Monday, September 24, 2018

thar-mrusthal-महान भारतीय मरुस्थल

थार मरुस्थल / महान भारतीय मरुस्थल 


रेतीला मैदान राजस्थान के बहुत बडे भू-भाग पर अरावली श्रेणी के उत्तर-पश्चिम और पश्चिम में विस्तृत है । यह परिचमी रेतीला 'मैदान उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की और लगभग 64० किमी. लम्बे तथा पश्चिम से पूर्व की और लगभग 3००कि,मी. क्षेत्र पर लगभग 1,75,००० वर्ग किमी. में फैला है । इसको पूर्वी सोमा उदयपुर जिले के उत्तरी शीर्ष तक अरावली श्रेणी के पश्चिमी उपपवंतीय खण्ड द्वारा तथा इसके परे 5० सैमी. की वर्षा रेखा तथा महान् भारतीय जल विभाजक द्वारा अंक्ति हैं । इस प्रकार परिचमी रेतीले मैदान को पूर्वी सीमा अंशत प्राकृतिक तथा अंशत : जलवायु से निर्धारित है। पदिचमी सीमा भारत और पाकिस्तान के बीच अन्तर्राहोय सीमा है । राजनीतिक दृष्टि से इस में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ, बीकानेर चूरू, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाडमेर, पालो, सिरोही, जालोर, सीकर व झुझुनूं आदि जिले सम्मिलित हैँ । राजस्थान मरूस्थल को उत्तर -पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओंर चार उपभौतिक प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है।

1 महान मरूभूमि⇨ 

राजस्थान मरूस्थल के सुदूर पश्चिम्र में स्थित महान मरूभूमि बालुकास्तूपो से ढकी" है तथा भारत-पाक सीमा के सहारे-सहारे कच्छ की खाडी से पंजाब तक विस्तृत है ।

2 बाड़मेर जेसलमेर-बीकानेर चट्टानी प्रदेश

महान मरूभूमि के पूर्व में यह प्रदेश स्थित है जो बलुकास्तूपो से सर्वथा मुक्त है और यहॉ बडी संख्या में अनावृत " चट्टानी शैल समूह माये जाते हैं ।

3 लघु मरूस्थल 

   यह प्रदेश चट्टानी प्रदेश के पूर्व मे' कच्छ की खाडी से प्रारम्भ होकर बीकानेर के उत्तऱ में महान मरूभूमि तक विस्तृत है ।

4  अर्द्ध-शुष्क प्रदेश 

यह प्रदेशा लूनी नदी के जलप्रवाह क्रम क्षेत्र में विस्तृत हैं । अर्द्धशुष्क प्रदेश के उत्तरी भाग में डीडवाना, सांभर तथा अन्य खारी झीलें हैं ।


पश्चिमी रेतीला मैदान का बहुत बड़। भाग लगभग 60 % बालुकास्तूपो से आच्छादित है जिसके परिणामस्वरूप बा लुकास्तूपों के विस्तार त्तथा उनकी मात्रा इस प्रदेश की आर्थिक क्रियाओं को अत्यधिक प्रभावित करती है । "

    ⏭ पश्चिमी रेतीले मैदान का विभाजन दो मुख्य उप-इकाइयों में किया जा सकता है । " 


{अ }रेतीला शुष्क मैदान 

इसके पुन: दो भाग किये जाते हैं: 1. मरूस्थली  2 . वालुकास्तूप मुक्त प्रदेश



1.  मरूस्थली  - यह बीकानेर, जैसलमेर, चूरू, पश्चिमी नागौर के कुछ भाग और बाडमेर के दो तिहाई पश्चिमी हुँपाग पर विस्तृत है । पश्चिम मे" और आगे यह रेतीली और शुष्क मरूस्थली थार मरूभूमि के नाम से जानी जाती है ।

मरूस्थली प्रदेश की आम विशेषताएं विशाल रेत के पैल्लाव और चट्टानी परिव्यक्त शिलाएं हैं । उत्तर-पश्चिम में जुरैसिक के विस्तृत कुछ ऊँचे उठे भाग और ईंयोसीन चट्टानें, मुख्यतया चूने के पत्थर की चट्टानें जैसलमेर, बाडमेर, बीकानेर; चूरू और गंगानगर जिलों में मामी जाती हैं । '

