राजस्थान की खारे पानी की झीले ⇰
सांभर झील
इस झोल की स्थिति 27० से 29० उत्तरी अक्षांशों व 74० से 75० पूर्वी देशान्तरों के मध्य है । यह जयपुर-फुलेरा रेल मार्ग पर जयपुर से 65 किमी. पश्चिम में फुलेरा तहसील में स्थित है । इसकी ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 367 मीटर है । यह राज्य में ही नहीं बल्कि देश में खारे पानी की सबसे बड्री झील है जिसमें मेढ़ग्र, रुपनगढ़, खारी और खण्डेला नदियों आकर गिरती है । इसका अपवाह क्षेत्र लर्गभग 5०० वर्ग किलोमीटर में विस्तृत है । सांभर शील की लम्बाई दक्षिण-पूर्व सै उत्तर-पश्चिम की ओंर लगभग 32 किलोमीटर तथा चौड्राईं 3 किलोमीटर से 12 किलोमीटर है । इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 5० से.मी. है । मानसून काल में इसका जल 145 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल जाता है । ग्रीष्म ऋतु मेँ जब वाप्पीकरण की दर तेज होती है तो इसका विस्तार बहुत कम रह जाता है । ऐसा अनुमान है कि झोल में 4 मीटर की गहराई तक नमक की मात्रा 35० लाख टन है अर्थात् प्रति वर्म किलोमीटर क्षेत्र पीछे 6०,००० टन नमक होने का अनुमान है । वर्तमान में सांभर नमक परियोजना का प्रबन्ध हिन्दुस्तान नमक कम्पनी के हाथ में है । एक सोडियम-सल्बेल्ट संयंत्र स्थापित किया गया है । जिससे 5० टन प्रतिदिन सोडियम सल्बेल्ट का उत्पादन झीलपचपदरा झील
८ यह झोल बाड़मेर जिले में पचपदरा नामक स्थान पर खरि मानी की झील है ।
यह लगभग 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर विस्तृत है । यह झील वर्षा जल के ऊपर निर्भर नहीं है बल्कि नियतवाही जल स्वीतों से इसे पर्यास खारी जल मिलता रहता है । लगभग 4 ०० वर्ष पूर्व एक पंचा था जिसने इस झील के समीप आका एक खेडा या पुरवा स्थापित किया । अत॰ उसके नाम के पीछे इसे पचपदरा तथा बाद मे अपधंश होकर यह पचभद्रा पुकारा जाने लगा । इसके पक्षात खारवाल जाति के लोग ( अब खेरवाल कहलाते हैं ) यहॉ आकर बसे जिन्होंने नमक निर्माण के कार्यं क्रो क्रमबद्ध तरीकों से प्रारम्भ किया । यह लोग मोरली झाडी की टहनियों का उपयोग नमक के स्कटिक बनाने के लिए करते हैं । नमक उत्तम किस्म का होता है जिसमें 98०/० तक सोडियम क्लोराइड की मात्रा पाई जाती है ।
लूनकरनसर झील
यह खारी झील बीकानेर के लूनकरनसर में स्थित है । इस झील से नमक ब हुत ही कम बनाया जाता है ।अन्य नमकीन झीलें फलोदी, हुकाचौद ( जैसलमेर ), कछोर और रैचासा है । लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि प्रतिवर्ष इनसे बहुत बडी मात्रा में नमक तैयार करने के बाद भी नमक क्री'मात्रा मेँ कमी नहीं आई है । इस विषय मे दूम्त त्टिनोलिंग तथा डालेण्ड और क्राइस्ट आदि विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किये हैं । . द्धूम्स के अनुसार इन झीलों के स्थान पर पहले एक विशाल जलाशय था जिसके सूख जाने के परिणामस्वरूप यहा नमक के इतने बहे जमाव पाये जाते हैं । त्तोंटिस्ति। का अनुमान है कि साभर झोल में नमक भूमि के नीचे लवणीय जल के स्वीर्तों के प्रवाहित होने के फलस्वरूप मिलता है । '
हालेण्ड और क्राइस्ट के विचार हैं कि राजस्थान मैं इन झीलों मेँ इतनी अधिक मात्रा में नमक पाये जाने का एक मात्र कारण ग्रीष्मऋतु में चलने चाली दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाएं हैं जो अपने साथ कच्छ की खाडी से सोडियम क्लोराइड नामक नमक धुल के कणों के रूप में राजस्थान को ओंर ले आती हैं । ज्यों-ज्यों ये हवाएं राजस्थान की…ओर अग्रसर होती हैं, उनकौ गति में शिथिलता आने के कारण नमक के कणों क्रो और आगे ले जाने में असमर्थ माती हैं । फलस्वरूप नमक के कण राज्य के रेगिस्तानी क्षेत्रों में गिर पडते हैं । यह असंख्य नमक कण इस भाग को छोटो-छोटो नदियों के द्वारा वर्मा क्तु में सांभा जैसी झोलों में पहुंचा दिये जाते हैं । ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि प्रतिवर्ष ग्रीष्म ऋतु में इन यवनों द्वारा औसतन एक लाख टन नमक राजस्थान क्री इन झीलों में पहुंचा दिया जाता है । फलत : झोलों में नमक की मात्रा मॅ कभी भी कमी महसूस नहीं होतो है
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