मराठा प्रबुद्ध और वर्चस्व को आघात-  उत्तर से लेकर दक्षिण तक मराठा का वर्चस्व था जिस मराठों के घोड़े अटक से कटक तक हिमालय से कन्याकुमारी तक बेधड़क दौड़ते थे !उन पर अंकुश लगा ! संपूर्ण भारत में मराठा वर्चस्व स्थापित करने का सच समाप्त हो गया !  पंजाब और सीमांत क्षेत्र में डूबा राजस्थान सदा के लिए मराठा के हाथ से निकल गया ! बंगाल और बिहार से भी मराठा शक्ति  समाप्त हो गई ! पानीपत का आगाज इतना ऐसे नहीं था कि पेशाब का बालाजी बाजीराव इस राज्य के दुखद समाचार को सुनने के बाद अधिक दिन जीवित भी नहीं रह सके उसका शीघ्र ही हर्ट अटैक से निधन हो गया !



3. मराठों का प्रभाव क्षेत्र सीमित हुआ -  पानीपत की राज्य के पश्चात दिल्ली पंजाब सिंह और सीमा क्षेत्रों में मराठा प्रभाव समाप्त होकर केवल चंबल नदी से दक्षिण की ओर से ही सीमित हो गया ! दोहा प्रखंड और अवध अनेक प्रभाव से त्रस्त हो गए राजपूत एवम् जाटों ने बीमारों के नियंत्रण से मुक्त होकर एक नया संगठन बनाया जिसका उद्देश्य राजस्थान में मराठों को पूरी तरह से खदेड़ देना था यद्यपि यह संघ अपने क्षेत्र में सफल नहीं हुआ परंतु यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि मराठा प्रभाव सत्र संकुचित हो गया ! उनका उत्तर भारत से 10 वर्ष तक पूरी तरह निष्कासन हो गया !

4.  मराठों  कि अजय शक्ति हास - पानीपत के तृतीय युद्ध से पूर्व तक मराठा शक्ति अजय समझी जाती थी गूगल सत्ता के पतन के पश्चात समस्त भारत में कई ऐसी शक्ति  नहीं थी जो  मराठों का सामना कर सके ! इसी कारण मुगल बादशाह और वजीर ने 1752 इसी में अपने राज्य की बार आक्रमण तथा आंतरिक विद्रोह से रक्षा करने का समझौता किया था और बदले में एक बहुत बड़े प्रदेश राजस्व एकत्रित करने का अधिकार उन्हें दे दिया था कोई भी भारतीय शक्ति उनका सामना करने से कतराते थे परंतु पानीपत की हार ने उनके इस अजय शक्ति की धारणाओं को समाप्त कर दिया !

5. मराठा राज्य का विघटन - पानीपत किस राज्य सभा के प्रभुत्व को शांत कर दिया मराठा संघ की शक्ति को खंडित कर दिया और उनका संगठन शिथ्लित हो गया ! सामंतो ने अपने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिया ने ग्वालियर में, होल्कर करने इंदौर में,भोसले  ने नागौर में, तथा गायकवाड अभी थोड़ा में अपने अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया जिन्होंने ऐसा हवा का प्रभाव केवल पुणे तक ही सीमित रह !



6.  मुगल साम्राज्य का  विघटन - युद्ध में मुगल साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया को और तेज कर दिया ! अब्दाली ने पंजाब सिंध सीमांत प्रदेश कश्मीर पर अधिकार कर के उन प्रदेशों में मुगल साम्राज्य के ऊपर तक कर दिया पंजाब में आज कथा और अर्थव्यवस्था के लाभ उठाकर सिखों ने भी अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित कर लिए ! राजपूत शासकों  और भरतपुर में जाट शासक ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया रांची शासक और सूबेदार भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गए तथा सम्राट आदेशों की अपेक्षा करने लगे सम्राट को वार्षिक कर और राजस्व देने भी बंद कर दिया अपने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिए गए !

