Thursday, January 31, 2019

vijayanagara-samrajya-history | विजयनगर साम्राज्य का उदय -


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विजयनगर राज्य कृष्णा और कावेरी नदी के बीच स्थित था ! जब मोहम्मद तुगलक के शासन  अंतिम काल में संपूर्ण साम्राज्य में अव्यवस्था फैल गई तब 1338 ईस्वी में संगम वंश के हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने तुम भद्रा नदी के तट पर विजयनगर नामक राज्य की स्थापना की तो आगे चलकर एक विशाल साम्राज्य बन गया  और विजय के नाम से प्रसिद्ध हो गया ! इन भाइयों ने हिंदू सत्व को फिर से जीवित करके उस स्वतंत्रता आंदोलन को पूरा कर दिया  वो तेरे से 1327 ईसवी में ही प्रारंभ हो चुका था !

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 विजयनगर राज्य के शासक :-
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 विजयनगर राज्य के कुल चार राजवंशों ने शासन किया था जो बहुत ही महत्वाकांक्षी और योग्य तथा प्रभावशाली राजाओं का शासन रहा !

1. संगम वंश { 1326 - 1485 ई.}
2. सालुव वंश { 1485 - 1505 ई.}
3. तलुवावंश {1505 - 1570 ई.}
4. आरविंदु वंश { 1570 - 1614 ई. }

1. संगम वंश { 1326 - 1485 ई.} :- हरिहर और बुक्का के उत्तराधिकारी संगम वंश के थे जिन्होंने 140 वर्षों तक राज्य किया और उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है !

 {i} हरिहर {1336 - 1553 ई. } - संगम वंश का पहला शासक हरिहर 1336 ई. में गद्दी पर बैठा !  उसने अपनी शक्ति सुदृढ़ करने के लिए विजय नगर, नालोर प्रदेश व उदयगिरी के प्रसिद्ध दुर्ग की नींव रखी ! हरि हर न सफल युद्ध के द्वारा अपने साम्राज्य का विस्तार किया ! 1346 ईस्वी में उसने होयसल राज्य के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया ! 1353 ई.मैं उसकी मृत्यु से पूर्व विजय नगर साम्राज्य उत्तर में कृष्णा नदी तक और दक्षिण में कावेरी के निकट और पूर्व और पश्चिम में समुंदर के मध्यवर्ती प्रदेश तक फैल गया !

{ii} बुक्का  राय {1353 - 1379 ई.} - हरिहर की मृत्यु के बाद उसका भाई बुक्का राय गद्दी पर बैठा और उसका अधिकांश समय अपने समकालीन बहमनी सुल्तान से युद्ध करने में बीता ! इस का मुख्य कारण रायचूर दोआब का उपजाऊ प्रदेश था ! युद्ध में किसी पक्ष को निर्णायक सफलता नहीं मिली !  फिर भी बुक्का राय  का पलड़ा भारी रहा ! बुक्काराय  ने मधुरा पर विजय प्राप्त की ! 1379  ई. में उसकी मृत्यु हो गई ! बुक्का राय अपने समय का एक महान शासक हुआ ! जिसे विजयनगर का सच्चा निर्माताओं ने का श्रेय दिया जाता है ! वह एक कुशल योद्धा तथा जिसमें मुसलमानों के विरुद्ध महान सैनिक सफलताएं प्राप्त हुई !



{iii} हरिहर द्वितीय {1379 - 1404 ई. } - बुका की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हरिहर द्वितीय ने महाराजाधीराज की उपाधि धारण की ! उसने अपने शूरवीर पुत्र वीर बख्स की सहायता से अनेक विद्रोह का दमन किया !अपने शासनकाल में उसने  मैसूर, चिमली पुर, कनारा, कराची आदि पर विजय प्राप्त की ! परंतु बहमनी सुल्तान फिरोज शाह के हाथों उसे पराजित होना पड़ा ! सन 1404 में उसकी मृत्यु हो गई उसने अपने 25 वर्ष के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य की विस्तृत वकिया व्यापार को उन्नत बनाया और प्रशासनिक सुधार किया इसमें सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखें !

