Sunday, April 21, 2019

chhatrapati shivaji maharaj history hindi mai | छत्रपति शिवाजी

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शिवाजी का परिचय :-
                               मराठा शक्ति का उत्कर्ष भारतीय इतिहास की एक' महत्त्वपूर्ण घटना थी |  उत्कर्ष का श्रेय शिवाजी को जाता है |  निसन्देह शिवाजी एक सेनापति ही नही वरन् राष्ट्र निर्माता भो था ||

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शिवाजी का जन्म- 20अप्रेल 1627 को शिवनेर के किले में हूआ |  शिवाजी के पिता शाहजी भौंसले मेवाड के सिसोदिया वंश के थे एवं माता जीजाबाई देवगिऱी के यादव वंश की थी \ अपने जूर्टरुजॉ की चीरता एदं साहस का प्रभाव शिवाजी पर भी पडा 1 जीजाबाई शिक्षित एवं धर्मपरायण स्री थी || '
उन्होंने रामायण एवं महाभारत कं वीरों की कहानियों कौ शिवाजी को सुनाकर उनके मन में बोरों का अनुकरण करने की भावना कूट-कूट कर भर दी । र्डन्होंने शिवाजी' में देश प्रेम के गोरक्षा की भावना जाग्रत्त की ९दादाजी कोंडदेव ने शिवाजी को घुड़सवारी और तंलवारवाजी की शिक्षा प्रदान की | शिवाजी के आध्यात्मिक गुरू का नाम रामदास था । शिवाजी ने 'सिंहगढ एवं मुरन्दर के दुर्गों पर अपना अधिकार करने के साथ हो अनेक दुर्गों को अपने अधीन किया, जिनमें तोरण, चांकन, काण्डानाय एवं सूवा आदि थे||

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 शिवाजी के राज्य की सीमा⇔ :

शिवाजी के राज्य की सीमा :   शिवाजी की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना को छूती थी और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र बाद में सम्मिलित हुए। स्वराज का यह क्षेत्र तीन मुख्य भागों में विभाजित था:-

1.पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।
2. उत्तरी कनारा तक दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तों के अधीन था।
3.दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र था, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे और दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे। इन तीन सूबों को पुनः परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था। परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे।

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 शिवाजी की सेना⇔
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                            शिवाजी की सेना : शिवाजी ने अपनी एक स्थायी सेना बनाई थी। शिवाजी की मृत्यु के समय उनकी सेना में 30-40 हजार नियमित और स्थायी रूप से नियुक्त घुड़सवार, एक लाख पदाति और 1260 हाथी थे। उनके तोपखानों के संबंध में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

घुड़सवार सेना दो श्रेणियों में विभाजित थी:- बारगीर व घुड़सवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोड़े और शस्त्र दिए जाते थे सिल्हदार जिन्हें व्यवस्था आप करनी पड़ती थी। घुड़सवार सेना की सबसे छोटी इकाई में 25 जवान होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। पांच हवलदारों का एक जुमला होता था। जिसके ऊपर एक जुमलादार होता था। दस जुमलादारों की एक हजारी होती थी और पांच हजारियों के ऊपर एक पंजहजारी होता था। वह सरनोबत के अंतर्गत आता था। प्रत्येक 25 टुकड़ियों के लिए राज्य की ओर से एक नाविक और भिश्ती दिया जाता था।


गुरिल्ला युद्ध के अविष्कारक
                                             गुरिल्ला युद्ध के अविष्कारक : कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरम्भ किया था। उनकी इस युद्ध नीती से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंगल जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित 'शिव सूत्र' में मिलता है। गोरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रुसेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं।

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मुगलों से टक्कर⇰


मुगलों से टक्कर : शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित हो कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। लेकिन सुबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गई। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी।

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शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरन्दर के क़िले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल, 1665 ई. को 'व्रजगढ़' के किले पर अधिकार कर लिया। पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का अत्यन्त वीर सेनानायक 'मुरार जी बाजी' मारा गया। पुरन्दर के क़िले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून, 1665 ई. को 'पुरन्दर की सन्धि' सम्पन्न हुई।

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