Rani-padmavati-ki-kahani | पद्मिनी संबंधित विवाद का कारण
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आप सभी लोगों को पता ही होगा कि चित्तौड़ के राजा रतन सिंह की रानी पद्मावती के बारे में विभिन्न प्रकार
के मत है लेकिन इसमें भी अलग-अलग प्रकार के रहस्य छुपे हैं ! आप भी इस बात से
हैरान हैं की इसका सही इतिहास क्या था क्या इतिहास में
वर्णित सारी घटना काल्पनिक है नहीं तो सभी सही है, इन सारे सवालों से आप को भी इनके इतिहास का रहस्य सही तरह से समझ में नहीं आता
होगा ! लेकिन आज आपको इस इतिहास के रहस्य को स्पष्ट रूप से आपके सामने दे रहे हैं
इससे आपको इस रहस्य की सही
जानकारी मिलेगी !
हमें उम्मीद है, कि आपको इस पोस्ट को अच्छी तरीके से पूरा पढ़ने के बाद इनके इतिहास का रहस्य सही तरीके से समझ में आ ही जाएगा ! लेकिन आप इस पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक ध्यान से पढ़िए –
Rani-padmavati-ki-kahani | पद्मिनी संबंधित विवाद का कारण
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इसके विपरीत प्रों हबीब , निजामी ने लिखा है कि डॉ. k.s. लाल ठीक कहते हैं कि पद्मावत से पूर्व की उपलब्ध किसी पुस्तक में इस अज्ञान का उल्लेख नहीं मिलता है ! फरिश्ता के फारसी लेखको , जिन्होंने पद्मावती की कथा सुनी थी, उनने ऐतिहासिक तथ्यों को जोड़ने का प्रयास किया है ! राजपूत भाटो ने, जो उसे समझ सकते थे, किंतु जो दिल्ली का थोड़ा भी इतिहास जानते थे, उसे पसंद किया और ऐतिहासिक तथ्यों की विषयस्तुति की ! राजस्थान इतिहास के महान विधान डॉ.गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने विस्तार से इस आख्यान की वास्तविक असंभाव्यता की व्याख्या की है ! डॉ दशरथ शर्मा ने इस बात से सहमत नहीं है उन्होंने राजस्थान इतिहास परिषद के अध्यक्ष भाषण में इस वर्णन को प्रमाणित करने का प्रयास भी किया ! उन्होंने कहा यह केवल साहित्य कल्पना नहीं है ! जो लोग इस मलिक मोहम्मद जायसी के मस्ती की सूज- बूज मानकर काल्पनिक समझते हैं वह भूल सकते हैं, क्योंकि इस जायसी के महाकाव्य से वर्ष पहले सीता-चरित्र में भी पद्मिनी की कहानी को लिपि बंद किया गया था !
उपयुक्त वर्णन के विषय में विधानओं की अधिकतम मतभेद है ! प्रो.हबीब ,प्रो.निजामी .डॉक्टर कानूनगो., डॉ ओजा , आदि ! इस वर्णन को काल्पनिक मानते हैं ! इन विद्या नो का विचार है कि यदि ऐसा वास्तव में हुआ होता तो अमीर खुसरो, चित्तौड़ की अभियान के समय स्वयं वहां पर था ! उसने
भी इस विषय में लिखा होगा उसने इस विषय में ऐसा कुछ वर्णन नहीं किया ! तात्कालिक
अन्य इतिहासकार बरनी, इसामी व इब्नबतूता भी इस विषय में मौन है, किंतु परवर्ती फारसी लेखक फरिश्ता, अबुल फजल ने इस घटना का वर्णन किया है ! इस आधार पर कर्नल टॉड, डॉक्टर ईश्वर प्रसाद, डॉ दशरथ शर्मा आदि
प्रधानों ने जायसी के उक्त वर्ण को सही माना है ! डॉक्टर आशीर्वाद लाल जायसी के वर्णन को
प्रमाणित मानते हैं ! उन्होंने लिखा है, डॉ ओझा , डॉ. के. एस. , अन्य लेखकों का यह कथन है की यह कहानी केवल जायसी की मन गणन थी सत्य तो यह है
की जायसी ने प्रेम काव्य रचना की और उसका कथानक खुसरो के खजाना ए उल्फत उसे लिया
है ! पद्मावत में वर्णित प्रेम कहानी के ब्यूरो की अन्य घटनाएं कल्पित है किंतु
काव्य का मुख्य कथानक सत्य प्रतीत होता है !
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इसके विपरीत प्रों हबीब , निजामी ने लिखा है कि डॉ. k.s. लाल ठीक कहते हैं कि पद्मावत से पूर्व की उपलब्ध किसी पुस्तक में इस अज्ञान का उल्लेख नहीं मिलता है ! फरिश्ता के फारसी लेखको , जिन्होंने पद्मावती की कथा सुनी थी, उनने ऐतिहासिक तथ्यों को जोड़ने का प्रयास किया है ! राजपूत भाटो ने, जो उसे समझ सकते थे, किंतु जो दिल्ली का थोड़ा भी इतिहास जानते थे, उसे पसंद किया और ऐतिहासिक तथ्यों की विषयस्तुति की ! राजस्थान इतिहास के महान विधान डॉ.गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने विस्तार से इस आख्यान की वास्तविक असंभाव्यता की व्याख्या की है ! डॉ दशरथ शर्मा ने इस बात से सहमत नहीं है उन्होंने राजस्थान इतिहास परिषद के अध्यक्ष भाषण में इस वर्णन को प्रमाणित करने का प्रयास भी किया ! उन्होंने कहा यह केवल साहित्य कल्पना नहीं है ! जो लोग इस मलिक मोहम्मद जायसी के मस्ती की सूज- बूज मानकर काल्पनिक समझते हैं वह भूल सकते हैं, क्योंकि इस जायसी के महाकाव्य से वर्ष पहले सीता-चरित्र में भी पद्मिनी की कहानी को लिपि बंद किया गया था !
इस विषय में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है,आपको इस विषय में और शोध कार्य के करने के उपरांत ही
किसी निर्णय पर पूछा जा सकता है ! लेकिन आज आपको इस पोस्ट में डॉ दशरथ शर्मा के मत से पता चल चुका होगा ! की यह कोई कल्पना नहीं है, यह सच और सही है जो मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने ग्रंथ
पद्मावत में लिखा है !
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