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जीवन जीने का सबसे सरल
रास्ता और सत्य के साथ प्रयोग है ! यही कारण है कि “मैं “ दूसरे लोगों के लिए क्रांतिकारी होगा ! लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या
परोक्ष रूप से महात्मा गांधी के शिष्य हैं, जो बाबू को आज भी
प्रसांगिक बनाती है !
आपको ऊपर की दो लाइनों सही
प्रेम के भाव को प्रकट करने का तरीका मिल गया होगा ! ऊपर की दो लाइनों
में आपको यह बताया गया है कि हम गांधी के शिष्य हैं, अगर इसके स्थान पर मैं लिखता ! कि मैं गांधी का शिष्य
हूं ! तो स्वाभाविक ही होगा कि दूसरों के लिए यह क्रांतिकारी शब्द है ! इसी लिए सभी से प्रेम
भाव प्रकट करने के लिए लिखा गया कि हम गांधी के शिष्य हैं ! इस दूर लाइनों
से ही आपको इतनी बड़ी शिक्षा मिल जाती है ! कि आप किसी भी कार्य या किसी भी
व्यक्ति से बात करते वक्त मैं शब्द का प्रयोग न करके हम शब्द
का प्रयोग करें ! इससे आप के प्रेम संबंध तो बढ़ेंगे साथ ही आपकी किसी कार्य को
करने में सरलता और सहजता हो जाएगी !
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आइए जानते हैं , क्या है महात्मा
गांधी के जीवन और दर्शन में कि वह सिर्फ व्यक्ति नहीं संपूर्ण विचार बन गए ! और वह कौन-सी बात
है, जो बापू को आज भी
प्रासंगिक बनाती है !
आज गांधी जी के सिद्धांतों की
व्याख्या तरह तरह से होती है लेकिन हम आपको शुरुआत की दौड़ से शुरू करके आज तक कि
गांधीजी के सिद्धांतों की व्याख्या के बारे में बात करेंगे !
लुई फिशर लिखते हैं ,भारत ने सदा ही
अपना सर्वोत्तम दुनिया को दिया है ! यह वह धरती जहां जन्म लेते बुद्ध जिसे मानने
वाले की संख्या करोड़ों में है ! करोड़ देश के बाहर और मुट्ठी भर भीतर ! कालांतर
में यह मीठी दुनिया को गांधी जैसा दृष्टा होती है ! लेकिन वह भी कहीं गुम हो जाते
हैं !
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मेरा सवाल है ?
कि भारत में जो
गांधीवादी है क्या यह सच उनकी राह पर चल रहे हैं ?
कहीं गांधी एक खोए
हुए महात्मा तो नहीं है ?
क्या उस फरिश्ते की
चमक अपनी ही धरती पर मिट रही है ?
गांधी एक व्यक्ति
ही नहीं विचार थे !
साबरमती आश्रम से गुजरते हुए
मार्टिन लूथर किंग के एक कथन पर जब नजर पड़ती है तब ऐसा लगता है मानो महात्मा
गांधी अपने जादुई सशक्त के साथ हमारे आस पास ही है ! हम अपने रिएक्स परी इन की
अनदेखी कर सकते हैं क्योंकि महात्मा गांधी व्यक्ति नहीं थे विचार थे !
अहिंसा के प्रति उनकी
आस्था और सत्य के साथ अनगिनित प्रयोग सारे विश्वास के लिए प्रेरणा बने और सबकी
प्रसांगिक है ! यह इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि दुनिया में महात्मा गांधी
पर जितने शोध हुए और भी हो रहे हैं और जिस गति से पूरे संसार में गांधियन संकाय की
स्थापना हो रही है वह उनकी स्वाभाविक उपस्थिति की गुणात्मक उपयोगिता की सहज स्वीकारोक्ति है !
