रणथंभोर का युद्ध -
- ranthambore durg ka itihas
- ranthambore kile ka rahasya
{ जुलाई 1301 } राणा हमीर चोहान और
अलाउद्दीन खिलजी
आज आपको रणथंभोर के युद्ध की गहराई से जानकारी देंगे, साथ ही यह भी
बताएंगे की इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी की कितनी
तानाशाही थी ! इन सारी चीजों के बारे में
विस्तार से बात करेंगे -
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दुर्ग पहले से ही घेरा जा चुका था ! सुल्तान के आगमन
के पश्चात और अधिक तेजी से घेराबंदी की जाने लगी ! निकटवर्ती प्रदेशों से जुलाहे बुलाये गए और
उनके सिले बोरो को सैनिकों में वितरित किए गए ! सैनिकों ने पूर्व में मिट्टी भरकर
ने खाई में फेंका ! इस प्रकार हाय हाय कि चित्रकार से पसेब की नीव डाली और गर्गच का निर्माण किया गया ! मंगेरिया लगाए लगी ऐसे रक्षक सेना पर पत्थर फेंकने के जाने लगे, * रक्षक सेना बराबर पत्र अग्नि फेंककर पार्षद नष्ट करती रही !“खाजाएअनुलफतुह ” के अनुसार दुर्ग पर पूर्ण अवरोध मार्च-अप्रैल में प्रारंभ हुआ ! पूरे कृष्ण
काल के पश्चात वर्षा ऋतु तक चलता रहा ! इस बीच में दो अन्य विद्रोह हुए किंतु अलाउद्दीन रणथंभौर पर विजय प्राप्त करने
का दृढ़ संकल्प कर चुका था और हिला तक नहीं ! संभवत है जुलाई के प्रारंभ में का निर्माण पूरा हो गया था किंतु उसी समय के
रक्षक सेना के खाध्यान सामग्री भी समाप्त हो चुकी थी पानी और हरियाली अभाव में पूरा दुर्ग कांटों से भरा एक रेगिस्तान हो गया था ! एक रात हमिर ने
जोहर के लिए आग जलाई ! उसकी रानी रंग देवी के नेतृत्व में समस्त महिला आग की लपटों
में नष्ट हो गई !
तत्पश्चात अमीर देश
से युद्ध करने और प्राणों की आहुति देने के लिए पाशेब के सम्मुख आए ! अधिकांश मंगोल
लड़ते हुए मारे गए ! 10 जुलाई 1301 प्रवेश किया तो उसने मोहम्मद साहब को घायल पाया
सुल्तान ने उससे पूछा, मैं तुम्हारे घावो का इलाज करा हु और तो तुम मुझसे कैसा व्यवहार करोगे ? मैं आपको मार
डालूंगा ! यह सुनकर सुल्तान
ने आज्ञा नहीं कि मोहम्मद साहब और हाथी के पैर रखवा कर उसे कुचल दिया जाए ! प्रतिभा तथा अन्य राजपूत चौराहे के पास से भाग कर संतान के पार चले आए थे
उन्हें भी मार डालो ! क्योंकि के प्रति निष्ठावान नहीं रहे तो हमारे प्रतिज्ञा
निष्ठावान रहेंगे ! बाद में उसके साहस और निष्ठा पूर्ण सम्मान से दफनाने की आज्ञा
दे दी गई !
“ राव धुँक गिरने लगत, तरू टूट और पाहर।
रण देसा रो केहरी, रणतभँवर रो नाहर।।
हठी बलि बल
ना हट्यो, शरणागत को मान।
बादल पीठ लावण चढ़्यो, राव भृकुटि तान !!
गच्च गच्च भई खच्च खच्च, बजहिं राव तलवार।
खिलजी सैना उठत गिरै, सुण राव की ललकार।।“
राणा हमीर की वीरता
युद्ध और मृत्यु का कारण कुछ लेकर उसके हमीर हठ “ में बताते हैं !
किंतु यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि हमें राजपूतों के वीर पुत्रों में से एक है
जो अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मुस्लिम आक्रांता उन से लड़ते हुए
वीरगति को प्राप्त हुआ था !
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