बाडमेर, जालोर जैसलमेर तथा अन्य क्षेत्रों में जहॉ परित्यक्त शिलाएं सतह पर अनावृत हैं, उनसे इस प्रदेश की अपरदितस्थलाकृति दिखलायी देती है । मरूस्थली प्रदेश कच्छ की खाही से पाकिस्तान की सीमा के सहारे पंजाब तक बालुकास्तूपों के आवरण से ढका है । इस प्रदेश में बालुकास्तूप एक विशिष्ट भ्रू-आकृतिक लक्षण है । स्तूपों के आकार, रूप, वायु दिशा और वनस्पतिक आवरण के आधार पर एनेह साधारणतया तीन वर्गों मेँ रखा जा सकता है :

⇰पवनानुवर्ती चालुकास्तूप
⇰ बरखान अथवा अर्द्ध-चन्द्रत्कार बालुकास्तूप
⇰अनुप्रस्थ बालुकास्तूप 


⇰पवनानुवर्ती चालुकास्तूप 

   ये स्तूप मैदानी भाग के दक्षिणी तथा पश्चिमी भाग में याये जाते हैं लेकिन बाड़मेरऔर जेसलमेर जिलों मेँ ये अधिकतर दृष्टिगोचर होते हैं । इस प्रकार के स्तूपों में लम्बी धुरी वायु की दिशा के समानान्तर होती है ।

⇰ बरखान अथवा अर्द्ध-चन्द्रत्कार बालुकास्तूप 

 वह प्राय: श्रृंखलाबद्ध मिलते हैं ! यह स्तूप गतिशील होते हैँ । यह प्राय० मरूस्थली के उत्तरी भाग मे देखै जाते हैं । 

⇰अनुप्रस्थ बालुकास्तूप 

अनुप्रस्थ बालुकास्तूप यह वायु की दिशा के समकोण मे बनते हैं । ये मरूस्थली प्रदेश के पूर्वी तथा उत्तरी भागों में साधारणतया पाये जाते हैं । ये स्तूप अर्द्ध-शुष्क भाग मे स्थिर हैं ।

   ⏩  बालुकास्तूप स्तूप का मुक्त प्रदेश

  स्तूप का मुक्त प्रदेशू यह मरूस्थली से लगा हुआ समीपस्थ भूभाग चालुकास्तूप मुक्त प्रदेश जैसलमेर के चारो ओंर लगभग 65 किमी. क्षेत्र पर पोकरन तहसील के आधे भाग पर फ्लोदी तहसील के पश्चिमी और दक्षिणी भागों पर पैल्ला हैं । चूना पंत्थऱ और " बलुआ पत्थर चट्टाने इस क्षेत्र मे अनावृत हैं । जैसलमेर नगर जुरैसिक बालूपत्थरौं से निर्मित चट्टानी मैदान पर स्थित् है । जैसलमेर के उत्तर मे तथा पोकरनकेदक्षिण मे जिन्हें यहार नदुमुश्चा केनाम से पुकर्दरते हैं कईं प्लाया झीलें बेसिनों में मिलती हैं ।

 ⏩ राजस्थान बांगर अथवा अर्द्धशुष्क मैदान

 यह अरावली के पश्चिमी किनारे से रेतीला शुष्क मैदान क्री सीमा तक लगभग 75,००० वर्ग किमी. क्षेत्र पर राजस्थान बांगर अथवा .. अर्द्ध-शुष्क मैदान का विस्तार है । इस क्षेत्र के उत्तर मेँ घाघर नदी का क्षेत्र है । उत्तर-पूर्व में शेखावाटी क्षेत्र तथा दक्षिणी-पूर्वी भाग में लूनी नदी अपनी कईं सहायक नदियों के साथ फैली है जिसमें जोधपुर एवं बाड़मेर जिलों के अधिकांश भाग त्तथामात्ती, जालौर और सिरोही जिले के पबिचमी भाग स्थित हैं । इसे पुन० चार लघु भू-आकृतिक विभागो में बांटा जा सकता है \\