मार्टिन लूथर किंग के जिस कथन का
हमने ऊपर जिक्र किया उसे अब-पढ़े ! इसमें मार्टन महात्मा गांधी के दर्शन में
संपूर्णता मिलने की बात कहते हैं - ‘बौद्धिक’ और नैतिक संतुष्टि
जो मुझे बेदम और मिल के उपयोगितावाद में मार्क्स और लीलन लीलन के क्रांतिकारी
सिद्धांत में पुरुषों के प्रकृति की ओर लौटो अवधारणा और आशीर्वाद में नीचे की अति
मानवतावाद दर्शन में नहीं मिल सकी ! वह मैंने गांधी के अहिंसा वादी दर्शन
में प्राप्त की !
महात्मा गांधी की जरूरत अब और
ज्यादा हो जाती है जब इंसान नागरिक से ज्यादा ग्राहक बनाने को उतारू है ! आंतरिक और बाह्य
अवस्था से ज्यादा हम आर्थिक संपन्नता में डूबा नजर आ रहा है वह भूल रहा है कि
बाहरी विकास से जादा आंतरिक विकास की आवश्यकता होती है !
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अहिंसा में ही है समाधान -
आज हम अपने सर
जनशक्ति से अंतरिक्ष में भी जीवन तलाश रहे हैं ! कृत्रिम मैदा और नरसिंह भाग के संघर्ष में उसे कुछ हद
तक आक्रमक को संवेदनशील भी बना दिया दुर्भाग्य है कि गांधी के देश में आज बात बात
पर हिंसा और उबाल दिखाई देता है ! आतंकवाद और अन्य तरह की कला में विश्व उलझा हुआ
है यहां पर प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि की किरदार सूरदास की याद आती है उसने कहा
था कि हम इस आत्मक प्रवृत्ति से लड़ाई नहीं जीत सकते अगर इनमें से लड़ना है तो
हमें अपने मन पर विजय पानी होगी हम और भी गए तो क्या हुआ हम हिंसा तो नहीं करेंगे
!
कहने की बात यह नहीं की सूरदास
महात्मा गांधी की वैचारिक प्रभाव से प्रभावित है यानी लेखक के रूप में प्रेमचंद
बाबू के सिद्धांत को अपने किरदारों को जुबान पर ले आते हैं सच तो यह है कि गांधी
की अहिंसा में वैचारिक शुद्धीकरण भी था ! उनकी नजर में कोई अलग नहीं था सब सम्मान
थे !
सहिष्णुता और सेवा सभाओं के साथ
महात्मा गांधी की अहिंसा का सफर चलता रहा !यह काम आसान नहीं था बापू के मुताबिक है
इंसान के रास्ते पर वही चल सकता है जो मानवीय संवेदनाओं को सत्य में जीता है !
आखिरी कायर को अंहिसा का पाठ कैसे पढ़ाया जाए ? अहिंसा तो वीरों की
नीति है ! सही साधन और गलत साधनों के बीच का फर्क है , हिंसा के भाव से ही
आता है ! और जो अतः साध्य को हिंसात्मक होने से बचाता है जिस तरह सशक्त अमेरिका और
महान अमेरिका में फर्क है उसी तरह से सशस्त्र भारत और महान भारत में अंतर है !
ग़ोरतलब महान सामाजिक कार्यकर्ता सीजर चावेज महात्मा गांधी से काफी
प्रभावित रहे ! वह अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के एक प्रमुख नायक थे ! क्या वे
कहते हैं कि महात्मा गांधी ने हिंसात्मक आंदोलन की चर्चा ही नहीं की बल्कि संसार
को यह भी बताया कि कैसे हिंसा साधन हमें न्याय और मुक्ति जैसे साध्य के करीब लाते
हैं !
