Sunday, December 23, 2018

hindi poem | hindi kavita on life |बीते जमानों की दुनिया | #dharti dhora ri kavita

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 “  किताबें "

किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की दुनिया की,
इंसानों की आज की,

कल की एक-एक पल की।
खुशियों की, गमों की, फूलों की, बमों की ।

जीत की, हार की | प्यार की, हार की।
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें ?

किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं।
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं।
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं। ।

परियों के किस्से सुनाते हैं।


 किताबों में रॉकेट का राज़ है।

किताबों में साइंस की आवाज़ है ।

किताबों का कितना बड़ा संसार है।

किताबों में ज्ञान की भरमार है।

क्या तुम इस संसार में

नहीं जाना चाहोगे ?

किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।


तुम्हारे पास रहना चाहती हैं !

                                  - सफदर हाशमी


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धरती धोरां री 


धरती धोरां री,

 

आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै,

 ईं रो जस नर नारी गावै,

 

धरती धोरां री!

 

काळा बादळिया घहरावै, बिरखा घूघरिया घमकावै, बिजळी डरती ओला खावै, 

धरती धोरां री!


सूरज कण कण नै चमकावै, चन्दो इमरत रस बरसावै, तारा निछावळ कर ज्यावै, 

धरती धोरां री!

 

लुळ-लुळ बाजरियो लैरावै, मक्की झालो देर बुलावै, कुदरत दोन्यू हाथ लुटावै, 

धरती धोरां री!

 

पंछी मधरा–मधरा बोलै, मिसरी मीठे सुर स्यूं घोळे, 

झी बायरियो पंपोळे, 

धरती धोरां री! 

धरती धोरां री । 

नारा नागौरी हिद ताता, मदुआ ऊंट अणूता खाथा! ईं रै घोड़ां री के बात? 

धरती धोरां री!

 

ईं रा फळ फुलड़ा मन भावण, ईं रै धीणो आंगण-आंगण, बाजै सगळा स्यूं बड़ भागण, 

धरती धोरां री ! 

ईं रो चितौड़ो गढ़ लूंठो, 

ओ तो रण वीरां रो खुटो, ई रो जोधाणू नौ कुंटो, 

धरती धोरां री!

 

आबू आभै रै परवाणें, लूणी गंगाजी ही जाणै, ऊभो जयसलमेर सिंवाणै, 

धरती धोरां री! 

ईं रो बीकाणू गरबीलो, ईं रो अलवर जबर हठीलो, ईं रो अजयमेर भड़कीलो, 

धरती धोरां री

जैपर नगर्यां में पटराणी, कोटा-बूंदी कद अणजाणी! चंबल कैवै ओ री का’णी, 

धरती धोरां री! 

धरती धोरां री ।

 

 

कोनी नांव भरतपुर छोटो, घूम्यो सूरजमल रो घोटो, खाई मात फिरंगी मोटो, 

धरती धोरां री! 

ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो, मोबी हरियाणो है प्यारो, मिलतो तीन्यां रो उणियारो, 

धरती धोरां री!

 

ईडर पालनपुर है इँरा, सागी जामण जाया बीरा, ॐ तो टुकुड़ा मरु रै जी रा, 

धरती धोरां री! 

सोरठ बंध्यो सोरठां लारै, भेळप सिंध आप हंकारे, मूमल बिसय हेत चितारे, 

धरती धोरां री!

 

ई पर तनड़ो मनड़ो वारां, ईं पर जीवण प्राण उंवारा, ईं री धजा उडै गिगनारां, 

मायड़ कोड़ां री! 

ईं नै मोत्यां थाळ बधावां, ईं री धूळ लिलाड़ लगावां, ई रो मोटो भाग सरावां, 

धरती धोरां री! 

ईं रै सत री आण निभावां, ईं रै पत नै नहीं लजावां, ईं नै माथो भेंट चढ़ावां, मायड कोड़ा री! 

धरती धोरां री! 

                                                                                                                  :-    कन्हैयालाल सेठिया

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