{iv} देवराय प्रथम {1406 - 1422 ई. } -हरीयर द्वितीय के बाद उसके पुत्रों में गद्दी के लिए संघर्ष हुआ और अनंत अंत में देवराय प्रथम नंबर 1406 में राजा बना !  बहमनी राज्य से उसका निरंतर संघर्ष संघर्ष चलता रहा पहले उसने बहमनी सुल्तान फिरोज के हाथों पराजित होना पड़ा ! किंतु बाद में 1420 ई. में फिरोज को पराजित करके उसमें अपने हार का बदला ले लिया ! देवराय प्रथम ने न केवल अपने राज्य को सुरक्षित किया  और उसका यथासंभव विस्तार भी किया !


{v} देवराय द्वितीय {1422 - 1446 ई. } - देवराय द्वितीय  संगम वंश का एक महान शासक हुआ जिसने बहमनी राज्य के साथ अनेक युद्ध किए और विजय नगर को मुस्लिम आक्रमण से सुरक्षित रखा !अपनी सैन्य शक्ति सुदृढ़ करने के लिए उसने मुस्लिम घुड़सवारो की भर्ती भी शुरू की ! अपने 6 वर्ष के राज्य काल में उसने विजयनगर राज्य को इतना बड़ा किया वह कृष्णा नदी से लेकर लंका तक और अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक फैल गया ! उसके शासनकाल में दो विदेशी यात्री इडली का निकोला कोणटी और इरान का अब्दुरजाक विजयनगर में आए ! कॉन्टी के विवरण से पता चलता है कि उस समय विजय नगर का राजा भारत में सबसे शक्तिशाली राजा था !

{vi} संगम वंश का पतन - देवराज जी की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मलिकार्जुन गद्दी पर बैठा जिसने बहमनी सुल्तान और उड़ीसा के युद्ध नरेश के संयुक्त आक्रमणों को सफल बनाया और अपने राज्य की सीमा को सुरक्षित रखा ! 1465 इसी में उसकी मृत्यु के बाद विरुपाक्ष राजा बना ! इस दुर्बल राजा के शासनकाल में चारों और अशांति व्यवस्थाएं फैल गई तथा प्रांतीय शासकों ने विद्रोह कर दिया ! इस स्थिति से उत्साहित होकर बहमनी सुल्तान ने रायचूर दोआब पर कब्जा कर लिया और उड़ीसा नरेश तिरुवन्नामलाई तक घुस आया ! अंत में साम्राज्य की रक्षा के लिए चंद गिरी के हिंदू सरदार नरसिंहसालुव ने 1485 ई. में विरूपाक्ष को गद्दी  से हटाकर शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली इस तरह विजयनगर में संगम वंश के स्थान पर सालुव राजवंश की स्थापना हो गई !

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सालुव वंश {1485 -1505 ई.} :-

किस वंश का शासन काल बड़ा अल्पकालीन रहा ! यह वंश भी ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया !  इस वंश के राजाओं के बारे में संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है !


{i} नरसिंह {1485 -1490 ई.} -
                                         सलुआ वंश के संस्थापक पंडित जी ने अपने 8 वर्ष के राज्य काल में प्रांतों के विद्रोह को शांत किया और शासकों को नीचा दिखाया जो उसकी सत्ता मानने को तैयार नहीं थे ! परंतु वह रायचूर दोआब को बहमनी सुल्तान से और उदयगिरी को उड़ीसा नरेश से वापस नहीं ले सका ! उसने सैनिक शक्ति सुदृढ़ करने के लिए अरबी सौदागर हमसे बहुत से घोड़े खरीदे और विजय नगर की किसानों को योद्धाओं में बदल दिया !  1490 ई. में उसकी मृत्यु हो गई !



{ii} सालुव वंश का अंत {1485 - 1505 ई. } -
                                                            नरसिंह सालूवा के उत्तराधिकारी बड़े अयोग्य प्रमाणित हुए ! इस स्थिति में उत्साहित होकर वीर नरसिंह तलवा मे सर्व वंश के अंतिम नरेश के हाथों से 1505 ई.में  राजगद्दी छीन ली !


तलुवा वंश { 1505 -1509 ई. } ;-

 इस वंश के निबंध राजा हुए- जिनके बारे में संक्षेप में जानकारी दी जा रही है !