7.  मुगल साम्राज्य की गरिमा समाप्त -  पानीपत के युद्ध के अब्दाली  शाह आलम द्वितीय को सम्राट सोजा को उसका वीर तथा नजीब को अमीर पक्ष के पद पर आसन कर दिया था ! मुगल बादशाह दिल्ली से बाहर था उसकी अनुपस्थिति में ही उसे सम्राट मान लिया गया परंतु उसका दिल्ली में कोई अस्तित्व नहीं था, उसे नजीर दुला ने दिल्ली में आने ही नहीं दिया उसने पूरी तरह दिल्ली पर अधिकार की तरह शासन स्थापित कर लिया 10 वर्ष तक उसने मुगल बादशाह को निर्वाचित जीवन व्यतीत करने को बाध्य नजीब के सामने वजीर को भी कोई इज्जत नहीं थी वहीं आगरा और अवध का सूबेदार मात्र रह गया दिल्ली में केंद्रीय सत्ता की ऐसी दुर्दशा के कारण मुगल सम्राट गया दिल्ली में केंद्रीय सत्ता की दुर्बलता होती चली गई दिल्ली में केंद्रीय सत्ता की ऐसी दुर्दशा के कारण कभी अंग्रेजों की ! शाही परिवार के सदस्य के भोजन तक के लाले पड़ रहे थे वही पूरी तरह से प्रारंभ में नजीबुल्लाह पर निर्भर थे बाद में मदन जी सिंधिया पर उसे सम्राट का गौरव गरिमा प्रतिष्ठा पूर्ण रूप से समाप्त कर दी गई !



8. अब्दाली की शक्ति का हास -  अब्दाली भी अपने विजय और सफलता का सुख भोगने में असमर्थ रहा उसके विरुद्ध अफगानिस्तान और अन्य प्रदेश में विद्रोह होने लगे उसके आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई सैनी को उसके विरोध भी हो गए इस कारण से शीघ्र पाकिस्तान लौटना पड़ा फ्रूट सरहिंद पंजाब सिंध स्थाई रूप से अपने अधीन करने का उसका सफर समाप्त हो गया परिस्थिति में ऐसा पलटा खाया ! घटनाओं इस तेजी से गठित हुई क्यों को अस्तित्व भी संकट में पड़ गया यहां तक कि उसने थी सभा में संधि का प्रस्ताव 1762 में किया और पानीपत की विजय उसके लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकी !

9. दक्षिण में निजाम और हैदर अली का उत्कर्ष - पानीपत में मराठों की पराजय से दक्षिण में उनके विरुद्ध शक्ति केंद्र स्थापित हो गए, जिस प्रकार पंजाब में सिखों का उत्कर्ष हुआ उसी प्रकार दक्षिण में निजाम तथा हैदर अली का उत्कर्ष हुआ जिन्होंने मराठा शक्ति को चुनौती दी ! निजाम ने उन पर आक्रमण कर पैसा बहुत क्षति पहुंचाई उसी प्रकार हैदर अली ने अपनी निजाम और मराठा संघर्ष का लाभ उठाकर मसूर में अपनी शक्ति को सुदृढ़ किया उसने पेशवा के अधीन प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया और जो  मराठा प्रभाव से सुदूर दक्षिण में था !

10. अंग्रेजों शक्ति का उत्कर्ष -  पानीपत के युद्ध में मराठा की पराजय का सबसे अधिक लाभ अंग्रेजों को मिला ! पानीपत के युद्ध में मुगल सत्ता पूरी तरह से क्षति ग्रस्त हो गई थी कितनी क्षति ग्रस्त हो गई थी उन प्रदेशों की रक्षा तक नहीं कर पाई ! 1761 में के बाद अंग्रेजों का बंगाल बिहार उड़ीसा में अपनी स्थिति में सुधार करने का अवसर मिल गया ! यदि पानीपत के युद्ध जीत जाते तो राज्य की स्थापना होती !  इस पराजय से मराठा करीब 10 वर्ष के लिए पूर्ण रूप से उत्तर भारत छोड़ गए इस दौरान अंग्रेजों को अपनी जड़ें मजबूत करने का पूरा अवसर मिल कर सका ! अंग्रेजी शक्ति के समक्ष बंगाल का नवाब नतमस्तक हो गया रहे लेकिन निर्मल हो गए तो अवध नवाब अंग्रेजों को रोकने में असमर्थ था उसने भी अंग्रेजों से समझौता कर लिया मुगल सम्राट भी उनके हाथ की कठपुतली हो गए समझौता के साथ साथ अंग्रेजों के हाथ में सारा राज चला गया ! इसीलिए यह युद्ध भारतीय इतिहास में निर्णायक युद्ध माना जाता है !
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