self motivation poem hindi | उठो बुलबुलों तोड़ दो तिलिया-
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इस सर्दी-सी बेहया कोई सदी पहले नहीं थी
इस कदर बेआब आंखों
की नदी पहले नहीं थी !
क्या कहा जाए उजालों के सियह किरदार पर
तीरगीबर्दार ऐसी, रोशनी पहले नहीं थी
!
पांव रखे तो कहां
रखें बताएंगे हुजुर
आप की धरती तो इतनी
दलदली पहले नहीं थी !
क्या कहें इस को तकाजा वक्त काट या और कुछ
दोस्तों के साथ ऐसी दुश्मनी पहले नहीं थी !
मस्लेहत तो है यकीन
जानते हैं आप भी
वरना जैसी आजकल है
शायरी पहले नहीं थी !
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self motivation poem hindi | उठो बुलबुलों तोड़ दो तिलिया-
उठो बुलबुलों तोड़ दो तिलिया :-
सुबह-शाम काम ही से
काम है,
यही तो है नसीब
जिसका नाम !
तदबीर किए जाओ, तकदीर बदल जाएगी
आज ना तो कल सही
सुहानी घड़ी आएगी !
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जब-जब कहता हूं हंस राज बहल तो मन मचल जाता है ! मुझे लगता है कि मैं इस नाम को हंसराज की बजाय राजहंस का हूं ! इस सलाह पर जब
सोचने बैठता हूं तो लगता भी है ! कि कितनी समानता है हंसराज बहल में और उस हंस में
जिसे सब नीर क्षीर विवेक वाला मतलब दूध का दूध और पानी का पानी करने वाला विवेक को
योगिता रखने वाला पक्षी मानते हैं ! माता सरस्वती का वाहन होने का सौभाग्य भी उसे
प्राप्त है !
आप जरा हंसराज बहल
के संगीत को पूरी तरह सुन सुन देख तो पाएंगे कि इस सख्त में गीत की रंगत के
मुताबिक वह अवसरों के मुताबिक की मोसम का एक-एक हम हाथ जोड़ा पहनावे का अद्भुत
हासिल करता है !
घिरघिर के जो बादल
आते हैं और बिन बरसे खुल जाते हैं,
आशाओं की झूठी दुनिया में सूखी बरसाते होती है !
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ऐसी खूबसूरत बरसातों के दौरे से गुजरती दुनिया में हंसराज बेहल के कुछ गीत है
जो आज भी आपको अंदर बाहर से भिगोने की कूवत रखते हैं ! अब जैसे रफी साहब की आवाज
में एक और गजल को याद कर लें जब कुछ लुटाया हमने आकर तेरी गली में फिल्म चुनरिया
के लिए मुल्क राज भाकरी की लिखी इस गजल में हंसराज जी ने इस बारे में दर्द की आवाज
देते हुए एक ट्रंपेट का इस्तेमाल किया है ! सच कहता हूं इस खूबसूरत गजल को पूरा
नहीं सुनोगे तो मुझे पाप लगेगा जो सुन लीजिए –
सब कुछ लुटाया हमने, आकर तेरी गली में
घर छोड़कर बनाया, है घर तेरी गली में
!
खंजर तने हुए हैं, और सर झुके हुए हैं,
मकतल का किसका है, मंजर तेरी गली में
!
माथे पर उसको रख लू , सजदे में सर झुका
दूं
मिल जाए जो भी हमको, पत्थर तेरी गली में
!
तेरे लिए जिए हैं, तेरे लिए मरेंगे
हमको दिखाना है ये, मर कर तेरी गली में
!!
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प्रेम ध्वज के लिखे इस गीत में बड़ी खूबी है ! इसे सुनकर अगर आप दिन की शुरुआत
करें तो पाएंगे कि आप आत्मविश्वास और खुद्दारी से इस कदर लबरेज है कि बाहर निकल कर
दुनिया को जीत सकते हैं ! देखिए तो सही आत्मसम्मान और हिम्मत से जीने का क्या
सुंदर रास्ता दिखाया है यह गीत -
सुबह-शाम काम ही से काम है,
यही तो है नसीब
जिसका नाम !
तदबीर किए जाओ, तकदीर बदल जाएगी
आज ना तो कल सही
सुहानी घड़ी आएगी !
ले चला जिधर यह दिल….
मोती भी मिले तो
तुमने न भीख लो हाथों से कमा के जीना सीख लो !
मुट्ठी में
तुम्हारी छुपा हुआ जान है,
मिट्टी सोना हो
तुम्हारे हाथों में वह जान है !
ले चला जिधर यह दिल….
वो जीने वाले
जिंदगी का राग सुन ,
आराम है हराम यह
आवाज सुन !
यह राज तूने जाना तो जिंदगानी बन गई
वरना जीने मरने की
यही कहानी बन गई !
ले चला जिधर यह दिल निकल पड़े !
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नीचे दिए गए इस गीत की रचना, इसकी में समूह की आवाजें, इस गीत की गति, इस गीत में बजते
साज सब मिलकर आपको याद दिलाते हैं कि गुजरे दौर को संगीत का सुनहरा दौर क्यों कहा
जाता है ! सुनेंगे तो आपको होठो पर बेसाख्ता उस दोहरा ने के
लोगों के दिल से दुआ निकले गी ! जो हर दौर के लोगो के लिए वह जीने का सामना कर गए
हैं !
उठो बुलबुलों, तोड़ दो तीलियां
कहा कि ठंडी हवा
कहां ?
उठो बुलबुला, तोड़ दो तीलियां
इस गीत का एक अंतरा
है !
मुझे खबर है पर कटे हैं तुम्हारे
उठो वक्त देता है
तुमको इशारे !
गया वक्त फिर जाकर आए कहां ?
उठो बुलबुलों, उठो बुलबुलों, उठो बुलबुलों,
तोड़ दो तीलियां
कहां के ठंडी हवाएं कहां ?
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Nice
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