Thursday, November 15, 2018

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himalaya parvat history in hindi    


  हिमालय पर्वत का विस्तार ,िथति ओर विभाजन ⇩ 





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हिमालय
चुकुंग री की ओर ऊपर जाते समय, ल्होत्से पर्वत चोटी का दृश्य.
चुकुंग री की ओर ऊपर जाते समय, ल्होत्से पर्वत चोटी का दृश्य.
विवरण
क्षेत्र:Flag of India.svg भारत
Flag of Bhutan.svg भूटान
Flag of the People's Republic of China.svg चीन
Flag of Nepal.svg नेपाल
Flag of Pakistan.svg पाकिस्तान
सर्वोच्च शिखर:एवरेस्ट पर्वतनेपाल-चीन सीमा
सर्वोच्च ऊँचाई:8,848 मीटर (29,029 फीट)
निर्देशांक:27°59′17″N 86°55′31″E

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण
हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।[1] इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तानभारतनेपालभूटान और चीन


अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र
संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधुगंगाब्रह्मपुत्र और यांगतेज
भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व[2]
हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वारबद्रीनाथकेदारनाथगोमुखदेव प्रयागऋषिकेशकैलाशमानसरोवर तथा अमरनाथप्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:1

अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र
संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधुगंगाब्रह्मपुत्र और यांगतेज
भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व[2]
हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वारबद्रीनाथकेदारनाथगोमुखदेव प्रयागऋषिकेशकैलाशमानसरोवर तथा अमरनाथप्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)।

लघु हिमालय[संपादित करें]

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
हिमालय पर्वत का वह भाग जो महान हिमालय के दक्षिण सामानान्तर फैला हुआ है लघु हिमालय कहलाता है। यह अंचल मध्य हिमालय या हिमाचल हिमालय के भी नाम से पुकारा जाता है। लेकिन वास्तव में यह मध्य हिमालय ही है। लघु हिमालय 80 से 100 किलोमीटर चौड़ाई में फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 1628 मीटर से लेकर 3000 मीटर है। इसकी अधिकतम ऊँचाई 4500 मीटर है।

नामकरण[संपादित करें]


भारतीय प्लेट की गति और हिमालय की उत्पत्ति
हिमालय संस्कृत के दो शब्दों - हिम तथा आलय से मिल कर बना है, जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमआवरण वाला क्षेत्र है।
हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को भी कई नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे सगरमाथा (आकाश या स्वर्ग का भाल), संस्कृत में देवगिरी और तिब्बती में चोमोलुंगमा (पर्वतों की रानी) कहते हैं।
हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम 'बन्दरपुंछ' है। यह चोटी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 13,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं।

हिमालय की उत्पत्ति[संपादित करें]

हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कोबर के भूसन्नति सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा की जाती है। पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था और अफ्रीका से सटा हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा[3] ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की।[4] यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुदी-समुद्री टकराव अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।[5]
तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है।[6][7][8][9] साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम चुका है।[10]
इस टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।[11]

हिमालय की भूगर्भिक संरचना[12]

भूआकृतिक विभाजन[संपादित करें]

हिमालय पर्वत तन्त्र को तीन मुख्य श्रेणियों के रूप में विभाजित किया जाता है जो पाकिस्तान में सिन्धु नदी के मोड़ से लेकर अरुणाचल के ब्रह्मपुत्र के मोड़ तक एक दूसरे के समानांतर पायी जाती हैं।[13] चौथी गौड़ श्रेणी असतत है और पूरी लम्बाई तक नहीं पायी जाती है। ये चार श्रेणियाँ हैं- [14]
  • (क) परा-हिमालय,
  • (ख) महान हिमालय
  • (ग) मध्य हिमालय, और
  • (घ) शिवालिक।
परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है। यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।
महान हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके क्रोड में आग्नेय शैलें पायी जाती है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं। पार्श्वों और शिखरों पर अवसादी शैलों का विस्तार है। कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं। यह श्रेणी मुख्य केन्द्रीय क्षेप द्वारा मध्य हिमालय से अलग है। हालांकि पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे से सटी हुई हैं।
मध्य हिमालय महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।
शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है। अरुणाचल में मिरीमिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियाँ पायी जाती हैं।

प्रादेशिक विभाजन[संपादित करें]

सर सिडनी बुराड ने हिमालय को चार क्षैतिज प्रदेशों में बाँटा है[13]:-
  1. कश्मीर हिमालय - सिन्धु नदी से सतलुज नदी के बीच का भाग
  2. कुमाऊँ हिमालय - सतलुज से काली नदी (सरयू) के बीच का भाग
  3. नेपाल हिमालय - सरयू नदी से तीस्ता नदी के बीच का भाग
  4. आसाम हिमालय - तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक का भाग
कुमाऊँ (गढ़वाल) हिमालय का एक पैनोरमिक दृश्य

हिमालय का महत्व[संपादित करें]