{i}  वीर नरसिंह { 1505 -1509 ई. }  - तलुवा वंश के संस्थापक वीर नरसी ने विजयनगर पर केवल 5 वर्ष तक  राज किया ! उसने अपने शासनकाल में निरंतर विरोध से जूझना पड़ा ! फिर भी उसने राज्य के सैन्य संगठन में अनेक सुधार किए और पुर्त्गालो के साथ मंत्र पूर्ण संबंधित स्थापित किए जिसने अपनी प्रजा में साहस और वीरता का संचार करने का प्रयत्न किया कुछ करो को हटाकर उस ने प्रजा को राहत देने की भी कोशिश की !

{ii} कृष्णदेव राय {1509 -1529 ई.}  -  वीर नरसिंह की मृत्यु के बाद उसका भाई कृष्णदेव राय गद्दी पर बैठा ! यह वह न केवल तुलुव वंश का बल्कि समस्त विजयनगर साम्राज्य का श्रेष्ठ राजा सी दुआ और इतिहास में उसे भारत का महान शासक बनने का श्रेय प्राप्त है ! 1509 से 1529 ईसवी तक के अपने 20 वर्ष के शासनकाल में उसने विजयनगर को एक विशाल और गौरवपूर्ण साम्राज्य बना दिया ! कृष्ण देवराय बहुत ही शूरवीर और कुशल सेनापति था जिसने अपने शासनकाल में आंतरिक विद्रोह को दबा दिया और उन सब प्रदेशों को वापस चीनी या जो बहमनी सुल्तान और उड़ीसा उड़ीसा के नरेश ने पहले ही ले लिए थे !  उसे अपने जीवन में कभी पराजित हाथ नहीं लगी युद्ध में उसने सेना का नेतृत्व में भी किया 1509 ईसवी में अंतिम दिनों में उसने बहमनी सुल्तान महमूद शाह को करारी हार दी ! अगले वर्ष उसने दक्षिणी मशहूर में अम्मुत्र  के विरुद्ध सरदार को दबाया ! 1511-12 ईसवी में उसने शिव समुद्रम के दुर्ग पर कब्जा कर लिया ! 1512 इसमें कृष्णदेव राय ने बीजापुर के शासक स्माइल आदिल शाह से रायपुर दो-आब सीन लिया ! संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि कृष्णदेव राय ने महान सैनिक सफलताओं द्वारा अपने साम्राज्य की शक्ति और सीमाओं को बढ़ाया ! विजयनगर राज्य की सीमाएं पूर्व में विजय प्रथम पश्चिम दक्षिण को करण और दक्षिण में समुंदर तक फैली गई थी !


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कृष्णदेव राय ने युद्ध में व्यस्त रहते हुए भी शासन प्रबंधन की ओर काफी ध्यान दिया ! उसने कृषि को प्रोत्साहित किया किया जिसमें राज को उसकी आए बड़ी विजय नगर के समीप उसने नगरपुरम नामक नगर बसाया और सुंदर भवनों एवं मंदिरों को भी अलंकृत करवाया ! कृष्णदेव राय ने कला और साहित्य की पूरा संरक्षण दिया ! विधान और कवियों और कलाकारों को उसने इतना परेशान दिया कि उसे लोग आंध्र प्रदेश का भोज कहते थे ! तेलुगु साहित्य की उसके शासनकाल में विशेष उन्नति हुई उस के दरबार में तेलुगु भाषा के 8 प्रसिद्ध कवि को संरक्षण मिला हुआ था ! निस कृष्णदेव राय के समय विजय नगर की शक्ति और समृद्धि सभी राजा में सर्वोच्च थी क्योंकि उसका साम्राज्य और सैनिक बल सबसे अधिक था 1529 में कृष्णदेव राय की मृत्यु हो गई !

{iii} अच्युत्तराय {1529 - 1542 ई. } :- देवराई की मृत्यु के बाद उसके भाई चित्र गद्दी पर बैठा लेकिन बहुत ज्यादा समय तक नहीं रहा 6 महीने तक उसका शासन काल चला और उसके बाद उसका पुत्र बेकेंट गद्दी पर बैठा जिसका शासन काल 42 तक रहा !



