भक्तिकाल की विभिन शाखाऐं ⤇ my youtube chennal
भवित-काव्य की विभिन्न शाखाएँ प्रकार की होती है , निमुँण भक्ति और सगुण भक्ति | इसी आधार पर भवित-काव्य की दो प्रमुख धारांए हुई - सगुण काव्य धारा और निर्गुण काव्य धारा
भक्ति -काव्य
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निर्गुण काव्य धारा सगुण काव्य धारा
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ज्ञानमार्गी शाखा प्रेममार्गी शाखा राम-भक्ति काव्य कृष्ण भक्ति काव्य
➤सगुण भक्त कवियो के आराध्य लीला करते हैं अर्थात् ये सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं फिर भी आम आदमी की तरह चलते-फिरते, हँसते-बोलते तथा व्यवहार करते हैँ ।
➤निर्मुण भक्तों की तरह इस धारा के कवियों ने भी गुरु क्रो महत्त्व दिया है ।
➤इनके अनुसार ज्ञान से ईश्वर नहीं मिलते, इनकी भक्ति ईश्वर के नाम, गुण, रूप और लीला का स्मरण और वर्णन तथा उसकं प्रति समर्पण भाव से प्रकट होती है ।
➤इनके काव्य में नवधा भक्ति को आधार बनाया क्या है ।
➤इन्होंने भगवान के पालन करने वाले रूप की ओंर अधिक ध्यान दिया है । मुख्यत: इन सब ने अपने आराध्य का गुण-कीर्तन किया है ।
➤ईश्वर के अवतार में ये विस्वास नहीँ करते । वे तर्क (झान) के आधर पर अवतारवाद का खंडन करते हैं तथा ईश्वर को आतरिक अनुभूति का विषय मानत हैं । कुछ निर्मुण उपासक कवियों ने प्रेमकथाआँ के माध्यम से ईश्वर के निराकार रूप को समझाने का प्रयास किया ।
➤ इस तरह निर्मुण काव्यधारा की दो उप-धाराऐँह हो गई । पहली ज्ञानमार्गी धारा दूसरी प्रेममार्गी धारा । ज्ञानमार्गी धारा को मुख्यत सतो ने पुष्ट किया इसलिए इसे सत-काव्य या सत-सऱहित्य भी कहते है । प्रममार्गी धारा के कबि ट्टसूफी मत (इस्लाम ओर भारतीय वेदांत दर्शन का मिला-जुला रूप) को मानत थे । इसीलिए प्रेममार्गी धारा के काव्य-साहित्य को सूफी काव्य या प्रेमारव्यरुनक प्रिम+आरव्यान आरत्यान अर्थात कथा) काव्य भी कहते हैं ।
➤निर्मुण सत-काव्य के प्रवर्तक कबीरदास (1399-15 । 8 ई.) माने जाते हैं । कबीर के सबंध में अनेक परस्पर बिन्मेधी धारणाएँ प्रचलित हैं । इतना निदिचत्त है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा न गें प्राब्ल की थ्री । वे रामानंद कं शिष्य थे । उन्होंने हिंदू और मुसलमान दोनो में व्याप पापड क्र" कड शब्दों में निंदा की । अन्य धार्मिक तथा सामाजिक संस्कारों की तरह दृदृमेज्यश्चि की भाषा और शैली भी उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सिद्धों और नाथपथी जानिब, १८. प्राप्त को तथा उसे अपने समय और समाज कं अनुकूल निखारा । उनकी गपनब्व हिदी क शीर्घ कवियों में की जाती है । अनेक भाषाओं कं मिले जुले रूप कं का टण उच नितांत भिन्न प्रकार की है 'और संभवत इसी कारण' है ।
सगुण भक्ति-धारा ➥
➤सर्गुण भक्ती कवि जाति-पॉति में विश्यास नही करणे थे । उन्होंने सभी को भक्ति है का अधिकारो माना है ।
'' जाति -पाँती पूछे नहीं कोई | हरि को भजै सो हरि का होई | ''
➤सगुण भक्त कवियो के आराध्य लीला करते हैं अर्थात् ये सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं फिर भी आम आदमी की तरह चलते-फिरते, हँसते-बोलते तथा व्यवहार करते हैँ ।
➤निर्मुण भक्तों की तरह इस धारा के कवियों ने भी गुरु क्रो महत्त्व दिया है ।
➤इनके अनुसार ज्ञान से ईश्वर नहीं मिलते, इनकी भक्ति ईश्वर के नाम, गुण, रूप और लीला का स्मरण और वर्णन तथा उसकं प्रति समर्पण भाव से प्रकट होती है ।
➤इनके काव्य में नवधा भक्ति को आधार बनाया क्या है ।
➤इन्होंने भगवान के पालन करने वाले रूप की ओंर अधिक ध्यान दिया है । मुख्यत: इन सब ने अपने आराध्य का गुण-कीर्तन किया है ।
निर्गुण काव्य धारा ➥
➤ इस काव्य-धारा के कवियों ने ईश्वर को रूप, आकार आदि से रहित नि +गुण गुण=रूप माना है ।
➤ईश्वर के अवतार में ये विस्वास नहीँ करते । वे तर्क (झान) के आधर पर अवतारवाद का खंडन करते हैं तथा ईश्वर को आतरिक अनुभूति का विषय मानत हैं । कुछ निर्मुण उपासक कवियों ने प्रेमकथाआँ के माध्यम से ईश्वर के निराकार रूप को समझाने का प्रयास किया ।
➤ इस तरह निर्मुण काव्यधारा की दो उप-धाराऐँह हो गई । पहली ज्ञानमार्गी धारा दूसरी प्रेममार्गी धारा । ज्ञानमार्गी धारा को मुख्यत सतो ने पुष्ट किया इसलिए इसे सत-काव्य या सत-सऱहित्य भी कहते है । प्रममार्गी धारा के कबि ट्टसूफी मत (इस्लाम ओर भारतीय वेदांत दर्शन का मिला-जुला रूप) को मानत थे । इसीलिए प्रेममार्गी धारा के काव्य-साहित्य को सूफी काव्य या प्रेमारव्यरुनक प्रिम+आरव्यान आरत्यान अर्थात कथा) काव्य भी कहते हैं ।
➤निर्मुण सत-काव्य के प्रवर्तक कबीरदास (1399-15 । 8 ई.) माने जाते हैं । कबीर के सबंध में अनेक परस्पर बिन्मेधी धारणाएँ प्रचलित हैं । इतना निदिचत्त है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा न गें प्राब्ल की थ्री । वे रामानंद कं शिष्य थे । उन्होंने हिंदू और मुसलमान दोनो में व्याप पापड क्र" कड शब्दों में निंदा की । अन्य धार्मिक तथा सामाजिक संस्कारों की तरह दृदृमेज्यश्चि की भाषा और शैली भी उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सिद्धों और नाथपथी जानिब, १८. प्राप्त को तथा उसे अपने समय और समाज कं अनुकूल निखारा । उनकी गपनब्व हिदी क शीर्घ कवियों में की जाती है । अनेक भाषाओं कं मिले जुले रूप कं का टण उच नितांत भिन्न प्रकार की है 'और संभवत इसी कारण' है ।
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