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सत्य में ही है जीवन :-
महात्मा गांधी के लिए सत्य ही सब
कुछ रहा सच बोलना सत्य में जीना सच कोई महसूस करना ! जब महात्मा गांधी के पुत्र
मणिलाल दक्षिण अफ्रीका में पिता के साथ पोलाख साहब को अपने वादे के अनुसार पुस्तक
नहीं पहुंचा पाए तो गांधी जी को यह नागवार गुजरा ! उनके अनुसार मणिलाल ने पुस्तक पहुंचाने का वादा किया
था और वह सिर्फ गांधीजी के लिए शब्द नहीं बल्कि सत्य के साथ रहना था
आखिरकार मणिलाल को से मिल की यात्रा करके वह किताब पहुंचा नहीं पड़ी ! गांधी जी के शब्दों में मेरा दृढ़ विश्वास है कि सृष्टि में सिर्फ सत्य की सदा
रहेगी अगर मुझसे हिसाब है सत्य में से एक को चुनना पड़े तो मैं सत्य को ही चुनुगा
!
बात उन की स्कूली दिनों
में की है ! तब परीक्षा में मोहन दास ने कैटल की स्पेलिंग गलत लिखी थी ! मास्टर
साहब ने अपने पैरों के जरिए मोहन दास को आगे वाले बच्चों की प्लेट से देख कर लिखने
का इशारा किया आखिरकार मास्टर साहब को क्या पता था कि मोहनदास अपने सत्य की आस्था
को महसूस कर रहा है उनकी चेतना अद्भुत और विशुद्ध काफी टेस्ट वाले जमाने में यह
सत्य बीच कितने प्रसांगिक है !
अमेरिका के पूर्व
राष्ट्रपति बराक ओबामा से एक छात्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि अगर
उन्हें इतिहास या वर्तमान में से किसी के साथ भोजन करने की ख्वाहिश हो तो वह महात्मा
गांधी है !
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बापू का जीवन ही बना संदेश –
मटन सुआरेज ने अपनी
पुस्तक ऑफ अलास्का में लिखा अगर जींस या बुध होने की राय चाहिए तो गांधी जी को समझ
लीजिए -
हाल ही में अमेरिका
के जाने-माने राजनीतिक विचारक कालेज में माननीय को मारने वाले महा नायकों की को
शुरू की ओर से सभी में से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए महात्मा गांधी रहे उनके
जीवन दर्शन और चिंतन की डेथ रेस ऑन हेल्थ कहते हुए समाजशास्त्रीय शौकीन ने अपनी
पुस्तक ‘द.रिक्स्त्वशन ऑफ़
युमिनिती ‘’ विश्व को समर्पित की है !
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भारत के डॉक्टर थे गाँधी -
यह वाक्य उस समय का
है जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया था ! उन्हें पता था कि
संघर्ष-विराम का संघर्ष ही भारत को स्वतंत्रता के करीब ला खड़ा करेगा ! पर नेताजी
सुभाष चंद्र बोस को यह नागवार गुजरा ! उन्हें लगा कि बापू
द्वारा आंदोलन वापस लेना सही निर्णय नहीं है ! तभी नेहरू ने तल्ख लहजे में उनका
कहा कि भारत के डॉक्टर महात्मा गांधी है ! वह जनता की नब्ज सुनते और समझते हैं
उन्हें पता है कि कब क्या करना है ! नेहरू बिल्कुल सही थे क्योंकि अंग्रेजों ने इस हिंसात्मक तरीके से आंदोलन को
कुचलने का मन बना लिया था वह ऐसे डॉक्टर इशारों इशारों में बहुत कुछ कहगे !
अंत में आप सभी को गांधीजी का अद्भुत
विचार आपको भेट -
“ स्वपन, त्मनुशासन , स्वानुशासन और फिर
स्वराज -यही प्रक्रिया है गांधीजी के विकास की ! गांधी का दर्शन तोल्स्तोल रिस्कन
बुध आदि सभी दार्शनिक विचारों के दर्शन का सार है इसलिए इसका प्रसांगिक होना
अवश्यंभावी है ! “
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