{iv} सरदार शिवराय {1542 - 11570 ई. }  तथा तालीकोटा का युद्ध 1565 ई. -

बैक्ट के बाद अच्युत राय का भतीजा सदाशिव राजगद्दी पर बैठा ! आने मंत्री सम राय के हाथों की कठपुतली बना रहा अरविंद वंश का था ! रायमल ने अपनी विवेकपूर्ण नीति से विजयनगर साम्राज्य का पतन की ओर धकेल दिया ! उसने उत्तर दक्षिण की के मुस्लिम राज्यों के बीच पढ़ना शुरू कर दिया उसने सभी मुस्लिम शासक विजयनगर राज्य के विरूद्ध हो गए ! अंत में बीजापुर अहमदाबाद गोलकुंडा और वेदर के शासक ने संयुक्त होकर विजयनगर पर आक्रमण किया और कृष्ण नदी के तट पर तालीकोटा नामक स्थान पर भयानक युद्ध में राम राय पकड़ा गया ! जिसमें अहमद नगर के सुल्तान निजाम शाह ने जान से मार दिया ! तालीकोटा का युद्ध निर्णय हुआ इसके बाद विजयनगर राज्य की फिर से संभल नहीं सका !

आरविंद वंश {1570 - 1614 ई.} -

मुस्लिम सुल्तानों ने विजयनगर के साम्राज्य के काफी भाग प्राधिकार कर लिया था ! शेष भाग पर राय राम राय के भाई तिरुमल ने 1570 में लगभग कब्जा जमाकर अरविंदु वंश की नींव डाली जिस वंश के शासन में लगभग 1614 तक शासन किया ! असहयोग की और निर्मल सिद्धू भेजो विजयनगर को नष्ट होने से बचा नहीं सके ! प्रांतीय गवर्नर स्वतंत्र होते गए और कुछ इलाके बीजापुर गोलकुंडा के कब्जे में चले गए अरविंद वंश का अंतिम शासक रंग दरदिया बड़ा ही अयोग्य निकला !  उसी के समय 1627 वी के आसपास विजय नगर राय समाज हो गया उत्तरी भाग पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया दक्षिणी भाग में पर मधुरा ट्जोरो ने अपने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिए !

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विजयनगर राज्य के पतन के कारण -

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 विजयनगर का शक्तिशाली हिंदू राजा लगभग 300 वर्षों तक दक्षिण भारत में अपनी धूम मचा कर रखा !अंत में नष्ट भ्रष्ट हो गया इसके पतन के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायित्व बने !
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1.      बहमनी  राज्यों के संघर्ष -2.      सैनिक दुर्बलता -3.      प्रजा की दुर्बलता -4.      मुसलमानों के साथ अत्याचार -5.      विभिन्न वंश का शासन होना -6.      रक्षा प्रबंधो की अपेक्षा -7.      अंतिम  शासकों की दुर्बलता -8.      मुस्लिम संघ की स्थापना -9.      तालीकोटा का युद्ध -10.  प्रांतीय गवर्नरओं की प्रबलता –




1. बहमनी राज्य से संघर्ष - अपने पड़ोसी शक्तिशाली बहमनी राज्य से विजयनगर राज्य का निरंतर संघर्ष चलता रहा ! दोनों ही प्रबल राज्य एक दूसरे से घूर प्रतिद्वंदी बन गए और एक दूसरे को उखाड़ फेंकने को तैयार हो गए ! यह संघर्ष दोनों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ ! युद्धों में प्राय विजयनगर को पराजित का सामना करना पड़ा जिसमें उसकी शक्ति का बड़ा धक्का पहुंचा और नष्ट होने के कगार पर आ गया ! हालांकि विजयनगर साम्राज्य का नष्ट होने का प्रमुख कारण इसे ही माना जाता है लेकिन अन्य कारण भी बहुत सारे हैं !


2. सैनिक दुर्बलता -  विजयनगर एक विशाल और प्रबल राज्य था किंतु दुर्भाग्यवश योग्य सैनिकों का अभाव था ! बहमनी सुल्तानों से अपनी सैनिक दुर्बलता के कारण विजयनगर को बाहर बाहर होना पड़ा क्योंकि वह मणि सेना के पास अच्छा तो खाना था विजय नगर के पास अच्छी स्वर्ण सेना भी नहीं थी ! विजयनगर के शासकों ने सेना पर अधिक वर्षा किया किंतु यह सेना मुस्लिम तीरंदाज ओं के सामने ठहर नहीं पाई ! विजयनगर का अंत सैनी का भाव और संसाधनों की कमी का महत्वपूर्ण रोल था !

