lok katha story in hindi
लोककथा : किसका अधिकार
राजकुमार सिद्धार्थ एक दिन बगीचे में टहल रहे थे । इतने में आकाश से हंस पक्षी चीखता हुआ ! गिर पड़ा । किसी ने हंस को बाण मारा था । कुमार सिद्धार्थ ने पक्षी के शरीर से बाण निकाला और यह देखने के लिए किं शरीर में बाण चुभता है तो केसा लगता है, उस बाण को अपनी भुजा में चुभाया । बाण चुभते ही राजकुमार के नेत्रों से टप-टप आंसू गिर ने लगे । उन्हे' अपनी पीडा का ध्यान नहीं था। बेचारे पक्षी को कितनी पीडा हो रही होगी, यह सोचकर ही वे रौ पड़े थै । सिद्धार्थ नै हंस के घाव धोये । उसके घाव पर पत्तियों का रस निचोड़ा और उसे गोद में लेकर प्यार सै सहलाने लगे । इतने मेँ दूसरे कुमार देवदंत का स्वर सुनाई पड़ा'मेरा हंस यहां गिरा है क्या ? ' राजकुमार देवदंत सिद्धार्थ कुमार के चचेरे भाई थे । वे बडे क्टोर स्वभाव के थे । शिकार करने में उम्हें आनंद आता था । हंस को उन्होंने ही जाण मारा था । सिद्धार्थ की गोद में हंस को देखकर वे वहां दौडे आये और बोले'यह हंस तो मेरा है । मुझे दे दो । '
सिद्धार्थ बोले'तुमने इसे पाला है ?" देवदंत ने कहा'मैंने इसे बाण मारा है । वह देखो मेरा बाण पड़ा है ।' कुमार सिद्धार्थ बोले'निरपराध पक्षी क्रो तुमने क्यों बाण मारा! जाण चुभने सै बडी पीडा होती है, यह मैंने अपनी भुजा में जाण चुभा कर देखा है । मैँ हंस तुम्हें नहीँ दूंगा । यह जब अच्छा हो जाएगा, में इसे उढ़ जाने के लिए छोड दूंगा ।' कुमार देवदंत हंस के लिए झगड़ने लगे । बात महाराज शुद्धोंदन के पास गयी । उन्होंने देवदंत से पूछा'तुम हंस को मार सकते हो?" देवदंत ने कहा' आप उसे मुझे दीजिये, मैँ अभी मार देता हू।" महाराज ने पूछा-"तुम फिर उसे जीवित भी कर दोगे ?' देवदंत ने कहा'मरा प्राणी भी कहीं जीवित होता है ! ' महाराज ने कहा'शिकार के नियम के अनुसार यदि हंसमर गया होता तो उस पर तुम्हारा अधिकार होता । लेकिन मरते प्राणी कों जो जीवनदान दे, उसका उस प्राणी पर उससे अधिक अधिकार होता है ! सिद्धार्थ ने हंस को मरने से बचाया है , अत : हंस सिद्धार्थ का है ! कुमार सिद्धार्थ हंस को ले गए जब हंस का घाव ठीक हो गया ! तब उसे उड़ा दिया ।
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