हिमालय पर्वत विविध प्राकृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों से महत्वपूर्ण है।[15][16] हिमालय पर्वत का महत्व न केवल इसके आसपास के देशों के लिये हैं बल्कि पूरे विश्व के लिये हैं क्योंकि यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमाच्छादित क्षेत्र है जो विश्व जलवायु को भी प्रभावित करता है। इसके महत्व को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है:

प्राकृतिक महत्व[संपादित करें]

  • उत्तरी भारत का मैदान या सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय से लाये गये जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित है।
  • हिमालय का सबसे बड़ा महत्व दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों के लिये हैं जहाँ की जलवायु के लिये यह एक महत्वपूर्ण नियंत्रक कारक के रूप में कार्य करता है। हिमालय की विशाल पर्वत शृंखलायें साइबेरियाई शीतल वायुराशियों को रोक कर भारतीय उपमहाद्वीप को जाड़ों में आधिक ठण्ढा होने से बचाती हैं।[16]
  • यह पर्वत श्रेणियाँ मानसूनी पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पान करके इस क्षेत्र में पर्वतीय वर्षा कराती हैं जिस पर इस क्षेत्र का पर्यावरण और अर्थव्यवस्था काफ़ी हद तक निर्भर हैं।
  • हिमालय की उपस्थिति ही वह कारण है जिसकी वजह से भारतीय उपमहाद्वीप के उन क्षेत्रों में भी उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु पायी जाती है जो कर्क रेखा के उत्तर में स्थित हैं, अन्यथा इन क्षेत्रों में अक्षांशीय स्थिति के अनुसार समशीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु मिलनी चाहिए थी।
  • हिमालय की वर्ष-पर्यंत हिमाच्छादित श्रेणियाँ और इनके हिमनद सदावाहिनी नदियों के स्रोत हैं जिनसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को महत्वपूर्ण जल संसाधन उपलब्ध होते हैं।

आर्थिक महत्व[संपादित करें]


हिमाचल प्रदेश में खज्जियार मर्ग
  • वन संसाधनों के रूप में शीतोष्ण कटिबंधीय मुलायम लकड़ी वाली वनस्पति और शंक्वाकार वनों के स्रोत के रूप में जिसका काफ़ी आर्थिक महत्व है।
  • अन्य विविध वनोपजें जैसे औषधीय पौधे, इत्यादि की प्राप्ति।
  • चरागाह के रूप में हिमालय का महत्व है क्योंकि इसकी घाटियों में नर्म घास वाले क्षेत्र पाए जाते हैं। इन्हें पश्चिमी हिमालय में मर्ग और कुमायूँ क्षेत्र में बुग्यालतथा पयाल के नाम से जाना जाता है।

    लेह का एक दृश्य
  • विविध खनिजों, जैसे चूना पत्थर, डोलोमाईट, स्लेट, चट्टानी नमक इत्यादि के स्रोत के रूप में।
  • फलों की खेती के लिये।
  • सिंचाई के स्रोत के रूप में सदावाहिनी नदियों का जलस्रोत।
  • पर्यटन उद्योग और बहुत से पर्यटक केन्द्रों के लिये।
  • जलविद्युत उत्पादन के लिये।

पर्यावरणीय महत्व[संपादित करें]

सामरिक महत्व[संपादित करें]

  • हिमालय क्षेत्र का दक्षिण एशिया के लिये हमेशा से सामरिक महत्व रहा है क्योंकि यह एक प्राकृतिक अवरोध है जो इसके उत्तर से सैन्य आक्रमणों को अल्पसंभाव्य बनाता है।
  • वर्तमान समय में कश्मीर तथा सियाचिन विवाद इसी क्षेत्र में अवस्थित हैं। चीन द्वारा हिमालय के शिखरों से बनाई गयी प्राकृतिक सीमा रेखा, मैकमोहन रेखाको मान्यता देने से इनकार करना भी इसी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूराजनैतिक विवाद है।

  • हिमालय की उच्च भूमि ही कारण है कि नेपाल आपनी बफर स्टेट की स्थित को सुरक्षित बनाये हुए हैं।
पर्यावरण[संपादित करें]
हिमालय में उगने वाले पेड़ो और वहां रहने वाले जीव-जंतुओं की विविधता जलवायु, वर्षा, ऊंचाई और मिट्टी के अनुसार बदलती हैं। जहाँ नीचे जलवायु उष्णकटिबंधीय होती है, वहीं चोटी के पास स्थायी रूप से बर्फ जमी रहती है। कर्क रेखा के निकट स्थित होने के कारण स्थायी बर्फ का स्तर आमतौर पर लगभग 5500 मीटर (18,000 फीट) का होता है, जो की दुनिया में सबसे अधिक है। तुलना के लिए, न्यू गिनी के भूमध्य पहाड़ों में बर्फ का स्तर कुछ 900 मीटर (2950 फीट) नीचे है। वार्षिक वर्षा की मात्रा (पहाड़ों की दक्षिणी तरफ़) पश्चिम से पूर्व बढती चली जाती है। more........................

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