3.प्रजा को दुर्बलता -  बिजयनगर एक समुंद्र राज्य था !वहां के निवासी भोग विलास मत इक्लिप्त रहते थे जिन्होंने योद्धा बनने की कोई चेष्टा नहीं थी सब फलस्वरूप मुस्लिम राज्य की शक्ति का मुकाबला नहीं कर सकते थे ! फलस्वरूप विजयनगर की शक्ति क्षीण होती गई और विजय नगर नष्ट होने की कंगार पर पहुंच गया !

4.मुस्लिमों के साथ अत्याचार - विजयनगर के हिंदू राजाओं ने एवं नीति अपनाए ! उन्होंने मुसलमानों पर अत्याचार किया और निर्देश निर्गत अपूर्व बंद करवाया पर शुरू मुसलमानों को प्रतिरोध लेने की भावना प्रबल हो गई विजय नगर की संकल्प इन जनता इन विरोधियों की भावनाओं को मुकाबला नहीं कर सकी इसलिए विजयनगर नष्ट होने का महत्त्वपूर्ण कारण यह भी हो सकता है !



5.  विभिन्न वंश का शासन-  विजयनगर पर विभिन्न वस्तुओं का शासन रहा अंत एक संगठन राज्य स्थापित नहीं हो पाया इस सत्ता की न्यू को नहीं रख सका इसलिए हो सकता है विजयनगर साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण विभिन्न राज्यों का रहना ही विभिन्न राज्यों का रहना माना जा सकता है !

6.  रक्षा प्रबंधकों की अपेक्षा -  विजय नगर एक धर्म प्रधान राज्य रहा बाकी हिंदू राजाओं ने हिंदू धर्म की ओर बहुत अधिक ध्यान दिया उन्होंने नगर की रक्षा के लिए कोई  सुदृढ़ प्रबंधन नहीं रखा !

7.  अंतिम शासकों की दुर्बलता -  कृष्ण देवराय के उत्तराधिकारी अयोग्य निर्बल निकले ! उस समरा अभिव्यक्ति के कारण कालिकोट हुई इस कारण विधि और पतन की ओर अग्रसर  हो गया ! आनंद नगर के प्रारंभिक दौर में शासक बहुत ही प्रभावशाली थे लेकिन धीरे-धीरे यह शासन काल में राजाओं का परिवर्तन होता रहा और विभिन्न वंश के राजा आते रहे और निर्बल होता गया और विजय नगर की ओर आ गया !

8.  मुस्लिम संघ की स्थापना - कृष्णदेव राय के बाद विजयनगर में मुस्लिम राज्यों की राजनीतिक स्थिति और भी बढ़ गई ! परिणामस्वरूप बिजयनगर के विरोधी राज्यों का एक ऐसा प्रबंध संग बना लिया जिसका सामना विजय नगर की शक्ति नहीं कर पाई !

9.  तालीकोटा का युद्ध -  मुस्लिम राज्यों के संग में तालीकोटा का युद्ध में विजय नगर को निर्णय विजय नगर के सैनिक शक्ति को इतना कुचल दिया कि वह फिर से संभल नहीं पाया ! विजयनगर साम्राज्य में तालीकोटा का युद्ध एक बहुत बड़ा निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें विजयनगर को भारी क्षति पहुंची !

10. प्रांतीय गवर्नर की प्रबलता -  विजयनगर के विनाश का एक बड़ा कारण यह वीरा की प्रांतीय गवर्नर ओं के हाथों में अत्यधिक शक्ति रही ! केंद्र दुर्बल  होने पर प्रांतीय स्वशासन शब्द होते गए और अपने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिए गए ! इस  प्रकार विजयनगर साम्राज्य तेजी से  विखंडित होता गया !  अंत में एक बहुत बड़े साम्राज्य का नष्ट का कारण  बन गया !


 विजयनगर का हिंदू राजा लगभग 300 वर्षों तक अपना यह  यश  बखेरता रहा ! इस अवधि मैं अनेक प्रभावशाली शासक युद्ध में अस्त रहने के कारण शासन प्रबंधन की ओर ध्यान ना दे सके ! यह सारे कारण विजयनगर साम्राज्य का पतन के कारण बन गहें !
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