(1) लूनी बेसिन 

अजमेर से लूनी नदी निकलकर दक्षिण से पश्चिम तरफ बहती है जिसमे अरावली के तीव्र उत्तरी-पश्चिमीढालों पर बहने वाली कई छोटी-छोटी नदियाँ इसके बांये किनारे पर आकर मिलती हैं । लूनी तथा इसकी सहायक नदियाँ जोधपुर जिले के दक्षिणी-पूर्वी भाग, पाली, जालोर और सिरोही जिलों मेँ बहती है । लूनी आवाह क्षेत्र 34866.4 वर्ग किं॰मी. के अलावा 'पश्चिमी राजस्थान का सभी बाकी क्षेत्र आन्तरिक प्रवाह का क्षेत्र है ।

लूनी नदी और उस की सहायक खारी व जवाई नदियों के दक्षिण की ओर के स्थलाकृतिक यह इंगित करते हैं कि प्रारम्भिक भूआकृति क्रियाएं जलोढ़ थीं जिन्होंने इस क्षेत्र की परतदार चट्टानों को अधिक प्रभावित् हैँ । दक्षिण पश्चिम हवाओं ने ज़लोढ़ मैदानी और पहाड्री ढालों के विपरीत बालुका जमाव कर दिया है । ला टच पश्चिमी राजपूताना की बालुका वर्णन इस प्रकार करते हैं " ' यह चालूदक्षिणी पश्चिमी झंझाओँ के द्वारा लाई जाती है । यह झक्कड़ वर्ष के अधिकतर महीनों में रेगिस्तान के आर मार चूलते हैँ तथा " यह भूमि पर अतिक्रमण कर चुके हैँ । कोई भी जिला इनसे मुक्त नहीं है, सिवाय उन क्षेत्रों के जो अरावली श्रेणी के पदीय क्षेत्रों में स्थित हैं अथवा उन क्षेत्रों के जहाँ अनेक छोटी-छोटी नदियां पहाडी क्षेत्रों से नीचे उतरती है । यद्यपि उनमें जल, वर्ष को थोडी अवधि में ही बहता है लेकिन ये उस बालूक्रो जो उड़का उसमें आ जाती है, बहा सकने में सक्षम होती हैं । इस क्षेत्र की स्थलाकृतियों में पहाहियां तीव्र दालों वाली तथा विस्तृत कांपीय मैदान मिलते हैं । पश्चिमी कांपीय मैदान और पादगिरि के दक्षिणी पश्चिम भाग वायु द्वारा लाई गई बालूके जमाबों से ढके हुये हैं । इस क्षेत्र में लूनी नदी को दो मुख्य सहायक नदियांखारी व जवाई बहेती हैं । यह धारायें अध सतहीय चट्टानों के गुम्बदीय संरचनात्मक प्रवृति के अनुरूप बहती हैं ।

अरावली श्रृंखला के पदीय और लूनी नदी के बीच का क्षेत्र काफी उपजाऊ है लेविन्न पश्चिम में और आगे कांपीय दूमटकई स्थानों पर थार में रेतीली मिट्टी में बदल जाती है ।

➤ शेखावाटी भू -भाग 

राजस्थान बांगर प्रदेश में राजस्थान की उत्तरी पूर्वी सीमा तक लूनी बेसिन के उत्तर मे" आंतरिक जल प्रवाह का मैदान विस्तृत है । इसकी पूर्वी सीमा 5० से.मी की वर्षा रेखा से निर्धारित होती है । अरावली श्रेणी इस प्रदेश में दक्षिण से उत्तर तक फैली है जो इसको दो भागों में विभाजित करती है । एक तरफ उत्तर में शेखावाटी रेतीले मरूस्थल भूभाग तथा दूसरी तरफ, दक्षिण व दक्षिण पूर्व मेँ जयपुर के उपजाऊ मैदान हैं । इन दोनों के बीच अरावली श्रेणी प्राकृतिक सीमा बनाती है ।

शेखावाटी धूभाग की स्थलाकृति उबड़ खाबड़ बालूके टीलों द्वारा परिलक्षित होंती है ।यहाँ पवनानुवर्ती बालुकास्तूप अधिक दिखाई देता है जो इस भूभाग को विशेषता है "शेखावाटी भूभाग के कस्तों व नगरों के समीप बालुकास्तूपों की संख्या एवं उनका आकार बढता जाता है । यहॉ बालुका स्तूप बरखान प्रकार के हैं जबकि अन्य क्षेत्रों में पवनानुवतीं प्रकार के हैँ । कुछ स्थानों पर निम्म भु-भमाँ में चूनेदार अध स्तर अनावृत है । फलस्वरूप कच्चे तथा पक्के कुओं का निर्माण सुविधाजनक है । ये कुएं स्थानीय भाषा में 'हट्टी-हूर के नाम से जाने जाते हैं ।

यहाँ केवल एक मौसमीय नदी कान्तली है और वह भी बालुका स्तुप धरातल में चूरू जिले में प्रवेश करते ही लुप्त हो जाती है । इस प्रकार यह थू-भाग या तो अंतवंर्ती जल प्रवाह का क्षेत्र है अथवा नदियों से रहित है ।

➤ नागोरी उच्च प्रदेश 

८ यह प्रदेश दक्षिण पूर्व मे' अति आवं लूनी बेसिन तथा उत्तर-पूर्व में शेखावाटी शुष्क अन्तर्वर्ती मैदान के बीच में विस्तृत है । इसकी स्थलाकृति, अन्तर्वर्ती ज़लप्रवाह क्रम, नमकीन झोलों एंव चट्टानी व पहाडी धरातल के कारण अपने आप में विशिष्ट है । यह प्रदेश बंजर और रेतीला हैं क्योंकि मिट्टी में सोडियम नमक पाया जाता है । पर्वतसर के अलावा कहीं भी पडाद्धियां दृष्टिगोचर नहीं हैं । कुछ छोटी पहाड्रियां मायां तहसील में जो अजमेर तक विस्तृत है, पाई जाती है । नागौर मण्डवा और मेडता के समीपवर्ती क्षेत्र बालुकास्तूपोंसे मुक्त है । इस प्रर्देश की समुद्र तल से औसत ऊचाई 30० मीटर से 5०० मीटर है । भू दृश्य कई निग्नगतों से परिपूर्ण है कई छोटेछोटे बेसिन जयपुर-जोधपुर कांटी के समीप पाये जाते हैं । इसप्रदेश क्री महत्वपूर्ण नमक की झौलेखुयेंभदु, डिग ना हुहुंगुमृन और डीडवाना है ।

⏩ घंघर का मैदान 

यह प्रदेश गंगानगर जिले के तीन चौथाई भाग पर विस्तृत है । घग्धर, सरस्वती चौतांग, सतलज नदियों द्वारा हिमालय-पदस्थली के शिवालिक से लाकर जमा की हुई जलोढ़ 'सामग्री द्वारा यह मैदान निर्मित हुआ है । ये नदियां अब विलुप्त हो गई हैं और जूलोढ़ सामग्री अनेक स्थानों पर वायु द्वारा लाई रेत से पूर्णतया ढक'गई हैं  ।इसलिये अब यह प्रदेश एक रेतीला मेदान है जिसमेँ चालुकास्तूप और छोटी बालूकौ पहाडियां छितरी हुई मिलती हैं । इनमें से कुछ बालुका स्तूप गतिशील हैं लेकिन अधिकांश बालुकास्तूप स्थिर हो गये हैँ ।

' इस प्रदेश में घाघर नदी के अलावा और कोई नदी नहीं पाईं जाती है । इर्स नदी के पाट क्रो, जो राजस्थान में ' "नाली ' ' के नाम से जाना जाता है साफ-साफचिकनी, काली व सख्त मिट्टी के रूप में देखा जा सकता है, घाघर नदी अपने प्राचीन पेटे मैं ही बहती हैं । आज की घंघर नदी वैदिक साहित्य की बहुचर्चित सरस्वती नदी है ।


हिए भी जाने। .... 
                           

             राजस्थान की खारे पानी की झीले 




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